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जयपुर: राजस्थान स्टांप अधिनियम 1988 में किए संशोधन को निरस्त करने की मांग

जयपुर में गौवंश संरक्षण संघर्ष समिति की तरफ से मुख्यमंत्री के नाम जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा गया. समिति की मांग है कि राजस्थान स्टांप अधिनियम 1988 में किए गए संशोधन को निरस्त किया जाए. नए संशोधन में अधिभार की राशी का उपयोग सूखा, बाढ़, महामारी आदि आपदाओं में करने का प्रावधान है.

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राजस्थान स्टांप अधिनियम 1988 में किए संशोधन को निरस्त करने की मांग
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Published : Sep 7, 2020, 5:34 PM IST

जयपुर. गौवंश संरक्षण संघर्ष समिति की ओर से सोमवार को मुख्यमंत्री के नाम जिला कलेक्टर को ज्ञापन दिया गया. ज्ञापन में राजस्थान स्टांप अधिनियम 1988 में किए गए संशोधन को निरस्त करने की मांग की गई. समिति के सदस्यों ने कहा कि गौवंश का निवाला छीन कर आपदा प्रबंधन में लगाया जा रहा है, जो सरासर गलत है. समिति की ओर से कहा गया कि संशोधन निरस्त नहीं किया गया तो आंदोलन किया जाएगा.

प्रदेश में वर्तमान में पंजीकृत और अपंजीकृत लगभग 3500 गौशालाएं हैं

ज्ञापन में बताया गया कि राज्य सरकार ने 2016 में राज्य की निराश्रित, अपंग और वृद्ध गौवंश के संरक्षण और संवर्धन के लिए गौ संरक्षण एवं संवर्धन अधिनियम 2016 बनाया था. इसमें राज्य की पंजीकृत गौशालाओं व कांजी हाउस में रह रही इन निराश्रित गौवंश के पालन-पोषण के लिए सहायता राशि देने का प्रावधान किया गया है. राज्य सरकार द्वारा राजस्थान स्टांप अधिनियम 1988 (1999 का अधिनियम संख्या 14) की धारा 3-ख के तहत स्टांप ड्यूटी पर अधिभार से प्राप्त राशि सिर्फ और सिर्फ गौवंश संरक्षण और संवर्धन के लिए ही खर्च की जाएगी. इसका प्रावधान कर स्थाई राशि की व्यवस्था की गई.

पढ़ें: शिक्षा विभाग में अटकी हुई भर्तियों को लेकर आज ही होगा फैसला: शिक्षा मंत्री

वर्तमान में पंजीकृत और अपंजीकृत लगभग 3500 गौशालाएं हैं. इनमें से लगभग 1980 गौशालाओं का एक वित्तीय वर्ष में 180 दिन की ही सहायता दी जाती है. इसमें बड़े गौवंश को 40 और छोटे गौवंश को 20 रुपए प्रति गौवंश के हिसाब से राशि दी जा रही है. गहलोत सरकार ने राजस्थान स्टांप अधिनियम 1988 की धारा 3-ख में संशोधन किया और इसके तहत अधिभार से प्राप्त राशी गाय और उसकी नस्ल के संरक्षण और संवर्धन के लिए ही उपयोग करने की बजाय सूखा, बाढ़, महामारी, लोक स्वास्थ्य आवश्यकताओं इत्यादि जैसे प्राकृतिक एवं मानव निर्मित आपदाओं के लिए किए जाने का प्रावधान किया. यह संशोधन 14 मई को किया गया.

गौसंरक्षण से जुड़ी समिति के सदस्यों ने बताया कि वर्तमान में स्टांप ड्यूटी के अधिभार से प्राप्त संपूर्ण राशि से गौवंश संरक्षण व संवर्धन पर ही खर्च की जा रही है. 1980 पंजीकृत गौशालाओं को ही 180 दिनों की सहायता मिल पा रही है. लगभग 1520 गौशालाएं अभी भी सहायता से वंचित है. इस संशोधन के बाद जिन गौशालाओं को वर्तमान में सहायता मिल रही है, उनको भी सहायता नहीं मिल सकेगी.

इसलिए समिति के सदस्यों ने मांग की कि राजस्थान स्टाम्प अधिनियम 1988 में किए गए संशोधन को तुरंत निरस्त किया जाए. वर्तमान में लगभग 1980 पंजीकृत गौशालाओं को ही सहायता राशि दी जा रही है. 200 गौवंश की बाध्यता समाप्त कर राजस्थान राज्य में पंजीकृत सभी छोटी-बड़ी गौशालाओं को सहायता राशि दी जाए. वर्तमान में प्रतिवर्ष दी जा रही राशि में बढ़ोतरी की जाए, ताकी वित्तीय वर्ष में 180 दिन के स्थान पर 365 दिन की सहायता निराश्रित गौवंश को दी जा सके.

जयपुर. गौवंश संरक्षण संघर्ष समिति की ओर से सोमवार को मुख्यमंत्री के नाम जिला कलेक्टर को ज्ञापन दिया गया. ज्ञापन में राजस्थान स्टांप अधिनियम 1988 में किए गए संशोधन को निरस्त करने की मांग की गई. समिति के सदस्यों ने कहा कि गौवंश का निवाला छीन कर आपदा प्रबंधन में लगाया जा रहा है, जो सरासर गलत है. समिति की ओर से कहा गया कि संशोधन निरस्त नहीं किया गया तो आंदोलन किया जाएगा.

प्रदेश में वर्तमान में पंजीकृत और अपंजीकृत लगभग 3500 गौशालाएं हैं

ज्ञापन में बताया गया कि राज्य सरकार ने 2016 में राज्य की निराश्रित, अपंग और वृद्ध गौवंश के संरक्षण और संवर्धन के लिए गौ संरक्षण एवं संवर्धन अधिनियम 2016 बनाया था. इसमें राज्य की पंजीकृत गौशालाओं व कांजी हाउस में रह रही इन निराश्रित गौवंश के पालन-पोषण के लिए सहायता राशि देने का प्रावधान किया गया है. राज्य सरकार द्वारा राजस्थान स्टांप अधिनियम 1988 (1999 का अधिनियम संख्या 14) की धारा 3-ख के तहत स्टांप ड्यूटी पर अधिभार से प्राप्त राशि सिर्फ और सिर्फ गौवंश संरक्षण और संवर्धन के लिए ही खर्च की जाएगी. इसका प्रावधान कर स्थाई राशि की व्यवस्था की गई.

पढ़ें: शिक्षा विभाग में अटकी हुई भर्तियों को लेकर आज ही होगा फैसला: शिक्षा मंत्री

वर्तमान में पंजीकृत और अपंजीकृत लगभग 3500 गौशालाएं हैं. इनमें से लगभग 1980 गौशालाओं का एक वित्तीय वर्ष में 180 दिन की ही सहायता दी जाती है. इसमें बड़े गौवंश को 40 और छोटे गौवंश को 20 रुपए प्रति गौवंश के हिसाब से राशि दी जा रही है. गहलोत सरकार ने राजस्थान स्टांप अधिनियम 1988 की धारा 3-ख में संशोधन किया और इसके तहत अधिभार से प्राप्त राशी गाय और उसकी नस्ल के संरक्षण और संवर्धन के लिए ही उपयोग करने की बजाय सूखा, बाढ़, महामारी, लोक स्वास्थ्य आवश्यकताओं इत्यादि जैसे प्राकृतिक एवं मानव निर्मित आपदाओं के लिए किए जाने का प्रावधान किया. यह संशोधन 14 मई को किया गया.

गौसंरक्षण से जुड़ी समिति के सदस्यों ने बताया कि वर्तमान में स्टांप ड्यूटी के अधिभार से प्राप्त संपूर्ण राशि से गौवंश संरक्षण व संवर्धन पर ही खर्च की जा रही है. 1980 पंजीकृत गौशालाओं को ही 180 दिनों की सहायता मिल पा रही है. लगभग 1520 गौशालाएं अभी भी सहायता से वंचित है. इस संशोधन के बाद जिन गौशालाओं को वर्तमान में सहायता मिल रही है, उनको भी सहायता नहीं मिल सकेगी.

इसलिए समिति के सदस्यों ने मांग की कि राजस्थान स्टाम्प अधिनियम 1988 में किए गए संशोधन को तुरंत निरस्त किया जाए. वर्तमान में लगभग 1980 पंजीकृत गौशालाओं को ही सहायता राशि दी जा रही है. 200 गौवंश की बाध्यता समाप्त कर राजस्थान राज्य में पंजीकृत सभी छोटी-बड़ी गौशालाओं को सहायता राशि दी जाए. वर्तमान में प्रतिवर्ष दी जा रही राशि में बढ़ोतरी की जाए, ताकी वित्तीय वर्ष में 180 दिन के स्थान पर 365 दिन की सहायता निराश्रित गौवंश को दी जा सके.

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