जयपुर. इन दिनों ठगों ने बेरोजगार लोगों विशेषकर छात्रों को नए तरीके से अपना शिकार (Cyber fraud in the name of instant loan) बनाना शुरू किया है. जिसके जरिए ठग न केवल लोगों को मानसिक रूप से परेशान कर रहे हैं, बल्कि उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा को भी ठेस पहुंचाने का काम कर रहे हैं. यहां हम बात कर रहे हैं इंस्टेंट लोन देने वाले विभिन्न ऐप्स के बारे में. ये लोगों की मजबूरी का फायदा उठा कर उन्हें 5 मिनट में पेपरलेस लोन देने का झांसा देकर अपने जाल में फंसाते हैं. फिर मोटी राशि हड़प लेते हैं. लोन देते वक्त लोगों का विश्वास जीतने के लिए काफी बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं और जब रिकवरी का टाइम आता है तो अपने स्तर को इतना नीचे गिरा देते हैं कि लोन लेने वाला व्यक्ति मानसिक रूप से प्रताड़ित होने लगता है.
सोशल मीडिया के जरिए ऐप्स की ब्रांडिंग: साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट आयुष भारद्वाज ने बताया कि प्ले स्टोर और इंटरनेट पर ऐसी दर्जनों ऐप्स मौजूद हैं जो सिर्फ 5 मिनट में बिना किसी कागजी कार्रवाई के इंस्टेंट लोन देने का दावा करती हैं. साथ ही इस तरह की ऐप्स की ब्रांडिंग सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म पर ही देखने को मिलती है. ठगी का शिकार बनाने के लिए छात्रों को, या प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुटे युवाओं को टारगेट किया जाता है. छात्रों का महीने के अंत में बजट गड़बड़ा जाता है और उन्हें रुपयों की आवश्यकता पड़ती है. ऐसे में ठग उन्हें टारगेट करते हुए महज 5 मिनट में इंस्टेंट लोन देने का झांसा देते हैं.
20% तक होती है ब्याज दर: इंस्टेंट लोन पाने के चक्कर में आकर छात्र प्ले स्टोर (Expert advices to avoid online fraud) से ऐप डाउनलोड कर लेते हैं. साथ ही अपने आधार की जानकारी ऐप के माध्यम से साझा कर अपनी जरूरत के अनुसार लोन राशि प्राप्त कर लेते हैं. लोन लेते वक्त छात्र इस ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देते की इंस्टेंट लोन देने वाले ऐप की ब्याज दर 20% तक होता है. ये किसी भी बैंक की ओर से दिए जाने वाले पर्सनल लोन की 2 गुनी या 3 गुनी होती है. ऐसे में छात्र लोन की किस्त चुकाने में असमर्थ हो जाता है. तब उसे मेंटली टॉर्चर किया जाता है और ब्लैकमेल कर ज्यादा राशि हड़पी जाती है.
ऐप डाउनलोड करते ही ठगों के पास चला जाता है एक्सेस: साइबर सिक्योरिटी एक्सपोर्ट आयुष भारद्वाज ने बताया कि इंस्टेंट लोन के चक्कर में आकर जब भी कोई व्यक्ति अपने मोबाइल में ऐप डाउनलोड करता है, तो वो ऐप उस व्यक्ति के मोबाइल के तमाम फंक्शन को एक्सेस करने की परमिशन मांगती है. जल्द रुपए प्राप्त करने के चक्कर में व्यक्ति बिना कुछ सोचे समझे उस ऐप को अपने पूरे मोबाइल का एक्सेस दे देता है. इसके बाद ठगों के हाथ में उस व्यक्ति के मोबाइल का तमाम एक्सेस चला जाता है.
पढ़ें-Jagte Raho: ऑनलाइन पेमेंट एप्स के रेप्लिका एप से रहें सावधान...साइबर ठग ऐसे बना रहे शिकार
ऐसे में जब निर्धारित तिथि पर छात्र ब्याज नहीं चुका पाता है तो ठगों का रिकवरी मैकेनिज्म शुरू हो जाता है. चूंकि ठगों के पास व्यक्ति के मोबाइल का पूरा एक्ससे होता है तो वो उसके सोशल मीडिया अकाउंट और कांटेक्ट लिस्ट का गलत तरीके से इस्तेमाल करते हैं. ठग लोन प्राप्त करने वाले व्यक्ति के ही नंबरों का प्रयोग कर उनके ही फ्रेंड लिस्ट और कांटेक्ट लिस्ट में शामिल लोगों को अश्लील और अभद्र मैसेज भेजना शुरू कर देते हैं. जिसके चलते उस व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा पूरी तरह से खत्म हो जाती है और उसे काफी मानसिक प्रताड़ित होना पड़ता है.
बचाव में करें ये उपाय:
1. इंसटेंट लोन देने वाली ऐप के चक्कर में आने से बचें: साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट आयुष भारद्वाज का कहना है कि लोगों को इंस्टेंट लोन देने वाली ऐप के चक्कर में आने से खुद को बचाना चाहिए. साथ ही अपने मोबाइल की तमाम गतिविधियों का एक्सेस भी ऐप को नहीं देना चाहिए. कुछ समय पूर्व आरबीआई ने भी एक नोटिफिकेशन जारी कर इस तरह की ऐप के फर्जी होने और उनके ओर से वसूले जाने वाले ब्याज दर के आरबीआई गाइड लाइन के मुताबिक न होने की जानकारी दी थी. यदि किसी व्यक्ति को रुपयों की जरूरत है तो तमाम ऑनलाइन पेमेंट ऐप ई-वॉलेट के जरिए पोस्टपेड की सर्विस दे रहे हैं. जिनकी ब्याज दर और रिकवरी मेकैनिज्म भी आरबीआई की गाइड लाइन के मुताबिक है.
2. किसी भी ऐप को ना दें पूरे फोन की एक्सेस: साइबर सिक्योरिटी एक्सपोर्ट आयुष भारद्वाज का कहना है कि जब भी यूजर अपने मोबाइल में कोई भी ऐप डाउनलोड करे तो वो उसे अपने फोन की तमाम एक्टिविटी का एक्सेस प्रदान ना करे. संबंधित ऐप जिस कार्य से संबंधित है केवल उसी फंक्शन की एक्सेस उस ऐप को प्रदान की जाए. यदि यूजर अपने पूरे फोन का एक्सेस किसी ऐप को देता है तो उसकी तमाम निजी जानकारी ठगों को मिल जाती है. जो आगे जाकर साइबर ठगी की एक बड़ी बुनियाद बनती है. साथ ही कई यूजर अपने कांटेक्ट लिस्ट में अपने क्रेडिट कार्ड की डिटेल को भी सेव करके रखते हैं. ऐसे में ठग उसकी भी जानकारी प्राप्त कर लेते हैं और फिर यूजर्स के क्रेडिट या डेबिट कार्ड से ठगी की वारदात को भी अंजाम देते हैं.