जयपुर. अमरिंदर सिंह के पंजाब कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद से हटने और चरनजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) को मुख्यमंत्री बनाने के बाद कांग्रेस आलाकमान का ऑपरेशन पंजाब समाप्त हो चुका है. लेकिन अब हर किसी की नजर इस बात पर है कि क्या राजस्थान को लेकर भी कांग्रेस आलाकमान जल्द ही बड़े फैसले लेने जा रहा है ?
क्योंकि पंजाब में जो हालात बने थे, वह राजस्थान में पंजाब से भी पहले बन चुके थे. राजस्थान में साल 2020 के जुलाई महीने में प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष रहे सचिन पायलट मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) के नेतृत्व को चैलेंज करते हुए अपने सहयोगी 19 विधायकों के साथ दिल्ली चले गए थे. जिसे सचिन पायलट की बगावत माना गया और इसके चलते उन्हें अपने और अपने समर्थक विधायकों के तमाम पद गंवाने पड़े.
हालांकि प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi ) के आश्वासन के बाद सचिन पायलट की पार्टी में वापसी हो गई, लेकिन गहलोत की नाराजगी के चलते अब भी पायलट और पायलट कैंप के हाथ खाली हैं और जिस सम्मानजनक वापसी की पायलट कैम्प उम्मीद कर रहा था वो अब भी उन्हें नहीं मिल सकी है. तमाम बातों के बीच सचिन पायलट कई बार यह बात कह चुके हैं कि कांग्रेस कार्यकर्ता को सत्ता में भागीदारी दी जाए, ताकि हर बार जो कांग्रेस सत्ता में आने के बाद चुनावों में सत्ता गंवा देती है वह प्रक्रिया बंद हो. लेकिन पायलट कैंप को अब भी इस बात का इंतजार है कि कांग्रेस आलाकमान ने जो उनसे वादे किए थे वह कब पूरे होंगे.
राजस्थान का मसला पंजाब से पुराना
पंजाब कांग्रेस में पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह (Former Chief Minister Amarinder Singh) और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के बीच विवाद भले ही पहले से चल रहा हो, लेकिन ताजा विवाद 6 महीने पुराना ही है. जबकि राजस्थान में सचिन पायलट और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बीच विवाद न केवल पुराना है बल्कि 14 महीने पहले तो इस विवाद को सुलझाने के लिए एआईसीसी की कमेटी भी बन चुकी है. कमेटी की रिपोर्ट भी कांग्रेस आलाकमान के पास पहुंच चुकी है, लेकिन राजस्थान से पहले कांग्रेस आलाकमान ने पंजाब को वरीयता दी और पंजाब का मामला पहले सुलझाया गया. जबकि सचिन पायलट और उनके सहयोगी आज 14 महीने बाद भी इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि उनसे किये वादे पूरे हों.
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गहलोत ओर अमरिंदर में भी अंतर
राजस्थान में तमाम विवादों के बाद भी कांग्रेस आलाकमान राजस्थान में भले ही कैबिनेट विस्तार और संगठन में विस्तार की बात कहता नज़र आ रहा हो, लेकिन हकीकत यह है कि राजस्थान और पंजाब की स्थितियों में अंतर है. पंजाब में विधायकों की अमरिंदर सिंह से नाराजगी थी तो वहीं राजस्थान में अशोक गहलोत के साथ ज्यादातर विधायक लामबंद हैं. ऐसे में आलाकमान सीधा बदलाव का निर्णय नहीं ले सकता. ऐसे में अगर ज्यादा से ज्यादा राजस्थान में कुछ होता है तो कांग्रेस पार्टी प्रदेश कांग्रेस संगठन में परिवर्तन कर सकती है और सचिन पायलट को वापस कांग्रेस अध्यक्ष का पद दिया जा सकता है.
उधर राजस्थान में प्रदेश नेतृत्व परिवर्तन नहीं होने का एक कारण यह भी है कि अशोक गहलोत आज भी गांधी परिवार के सबसे विश्वसनीय नेताओं में से एक हैं. ऐसे में राजस्थान में किसी तरीके का कोई नेतृत्व परिवर्तन फिलहाल नहीं होगा.
ज्यादा देरी से होगा नुकसान
राजस्थान में पिछले 14 महीने से सचिन पायलट इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि उनके समर्थकों को कब राजस्थान में फिर से कांग्रेस पार्टी में अहम जिम्मेदारी मिलती है. भले ही राजस्थान में इस बात की चर्चा हो रही हो कि केबिनेट एक्सपेंशन कब होगा, लेकिन हकीकत यह भी है कि केबिनेट एक्सपेंशन से पहले सचिन पायलट को पार्टी में फिर से स्थापित करना कांग्रेस आलाकमान की पहली वरीयता में है. ऐसे में कहा जा रहा है कि सबसे पहले कांग्रेस पार्टी में सचिन पायलट के लिए स्थान तय किया जाएगा. उसके बाद राजस्थान में केबिनेट एक्सपेंशन, संगठन विस्तार या फिर राजनीतिक नियुक्तियों का दौर शुरू होगा.
वैसे भी सचिन पायलट को जल्द से जल्द कांग्रेस पार्टी में फिर से स्थापित करना आलाकमान के लिए इसलिए प्राथमिकता में है क्योंकि पहले ही वह देरी के चलते ज्योतिरादित्य जैसा नेता और मध्य प्रदेश की सत्ता गंवा चुके हैं. तो वहीं सचिन पायलट कांग्रेस आलाकमान के लिए इसलिए भी जरूरी है क्योंकि सचिन पायलट को जितना जल्दी कांग्रेस पार्टी में फिर से स्थापित किया जाएगा उतना ही जल्दी पार्टी के स्टार प्रचारक के तौर पर सचिन पायलट को अन्य राज्यों में भी स्वीकार किया जाएगा, अन्यथा सचिन पायलट जहां भी प्रचार के लिए जाते हैं वहां यही बात उनसे पूछी जाती कि कांग्रेस पार्टी ने आपको क्या दिया ?
श्राद्धपक्ष समाप्ति के बाद हो सकता है फेरबदल
राजस्थान में सचिन पायलट की प्रियंका गांधी के साथ ही राहुल गांधी (Rahul Gandhi) से भी 14 महीने बाद लंबी चर्चा हो चुकी है, कहा जा रहा है कि सचिन पायलट की आगे क्या भूमिका होगी उसके बारे में राहुल गांधी ने उन्हें इशारा भी कर दिया है. अब राजस्थान में चर्चाएं यह हैं कि श्राद्धपक्ष के बाद प्रदेश में कांग्रेस संगठन और मंत्रिमंडल विस्तार का काम कर दिया जाएगा. हालांकि अभी श्राद्धपक्ष समाप्त होने में 15 दिन का समय है उसके बाद ही राजस्थान में किसी तरह की राजनीतिक हलचल होगी.