जयपुर. केंद्रीय विद्युत मंत्रालय द्वारा हाल ही जारी में बिजली संशोधन विधेयक के ड्राफ्ट को लेकर प्रदेश सरकार ने आपत्ति जताई है. केंद्रीय विद्युत मंत्रालय की इस ड्राफ्ट को प्रदेश के ऊर्जा मंत्री डॉ. बीडी कल्ला ने राज्य सरकार के अधिकारों और प्रदेश में बने विनियामक आयोग की स्वायत्तता पर अधिग्रहण करार दिया है. ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान कल्ला ने केंद्रीय विद्युत मंत्रालय के इस नए ड्राफ्ट से जुड़े तथ्यों पर बेबाकी से अपनी राय रखी.
17 अप्रैल को मंत्रालय की ओर से जारी बिजली संशोधन विधेयक के ड्राफ्ट पर 3 सप्ताह के दौरान आमजन और सरकारों से सुझाव व आपत्तियां मांगी गई है. अब प्रदेश से जुड़ी बिजली उत्पादन वितरण और अन्य कंपनियां इस मामले में अपनी आपत्ति दर्ज कराएगी. बीडी कल्ला ने बताया कि ड्राफ्ट को अध्ययन के बाद सरकार की ओर से मंत्रालय में इसके पुनर्विचार करने का सुझाव दिया जाएगा.
राज्य विद्युत विनियामक आयोग काम कर रहा है तो फिर इसकी जरूरत कहां है: ऊर्जा मंत्री
ऊर्जा मंत्री बीडी कल्ला के अनुसार प्रदेश में राजस्थान विद्युत विनियामक आयोग बना हुआ है, वो अपने आप में इंडिपेंडेंट एजेंसी है. यह बखूबी अपना काम कर रही है. वहीं विद्युत दरों का निर्धारण हो या उससे पहले सभी पक्षों से सुझाव लेना और आपत्तियों का निस्तारण करने के बाद निर्णय करने का काम हो, समय-समय पर डिस्कॉम व अन्य पक्षकारों के बीच उठे मसलों को सुलझाने का काम काम कर रहा है. लेकिन विद्युत मंत्रालय के नए मसौदे में अलग से रेगुलेटरी की स्थापना भी की जाएगी.
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यह प्राधिकरण कहीं ना कहीं विद्युत विनियामक आयोग के अधिकारों को प्रभावित करेगा. इसकी उपयोगिता समाप्त हो जाएगी. ऊर्जा मंत्री ने यह भी सवाल उठाया कि जब राज्यों में विनियामक आयोग बखूबी अपना काम कर रहा है तो फिर आखिर केंद्र को यह ड्राफ्ट बनाकर राज्यों के और आयोग के अधिकारों और स्वायत्तता व उपयोगिता समाप्त करने की आवश्यकता कहां है.
बीडी कल्ला के अनुसार अनुदान का पैसा डीबीटी के जरिए जाने से होगा ये नुकसान-
ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान जब प्रदेश के उर्जा मंत्री बीडी कल्ला से पूछा गया कि आखिर अनुदान का पैसा सीधे संबंधित बिजली उपभोक्ता के खातों में जाएगा तो इससे क्या नुकसान होगा. ऐसे में कल्ला ने कहा कि प्रदेश सरकार भी अनुदान दे रही है लेकिन अनुदान सीधे बिजली उपभोक्ताओं के खातों में ना जाकर उनके बिजली की दरों को कम करके दिया जाता है. अनुदान का पैसा सीधे डिस्कॉम को आपूर्ति कर दी जाती है.
उर्जा मंत्री के अनुसार सरकार अनुदान के पैसे में चोरी नहीं करती, लेकिन यदि नया मसूदा भविष्य में लागू होता है तो किसानों को और BPL परिवारों सहित उन तमाम बिजली उपभोक्ताओं को पहले बिल जमा कराना होगा. फिर बाद में उनके खाते में अनुदान का पैसा जाएगा. ऐसी स्थिति में शुरुआत में उपभोक्ता सोचेंगे कि बिजली की दरें बढ़ा दी गई है. साथ ही और भी कई परेशानियां आ सकती है. ऐसे में सरकार को इस मामले में पुनर्विचार करना चाहिए.
केंद्र सरकार पूरा ऊर्जा विभाग का अधिग्रहण करना चाह रही है, जो सियासी रूप से भी गलत है: कल्ला
बीडी कल्ला के अनुसार बिजली राज्यों का विषय है. जिसमें केंद्र सरकार को यथावत राज्यों की मदद करना चाहिए, लेकिन इस प्रकार का ड्राफ्ट और विधायक तैयार कर केंद्र सरकार राज्यों के अधिकारों पर कटौती करने जा रही है. ऐसे में केंद्र सरकार को अपने इस निर्णय पर वापस पुनर्विचार करना चाहिए क्योंकि नई नीति से प्रक्रिया जटिल होगी.
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गौरतलब है कि हाल ही में विद्युत मंत्रालय ने बिजली के क्षेत्र में बड़ा सुधार की तरफ कदम उठाते हुए बिजली संशोधन विधेयक का ड्राफ्ट तैयार कर सुझाव आमंत्रित किए हैं. 17 अप्रैल को मसूदा जारी कर आगामी 3 सप्ताह में लोगों से सुझाव मांगे थे. इसके पारित होने के बाद यह बिजली कानून 2003 का स्थान लेगा. वहीं बिजली क्षेत्र में डीबीटी लागू होने के बाद न केवल राज्यों के खजाने से बिजली सब्सिडी का बोझ घटेगा बल्कि कमर्शियल इंडस्ट्रियल बिजली दरों में भी बड़ी कमी आएगी और उद्योगों को लाभ मिलेगा.
ड्राफ्ट में विद्युत अनुबंध प्रवर्तन प्राधिकरण की स्थापना का प्रस्ताव भी है. इस अथॉरिटी को बिजली खरीद करार के मुद्दे पर बिजली उत्पादन और वितरण कंपनियों के बीच विवाद के निपटारे के लिए सिविल कोर्ट जैसे अधिकार देने का प्रस्ताव भी है. यह अथॉरिटी बिजली अपीलीय आयोग की तरह काम करेगी.