जयपुर. किसी भी मनुष्य के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण अवस्था बचपन होती है, जो उसे शारीरिक और मानसिक रूप से सशक्त बनाती है. लेकिन यदि किसी से उसका बचपन ही छीन लिया जाए, तो मानो उसकी पूरी जिंदगी नरक के समान हो जाती है. राजधानी के नाहरगढ़ इलाके से मानव तस्कर विरोधी यूनिट ने 25 बच्चों को बालश्रम की नरक भरी जिंदगी से मुक्त करवाया. बच्चों को बाल श्रम की बेड़ियों से मुक्त करवाने के बाद उन्हें मानसरोवर स्थित 'अपना घर' संस्थान में भेजा गया. मासूमों की दयनीय स्थिति देख हर कोई स्तब्ध था.
मासूमों के जिन कोमल हाथों में पढ़ने के लिए किताब, पेंसिल और खेलने के लिए खिलौने होने चाहिए, उन हाथों को केमिकल के जरिए से इस कदर यातनाएं दी गई की बच्चों के हाथों पर गहरे जख्म देखें जा सकते हैं. मासूमों के हाथों के जख्म देख कर इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता था कि उन्हें किस कदर यातनाएं दी जा रही थी. मासूमों के हाथों के यह जख्म समय के साथ भर जाएंगे, लेकिन यातनाओं का दर्द हमेशा मासूमों के जहन में रहेगा.
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बेहद दयनीय स्थिति में 'अपना घर' पहुंचे बच्चे
बाल श्रम की नरक भरी जिंदगी से मासूमों को मुक्त करा जब मानसरोवर स्थित अपना घर संस्थान लाया गया, तो उस वक्त बच्चे काफी दयनीय स्थिति में थे. बच्चों के हाथों और शरीर के कई हिस्सों पर जख्म थे, जो उन्हें दी जाने वाली यातनाओं को साफ बयां कर रहे थे. अपना घर संस्थान की डायरेक्टर दक्षा पाराशर ने बताया की बच्चों से 12 घंटे से भी अधिक समय तक काम करवाया जाता. जिसके चलते अनेक मासूमों के पैर की हड्डियां तक मुड़ गई.
वहीं उन्होंने बताया कि मासूमों को नहलाया गया और फिर उनके जख्मों पर दवा लगाकर पहनने के लिए साफ कपड़े दिए गए. दक्षा पाराशर ने कहा कि मासूमों के लिए अनेक संस्थाएं काम कर रही है, लेकिन सरकार और प्रशासन को भी इसके लिए गंभीर होना होगा. जहां एक ओर बच्चों को शिक्षित करने के लिए प्रशासन द्वारा जोर दिया जा रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ मासूमों से उनका बचपन छीनने वाले लोगों के खिलाफ प्रशासन कोई सख्त एक्शन नहीं ले रहा है.
काम नहीं करने पर मासूमों को किया जाता प्रताड़ित
अपना घर संस्थान के को-कॉर्डिनेटर मुकेश शर्मा ने बताया कि बच्चों से 12 घंटे से भी अधिक समय तक काम करवाया जाता और सिर्फ एक वक्त ही खाने को भोजन दिया जाता. यदि किसी बच्चे का काम करने का मन नहीं होता या वह खेलना चाहता तो उसे यातनाएं दी जाती और प्रताड़ित किया जाता. बच्चों को एक कोठरी नुमा कमरे में कैद करके रखा जाता और लाख की चूड़ियां बनवाने का काम करवाया जाता. वहीं उन्होंने बतायाकि बच्चों को उनके बाल अधिकारों से अवगत करवाया गया और साथ ही यह बताया गया की उनका काम पढ़ना, लिखना और खेलना है ना की कमाना.
कोठरी नुमा कमरे में कैद रहते थे बच्चे
बाल श्रम की नरक भरी जिंदगी से मुक्त करवाए गए बच्चों से जब ईटीवी भारत ने खास बातचीत की तो बच्चों का दर्द उनके चेहरे पर साफ नजर आया. बच्चों ने बताया की उन्हें काम दिलाने और हर महीने तनख्वाह देने का झांसा देकर बिहार से जयपुर लाया गया. जयपुर लाने के बाद उनसे सुबह 8 बजे से लेकर रात को 10 बजे तक चूड़ी बनाने का काम करवाया जाता और यदि कोई काम नहीं करता तो उसे प्रताड़ित किया जाता. बच्चों को कोठरी नुमा कमरे में कैद करके रखा जाता है. जिसके चलते सूरज की किरण तक बच्चों के नसीब में नहीं थी. महीने में एक बार बच्चों को कुछ समय के लिए कोठरी से बाहर निकाला जाता. बच्चों को जब मुक्त करवाकर अपना घर संस्थान लाया गया तो मानो मासूमों को उड़ने के लिए एक खुला आसमान मिल गया हो और वह पंख फैलाकर उड़ने को तैयार हो. बच्चों ने अपने अंदर छिपी हुई अद्भुत कलाओं का प्रदर्शन किया. कुछ बच्चों ने संगीत के माध्यम से तो कुछ बच्चों ने म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट बजा कर समा बांध दिया.
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यह पहला मामला नहीं है जब राजधानी जयपुर से मासूमों को बाल श्रम के नर्क से मुक्त करवाया गया हो। इससे पूर्व भी अनेक बार सैकड़ों की संख्या में मासूमों को मुक्त करवाया जा चुका है लेकिन उसके बावजूद भी राजधानी जयपुर में सूबे के मुखिया और तमाम आला अधिकारियों की नाक के नीचे बाल श्रम फल फूल रहा है। यदि राजधानी जयपुर में यह हाल है तो प्रदेश के अन्य जिलों में मासूमों के साथ किस तरह से खिलवाड़ किया जा रहा होगा इसका अंदाजा भी लगा पाना बेहद मुश्किल है। सरकार को बाल श्रम के खिलाफ कठोर कदम उठाने की बेहद आवश्यकता है.