जयपुर. इस दौड़ती भागती जिंदगी में जहां लोग अपनों को भूल कर पैसा कमाने की दौड़ में लगे हैं. वहीं, जयपुर के गांव उगरियावास के 87 साल के भैरूलाल अपनी पत्नी की याद में पेंशन की पूरी रकम प्रकृति को संजोने में लगा रहे हैं. 6 साल पहले पत्नी के निधन पर जिस उजड़े हुए श्मशान घाट को भैरूलाल ने हरा-भरा करने का प्रण लिया था, उस प्रण को अपनी ढलती उम्र के साथ भी निभा रहे हैं.
विश्व के अजूबों में शामिल ताजमहल को शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज की यादों को जिंदा रखने के लिए बनाया था, लेकिन आज हम आपको 21वीं सदी के शाहजहां के बारे में बताएंगे. जो अपनी पत्नी की याद में ताजमहल तो नहीं बना सकते, लेकिन एक वीरान श्मशान को स्वर्ग बनाने का काम कर रहे हैं.
जयपुर के ग्राम उगरियावास में रहने वाले 87 साल किसान भैरूलाल बीते 6 साल से गांव की श्मशान भूमि पर वृक्षारोपण कर रहे हैं. दरअसल, साल 2014 में भैरूलाल की पत्नी का निधन हो गया था. जिस श्मशान घाट पर पत्नी का अंतिम संस्कार किया, वो बिल्कुल उजाड़ था. ऐसे में अपनी पत्नी की यादों को संजोने के लिए भैरू लाल इसी उजाड़ श्मशान घाट को संवारने में जुट गए.
![श्मशान घाट में पौधरोपण, Plantation at the crematorium](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/8523387_3.png)
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बड़ और पीपल के पेड़ से भैरूलाल ने यहां वृक्षारोपण की शुरुआत की, और अब तक यहां 250 से ज्यादा पेड़ लगा चुके हैं. भैरूलाल ने बताया कि पहले बतौर किसान खेती का काम किया करते थे. इसलिए पेड़ पौधों से भी ज्यादा ही लगाव है. इसी लगाव की वजह से पत्नी की याद में धर्मशाला या प्याऊ का निर्माण करवाने से बेहतर श्मशान भूमि पर वृक्षारोपण कर, लोगों के लिए छायादार पेड़ लगाने का फैसला लिया. अब उन्हें यही श्मशान घाट स्वर्ग की नगरी लगने लगी है.
![श्मशान घाट में पौधरोपण, Plantation at the crematorium](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/8523387_1.png)
हालांकि श्मशान घाट गांव से बाहर होने की वजह से पौधों को पानी डालने के लिए शुरुआत में काफी परेशानी का सामना करना पड़ा. करीब 1 किलोमीटर से पानी लाकर इन पौधों की सिंचाई की. हालांकि बाद में भामाशाहों की मदद से यहां एक टैंक का निर्माण करवाया गया और अब गांव के सैकड़ों लोग उनके साथ इस मुहिम से जुड़ गए हैं.
![श्मशान घाट में पौधरोपण, Plantation at the crematorium](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/8523387_2.png)
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आज केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं के माध्यम से जो भी पेंशन भैरूलाल को मिलती है, उसकी पूरी रकम वो श्मशान भूमि की देखरेख और पौधरोपण में ही लगा देते हैं. 87 वर्ष की आयु में जहां लोग चारपाई से उतरना भी मुनासिब नहीं समझते, वहां भैरूलाल प्रकृति के रक्षक बने हुए हैं.