बीकानेर. मां अम्बे को समर्पित नवरात्रि के त्योहार का हिंदू धर्म में विशेष महत्व होता है (Shardiya Navratri 2022). इस साल नवरात्र 26 सितंबर, सोमवार से शुरू हो रहे हैं, जो कि 4 अक्टूबर तक रहेंगे. शारदीय नवरात्रि के पहले दिन यानी प्रतिपदा को घटस्थापना की जाएगी.
शारदीय नवरात्र 26 सितंबर से शुरू हो रहे हैं (Ghatasthapana date). प्रतिपदा के साथ ही नवरात्र में घटस्थापना होती है. कलश का पूजन होता है और इसका महत्व खास मायने रखता है और उसका मुहूर्त भी होता है. शास्त्रानुसार सटीक मुहूर्त पर घट स्थापना से भक्त की सभी मनोकामनाएं फलित होती हैं और उसे पूजा का लाभ प्राप्त होता है.
घटस्थापना के शुभ मुहूर्त: घटस्थापना का सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त 26 सितंबर को सुबह 6:21 मिनट से कन्या लग्न 7:57 बजे तक रहेगा. इसके अलावा अभिजीत मुहूर्त (navratri 2022 ghatsthapna muhurat) सुबह 11:55 मिनट से दोपहर 12:42 तक रहेगा. चौघड़ियों के हिसाब से घट स्थापना करने वाले 9:19 से 10:49 बजे तक शुभ के चौघड़िए में भी घट स्थापना कर सकते हैं.
कलश पूजन क्यों?: पञ्चांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू बताते हैं कि समुद्र मंथन के समय भगवान विष्णु अमृत कलश के साथ प्रकट हुए थे इसलिए इसमें अमरत्व की भावना भी रहती है. बताते हैं कि जल शांत चित्त प्रवृत्ति का होता है और पूजा अर्चना करते समय हमारा मन भी जल की तरह निर्मल और शांत होना चाहिए. यही कारण है कि घर के किसी भी शुभ अवसर पर घटस्थापना या कलश स्थापना की विधि सम्पन्न कराई जाती है.
नवरात्रों में घट स्थापना: मान्यता है कि कलश में देवी-देवताओं, ग्रहों व नक्षत्रों का वास होता है और कलश को मंगल कार्य का प्रतीका माना गया है. कलश स्थापना करने से घर में सुख-समृद्धि आती है. मान्यता है कि नवरात्रि में कलश स्थापना कर सभी शक्तियों को निमंत्रण दिया जाता है. वो आती हैं नकारात्मकता ऊर्जा नष्ट हो जाती है.
कलश पूजन की विधिः पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि कलश पूजन की एक विधि है और उस विधि के अनुसार ही इसका पूजन होता है. उन्होंने बताया कि घटस्थापना के दिन सबसे पहले कलश की स्थापना होती है और शास्त्रों में स्वर्ण कलश रजत कलश ताम्र कलश और मिट्टी के कलश का क्रमानुसार महत्व बताते हुए वर्णन किया गया है.
इन सब सामग्री से होता पूजनः पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि कलश में सात तरह के धान जिन्हें सप्तधान कहा जाता है, उनको रखा जाता है. वे कहते हैं कि कलश के अंदर इन धान को मिलाकर रखा जाता है. अन्यथा इन सब धान के ऊपर भी कलश को स्थापित किया जा सकता है. सप्तधान में जो, तिल, कंगनी मूंग, चना, सावा होता है. इसके अलावा पंचरत्न जिसमें सोना, हीरा, नीलम का अंश भी कलश में रखना होता है. साथ ही पंच पल्लव यानी की 5 तरह के पत्ते जिसमें बरगद, पीपल, आम, पाकड़ और गूलर के पत्ते कलश में नारियल के साथ रखे जाते हैं. इसके साथ ही सर्वे सप्तदीप वसुंधरा यानी कि सात दीपों और प्रमुख नदियों सात समुद्रों के जल का भी आह्वान उस कलश में किया जाता है.
सब देवताओं का वासः पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि कलश को स्थापित करने के साथ ही भगवान वरुण का भी आह्वान किया जाता है. क्योंकि वह जल के देवता है और कलश में जल होता है. वे कहते हैं कि कलश के मुख में भगवान विष्णु, कंठ में भगवान शिव और मूल में ब्रह्मा का वास होता है. वहीं कलश के मध्य में देवियों का स्थान होता है. इसके अलावा चारों वेदों का भी कलश में आह्वान के जरिए स्थापना होती है. नवरात्रा में घट स्थापना में गणेश का पूजन और उसका महत्व तो है ही लेकिन विधि अनुसार शास्त्रों में गृह प्रवेश में भी स्थापित होने वाले कलश की पूजा होती है.