बीकानेर. पूरा देश आजादी का जश्न मना रहा है. आजादी के 75वें वर्ष (75 years of independence) को लेकर अमृत महोत्सव (amrit mahotsav) मनाया जा रहा है. आजादी के लिए हमारे स्वतंत्रता सेनानियों (freedom fighters) ने कड़ा संघर्ष किया. हर स्तर पर संघर्ष के साथ-साथ जागरुकता के लिए भी काम किया गया. आजादी से पहले देशभक्ति के जो गीत लिखे गए, उनमें गुलामी की जंजीरों को तोड़ने का आह्वान तो था ही, नव जागरण की कामना भी थी.
भारत को अंग्रेजी हुकूमत से आजाद होने में करीब 200 साल लग गए. 15 अगस्त 1947 को देश गुलामी के दंश से बाहर निकला. हमें आजादी मिले 8 दशक हो गए हैं. लेकिन आज भी गुलामी के उस दौर और संघर्ष की दास्तानें हमारे जेहन में है. आजादी के दिनों में संघर्ष करने वाले वे लोग अब बुजुर्ग हो चुके हों या इस जहान में न रहे हों, लेकिन वे जो गीत गुनगुनाया करते थे, आजादी के तराने गाया करते थे, वे गीत आज भी सुरक्षित हैं.
बीकानेर के राज्य अभिलेखागार ने 100 से ज्यादा उन गीतों का संग्रह किया है जो आजादी से पहले स्वतंत्रता सेनानी गाया करते थे और स्वाधीनता की अलख जगाया करते थे. उनमें से कई गीत तो आज भी घरों में मांगलिक अवसरों पर गाये जाते हैं. आजादी के लिए संघर्ष के दिनों में इन्हीं गीतों ने आवाम को जागरुक किया. स्वतंत्रता के संदेश को घर-घर में पहुंचाया. ये सभी गीत उन क्रांतिकारियों ने लिखे और गुनगुनाए जो देश की आजादी के लिए लड़ रहे थे.
पढ़ें- पाकिस्तानी स्वतंत्रता दिवस पर पाक रेंजर्स ने भेंट की सीमा सुरक्षा बल के जवानों को मिठाई
बीकानेर के राज्य अभिलेखागार उन गीतों को अब सोशल मीडिया के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया है. 100 से ज्यादा इन गीतों को राजस्थान राज्य अभिलेखागार ने सहेजा और ई-पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया है. अमृत महोत्सव में युवाओं के लिए इससे अच्छी सौगात क्या होगी. इस ई-पुस्तक को स्वाधीनता के गीत नाम से प्रकाशित किया गया है.
'सुनाएं तुम्हें हम कि क्या चाहते हैं, हुकूमत में रद्दोबदल चाहते हैं...मिटा देंगे जुल्मों की हस्ती को या फिर, हम खुद जहां से जाना चाहते हैं.' राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री और स्वतंत्रता सेनानी रहे जय नारायण व्यास (Jai Narayan Vyas ) की ये पंक्तियां आज भी लोगों की जुबान पर हैं. बिजोलिया आंदोलन के वक्त पथिक ने लिखा-
'भूखे की सूखी हड्डी से वज्र बनेगा महा भयंकर, ऋषि दधीचि को ईर्ष्या होगी नेत्र नया खोलेंगे शंकर, अन्नविहीन उदर की आंखें दावानल सी बनकर भीषण, भस्मीभूत कर देंगी उनको जो करते दीनों का शोषण..' बिजोलिया किसान आंदोलन (Bijolia kisan Movement) के प्रणेता और प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी विजय सिंह पथिक (Vijay Singh Pathik) की ये पंक्तियां आज भी लोगों के जेहन में हैं और रोंगटे खड़े कर देती हैं. इन गीतों से उस समय के राष्ट्रीय चिन्हों के बारे में भी जानकारी मिलती है, जैसे कि इन पंक्तियों से तब के झंडे के बारे में-
'प्राण मित्रों भले ही गंवाना पर यह झंडा नीचे ना झुकाना, तिरंगा है झंडा हमारा बीच चरखा चमकता सितारा, शान है यह इज्जत हमारी, सिर झुकाती जिसे हिंद सारी, तुम भी सब कुछ मुसीबत उठाना पर यह झंडा ना नीचे झुकाना..' हिंदी के साथ-साथ ही राजस्थानी भाषा में भी उस वक्त स्वाधीनता के संघर्ष से ओत-प्रोत गीत काफी चर्चित रहे, जैसे-
'नेता लाज्यो नानक जी भील, अरजी पंचा की लेता जाज्यो जी, दीजो महांकी अरजी जाकर परम पिता के हाथ, बूंदी की दुखिया प्रजा की कहियो सारी बात...' वाकई कितने कम शब्दों में तब के क्रांतिकारियों ने कितनी गूढ़ बातें जनमानस के अवचेतन में उतार दीं थीं.
राजस्थान राज्य अभिलेखागार के निदेशक डॉ महेंद्र खड़गावत (Dr. Mahendra Khadagawat) कहते हैं कि आजादी के ये गीत आज भी लोगों के जेहन में हैं. आजादी के अमृत महोत्सव के चलते अभिलेखागार ने भी आम लोगों तक इन ऐतिहासिक गीतों को नए सिरे से आज की आवाम तक पहुंचाने का काम शुरू कर दिया है. खड़गावत ने बताया कि अभिलेखागार ने पहले भी चयनित गीतों की पुस्तक का प्रकाशन किया था, अब इसे नए सिरे से सोशल मीडिया के जरिये लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है.