भीलवाड़ा. होली के 7 दिन के बाद शीतला अष्टमी मनाई जाती है. जिसे लेकर भीलवाड़ा में एक अनोखी परंपरा है. बता दें कि पिछले 200 वर्षों से शीतला अष्टमी पर शहर में मुर्दे की सवारी निकाली जाती है. जिसमें एक व्यक्ति को अर्थी पर लेटाकर उसकी शव यात्रा निकाली जाती है. शव यात्रा शहर के मुख्य मार्गों से होती हुई बड़े मन्दिर के पास पहुंचती है. जहां अर्थी को जला दिया जाता है.
प्रशासन द्वारा पुख्ता इंतजाम
बता दें कि मूर्दें की सवारी को देखते हुए पुलिस प्रशासन द्वारा पुख्ता इंतजाम किये जाते हैं और ड्रॉन कैमरों से भी विडियोग्राफी की जाती है. मनोरंजन के उद्देश्य से निकाली जाने वाले इस शव यात्रा में एक जिंदा व्यक्ति को अर्थी पर लेटा कर चार कंधों के सहारे चित्तौड़ वाली हवेली से शुरू होकर शहर के मुख्य मार्गों से होते हुए बड़े मंदिर के पास ले जाया जाता है.
ढोल नगाड़ों वाली शव यात्रा
इस शव यात्रा में लोग अर्थी के आगे ढोल नगाड़ों के साथ नाचते गाते, हंसी के गुब्बारे छोड़ते हुए और अश्लील फब्तियां कसते हुए चलते हैं. वहीं गुलाल के बादलों से पूरा शहर अट जाता है. यात्रा की विशेष बात यह है कि जिन मार्गों से यह यात्रा निकलती है उन मार्गों पर महिलाओं का प्रवेश वर्जित होता है.
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जिंदा हो जाता मृत व्यक्ति
यात्रा के दौरान मुर्दा बार-बार उठ खड़ा होता है और अर्थी से भागने का प्रयास करता है, लेकिन लोगों द्वारा उसे हर बार लिटा दिया जाता है. लेकिन अंतिम संस्कार के लिए बड़े मंदिर के पास बहाला में ले जाकर अर्थी को चिता पर लेटाने से कुछ क्षण पहले मुर्दा के रुप में जिंदा व्यक्ति उठ कर भाग जाता है. जिसके बाद अर्थी का अंतिम संस्कार कियाा जाता है. कई अनूठी परंपराओं को समेटे हुए राजस्थान की संस्कृति का यह एक अनूठा हिस्सा है जो केवल भीलवाड़ा में ही देखने को मिलता है.
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बीते कई सालों से ऐसा कार्यक्रम आयोजित करते आ रहे जानकीलाल ने बताया कि उदयपुर रियासत से ही यह परंपरा चल रही है. मेवाड़ क्षेत्र में शीतला अष्टमी की पूजा होती है. इस दिन होलिका के मंगेतर इलोजी की सांकेतिक शव यात्रा निकाली जाती है. यात्रा के दौरान चंग की थाप पर लोकगीत गाए जाते हैं. लोगों का उत्साह भी काफी देखने को मिलता है. यह त्योहार गुलाल और हंसी का है, इसलिए काफी संख्या में देश- प्रदेश से लोग यहां पहुंचते हैं.