भीलवाड़ा. खनन क्षेत्र से विस्थापितों को जिंक प्रबंधन ने सब्जबाग दिखाए. वादा किया कि जिन्दगी बेहतर होगी. प्रदूषण के साए से दूर रहेंगे और अपने घर के मालिक होंगे. पुरखों की जमीन से बेदखल होना आसान नहीं था लेकिन उज्जवल भविष्य और अगली पीढ़ी के सेहत की फिक्र ने 12 साल पहले नए गांव में बसने को मजबूर (Environmental law Violations By HZL In Rajasthan) कर दिया. भैरूखेड़ा पहुंचे जिसे HZL ने बसाया और नाम दिया सतपाल नगर. तकनीकी तौर पर और कानूनी तौर पर जो किया जाना चाहिए था वो नहीं हुआ. हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड ने भूमि का बिना कन्वर्शन किए हुए ही गांव बसा दिया.
इस जल्दबाजी और लापरवाही का दंश गांव वाले अब तक यानी 12 साल बीत जाने के बाद भी झेल रहे हैं. ग्रामीणों को आशियाने के पट्टे नही मिल रहे हैं. दस्तावेज की कमी के कारण सरकारी योजनाओं का भी लाभ नहीं उठा पा रहे हैं. लोन को भी तरस गए हैं ये ग्रामीण. स्पष्ट है कि भीलवाड़ा जिले के गुलाबपुरा उपखण्ड क्षेत्र स्थित हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड ने नियमों को ताक पर रखकर आम लोगों की भावनाओं को आहत किया है.
साल 2010 में हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड ने खनन क्षेत्र से 300 मीटर दूर ही नया भेरूखेड़ा गांव बसाया था जिसको सतपाल नगर के नाम से भी जानते हैं. इस दौरान नियमानुसार जो करना था उसको किया नहीं. गांव बसाने से पहले भूमि का रुपांतरण नहीं (Environmental Norm Violations at Bhilwara Villages) किया गया. नतीजा जो लोग यहां बसने आए उन्हें उनका बसेरे के सही कागज नहीं मिले यानी जमीन के पट्टे का अब तक एक दशक ज्यादा गुजर जाने के बाद भी इंतजार ही रह गया है. इस वजह से अहम सरकारी योजनाओं के लाभ से भी चूक गए हैं.
गांव वालों को अब भी पक्के कागजातों का इंतजार है. जिससे वो पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने घर में सुकून के दो पल गुजार सकें. कमला देवी, हीरा लाल गुर्जर, भगवानी, बृजलाल का दर्द उनकी आंखों से भी झलकता है. ऐसी कई कहानियां हैं जो मजबूरी को बयां करती हैं. कमला बताती हैं कि कैसे मकान बनाने के लिए उन्होंने गहने तक गिरवी रख दिए लेकिन अफसोस इस बात का ही है कि घर अपना होते हुए भी पराया ही लगता है.
पट्टे की समस्या को लेकर हुरड़ा पंचायत समिति प्रधान कृष्णा सिंह राठौड़ बताते हैं कि पट्टे बांटने की प्रक्रिया जारी है. बहुत जल्द सबकी समस्याओं को सुलझा लिया जाएगा. कहते हैं हमें जैसे ही दिक्कतों का पता चला हमने कन्वर्शन की फाइल की लगातार मॉनिटरिंग शुरू कर दी. फाइल आगे बढ़ा दी गई है. वो भी मानते हैं कि हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड ने बिना भूमि कन्वर्सन के भैरूखेड़ा गांव की जमीन आवंटित कर दी थी इसी कारण आज तक पूरे गांव में लगभग 80 से 120 परिवार पट्टे बिना आशियाने के दंश झेल रहे हैं. भाजपा विधायक जब्बर सिंह सांखला इसे जिंक की भारी गलती मानते हैं, साथ ही खुद कितने फिक्रमंद हैं इसका उदाहरण भी देते हैं. कहते हैं- मैंने इस मुद्दे को विधानसभा में भी रखा था.
हुरडा पंचायत समिति के विकास अधिकारी सरकारी नियमों, योजनाओं का हवाला देते हैं. कहते हैं- हमारे संज्ञान में मामल अब आया है. मानते हैं कि प्रशासन गांवो के संग अभियान के तहत सभी जगह पट्टे दिए गए लेकिन आगूचा पंचायत क्षेत्र स्थित भैरूखेड़ा गांव वासियों को पट्टे नहीं मिले क्योंकि वहां Conversion के नियम को फॉलो नहीं किया गया था. भीलवाड़ा जिला कलेक्टर आशीष मोदी कॉलोनी को लेकर तय किए गए रूल्स की दुहाई देते हैं. कहते हैं- डिवेलप कॉलोनी में दस्तावेजों की कुछ कमी होने के कारण लेआउट प्लान अनुमोदन नहीं हो पाया है उसकी कार्रवाई जारी है. हमारी कोशिश है कि भैरूखेड़ा के लोगों की जिंदगी में सुधार हो. कहते हैं- बिना कन्वर्शन किए कॉलोनी बसा दी जाती है तो उसमें पट्टे जारी नहीं हो सकते हैं जिससे मूलभूत सुविधा की व्यवस्था किया जाना संभव नहीं है. अगर हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड ने उस समय ही भूमि का रूपांतरण कर कॉलोनी बसाई होती तो आज इन लोगों को भी सरकारी योजना का लाभ आसानी से मिल जाता. आस बंधाते हैं कि लोगों की समस्यायों का जल्द ही समाधान कर लिया जाएगा.