भरतपुर. नोह कचरा प्लांट में नगर निगम कई सालों से कचरा फेंक रहा है. यहां हर दिन करीब 130 टन कचरा डंप होता है, लेकिन अबतक नियम के मुताबिक कचरे का निस्तारण शुरू नहीं हो पाया है. आलम ये है, कि कचरे में से उठने वाली बदबू और धुआं, आसपास के करीब आधा दर्जन गांवों के हजारों लोगों के लिए परेशानी का सबब गया है.
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नगर निगम के जिम्मेदारों का कहना है, कि उनकी ओर से पर्यावरण क्लीयरेंस के लिए सभी कागजी प्रक्रिया पूरी कर ली गई है, लेकिन ताज ट्रेपेजियम जोन (टीटीजेड) की ओर से अबतक पर्यावरण स्वीकृति नहीं मिलने की वजह से कचरा प्लांट संयंत्र का संचालन शुरू नहीं हो पा रहा है.
3 साल पहले हुए थे प्रोजेक्ट के कार्य आदेश
नगर निगम कमिश्नर नीलिमा तक्षक ने बताया, कि अक्टूबर 2016 में स्वच्छ भारत मिशन के तहत नोह में ठोस कचरा प्रसंस्करण संयंत्र के कार्य आदेश जारी हुए थे. करीब 7 हेक्टेयर जमीन में इस संयंत्र को संचालित किया जाना था. दिल्ली की रोल्स मैटेरियल हैंडलिंग सिस्टम प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को जिम्मा दिया गया, लेकिन ये क्षेत्र टीटीजेड में आने की वजह से पर्यावरण स्वीकृति नहीं मिल पाई.
कमिश्नर नीलिमा ने बताया, कि पर्यावरण स्वीकृति के लिए निगम की ओर से एक्सपर्ट अप्रेजल कमेटी (ईएसी) को एनवायरमेंट इंपैक्ट एसेसमेंट की फाइनल रिपोर्ट भी सबमिट कर दी गई है. जिसके बाद टीटीजेड ने प्रोजेक्ट से संबंधित जानकारी राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण मंडल भरतपुर के क्षेत्रीय अधिकारी से मांगी है, लेकिन संयंत्र को संचालित करने के लिए अबतक टीटीजेड की ओर से पर्यावरण स्वीकृति नहीं मिल पाई है, जिसकी वजह से इसका संचालन शुरू नहीं हो पाया है.
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हर दिन 130 टन कचरा डंप
भरतपुर शहर में रोजाना निगम के 50 ऑटो टिपर में भरकर करीब 130 टन कचरा नोह स्थित कचरा प्लांट पर डंप किया जा रहा है. 3 साल में यहां पर लाखों टन कचरा जमा हो चुका है, लेकिन अबतक कचरे का निस्तारण नहीं किया गया है.
आधा दर्जन गांव के हजारों लोग परेशान
कचरा प्लांट में लगातार डाले जा रहे कचरे की वजह से आसपास के गांव के लोग परेशान हैं. कचरे से उठने वाली बदबू और धुएं की वजह से नगला अस्तावन, नगला लोधा, नोह, नगला केवल, पीर नगर, मडरपुर, बछामदी समेत करीब आधा दर्जन से ज्यादा गांवों के हजारों लोगों को परेशानी हो रही है. बरसात के मौसम में ये परेशानी और बढ़ जाती है.
कचरा निस्तारण नहीं किए जाने को लेकर क्षेत्रवासियों की ओर से समय-समय पर विरोध प्रदर्शन किए गए हैं, लेकिन अबतक इस समस्या का समाधान नहीं हो पाया है. जिससे साफ होता है, कि जिम्मेदार आंख मूंदकर बैठे हैं.