भरतपुर. पूरे देश में कोविड-19 संक्रमण के बढ़ते हुए प्रकोप के बीच भरतपुर जिले का बयाना कस्बा इस महामारी पर प्रभावी नियंत्रण का नया मॉडल बनकर उभरा था. भीलवाड़ा के बाद कोरोना को चित करने वाला बयाना मॉडल अपने आप में खास रहा है. भीलवाड़ा की तरह ही बयाना मॉडल ने ना केवल तारीफें बटोरी, बल्कि ICMR की चर्चा में भी छाया रहा. इन तारीफों को ज्यादा दिन नहीं बीते हैं कि एक बार फिर बयाना चर्चा में है.
इस बार किसी मॉडल के रूप में नहीं, बल्कि दो जून की रोटी और बद से बदतर होते आर्थिक हालात के कारण चर्चा में है. बयाना का कसाईपाड़ा जहां तबलीगी जमात से जुड़े एक के बाद एक 99 मामले यकायक सामने आए तो भरतपुर प्रशासन के हांथ-पांव फूल गए. तबलीगी जमात के नाम से ही पूरे क्षेत्र में हड़कंप सा मच गया. इस पर तत्काल काबू पाने के लिए प्रशासन ने कई ठोस कदम उठाए और बयाना मॉडल का जन्म हुआ.
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बयाना का कसाईपाड़ा मोहल्ला 99 कोरोना पॉजिटिव मरीजों के चलते बीते करीब डेढ़ महीने से सुर्खियों में है. लेकिन अब यहां एक बच्चा के अलावा सभी 98 मरीज स्वस्थ होकर घर लौट चुके हैं. जिसके बाद से यहां की आबोहवा से बीमारी का डर लगभग खत्म हो गया है. कोरोना पर बात करते ही लोगों का दर्द रूंधे गले से निकलती भारी आवाज और आंखों से निकलते पानी के साथ बह आता है. वे साफ कहते हैं कि बीमारी तो ठीक हो गई, लेकिन रोजी-रोटी के लाले पड़ने लगे हैं. कोरोना ऐसा कलंक बना है कि ना कोई रोजगार देता है और ना ही कोई धंधा कर पा रहे हैं.
कसाईपाड़ा के लोगों का कहना है कि उन्होंने सरकार के हर नियम की पालना की थी और नेगेटिव होने के बाद सरकार ने उन्हें घर भी भेज दिया. लेकिन उनके मोहल्ला में करीब डेढ़ महीने तक लागू रहे कर्फ्यू की वजह से सभी के धंधे चौपट हो गए. इतना ही नहीं यहां के लोगों का कहना है कि अब कोरोना की वजह से कई जगह मुस्लिम लोगों से काम कराने से भी लोग बच रहे हैं.
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हालांकि, जिला प्रशासन ने करीब डेढ़ महीने बाद मंगलवार को कसाईपाड़ा से कर्फ्यू हटा दिया, लेकिन धारा 144 अभी भी लागू है. ईटीवी भारत ने कसाईपाड़ा पहुंचकर यहां के लोगों से मिलकर उनकी जरूरतों और कोरोना से उनके जीवन में आए बदलावों के बारे के जाना. मंगलवार को जिस समय ईटीवी भारत की टीम कसाईपाड़ा पहुंची यहां पर कर्फ्यू लगा हुआ था.
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काम कराने से बच रहे लोग
कसाईपाड़ा निवासी मेहरुद्दीन ने बताया कि वो कोरोना संक्रमण से पहले ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम करता था, लेकिन अब पता चला है कि ट्रांसपोर्ट कंपनी में दुकानदारों ने बाजार में मुस्लिम लोगों से सप्लाई नहीं कराने के लिए बोला है. ऐसे में कर्फ्यू हटने के बाद भी रोजगार करना बहुत मुश्किल होगा. मेहरुद्दीन का कहना है कि कोरोना से पहले वो जिस तरह सुकून से रहते थे अब वैसे ही सुकून से रहना चाहते हैं.
अब हमसे तो लोग नफरत करेंगे
कसाईपाड़ा के अफसर कुरेशी ने बताया कि कोरोना संक्रमण के चलते उनकी छवि ऐसी बन गई है कि लोग उनसे नफरत करेंगे. ऐसे में उनकी सरकार से मांग है कि वह कुछ ऐसा इंतजाम कराएं ताकि उनके बच्चों का रोजगार चल सके. उनका मांग है कि मोहल्लेवासियों के भले के लिए सरकार कोई कदम उठाए.
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रोजगार और धंधा चौपट
कसाईपाड़ा के मुकीम ने बताया कि उन्होंने सरकार के आदेशानुसार सभी नियमों की पालना की, लेकिन मोहल्ले में करीब डेढ़ महीने तक लगाए गए कर्फ्यू के कारण सभी का धंधा चौपट हो गया है. सभी के टैक्सियां और ऑटो खड़े हैं. सब्जी बेचने वाले ठेला चालकों के भी धंधे चौपट हो गए हैं. साथ ही मोहल्ले की दुकानें भी पूरी तरह से बंद रही है.
पहले भी स्वास्थ्य सही था, अब भी सही है
रईश कुरेशी ने बताया कि लॉकडाउन में सरकार ने खाने और राशन की कोई कमी नहीं रखी, लेकिन काम तो खुद के रोजगार से ही चलता है. रईश से जब उनके स्वास्थ्य के बारे में पूछा तो उनका कहना था कि जैसे पॉजिटिव आने के समय स्वास्थ्य था वैसा ही अब है. ना तो उन्हें खांसी, जुकाम, बुखार हुआ और ना ही कोई तकलीफ हुई.
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गौरतलब है कि भरतपुर के बयाना कस्बा के कसाईपाड़ा से कुल 99 कोरोना मरीज सामने आए थे, जिनमें से 98 मरीज स्वस्थ हो चुके हैं. सभी स्वस्थ मरीजों को प्रशासन ने घर भेज दिया है. लेकिन इस दौरान कसाईपाड़ा में लागू किए गए कर्फ्यू की वजह से जहां लोगों का रोजगार और धंधा ठप हो गया है, तो वहीं अब लोगों को बाहर भी रोजगार पाने में समस्या का सामना करना पड़ रहा है.
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ऐसे में बयाना के कसाईपाड़ा के लोगों ने सरकार से मांग की है कि मोहल्लावासियों के लिए कुछ ऐसे इंतजाम किए जाएं, जिससे उन्हें रोजगार करने और रोजगार पाने में किसी समस्या का सामना ना करना पड़े.