अलवर. जिले के भिवाड़ी के चोपानकी थाना क्षेत्र में दलित युवक हरीश जाटव की मॉबलीचिंग में मौत के मामले में पुलिस अभी तक आरोपियों को गिरफ्तार नहीं कर सकी है. युवक झिवाना गांव का रहने वाला था. बताया जा रहा है कि जाति विशेष के लोगों ने पीट-पीटकर हरीश को मौत के घाट उतार दिया था. इस मामले में मृतक हरीश के पिता रतिराम ने गुरुवार को विषाक्त खाकर आत्महत्या कर ली. परिजनों को मुताबिक हरीश को मारने वाले उसके नेत्रहीन बुजर्ग पिता पर मामला वापस लेने का दबाव बना रहे थे और आए दिन धमकी देते थे, जिससे परेशान होकर रतिराम ने आत्महत्या कर ली.
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इस दौरान परिजन रतिराम को लेकर अलवर के राजीव गांधी सामान्य अस्पताल में पहुंचे, लेकिन वहां डॉक्टर्स ने उसे मृत घोषित कर दिया. मामले की सूचना मिलते ही पुलिस के आला अधिकारी एडीएम द्वितीय और अन्य लोग सामान्य अस्पताल में पहुंचे. लेकिन परिजनों की मांग पर पुलिस ने मृतक के शव को टपूकड़ा के लिए एंबुलेंस से रवाना कर दिया. पुलिस ने कहा कि परिजन टपूकड़ा में पोस्टमार्टम कराना चाहते हैं.
बता दें कि अलवर के भिवाड़ी के चोपानकी थाना क्षेत्र के फालसा गांव में 16 जुलाई की रात पुलिस ने हरीश नाम के युवक को गंभीर हालत में भिवाड़ी सीएससी में भर्ती कराया था. हालत गंभीर होने पर उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल के लिए रेफर कर दिया गया था. 18 जुलाई को इलाज के दौरान हरीश की मौत हो गई थी. इस दौरान हरीश के पिता रतिराम ने बताया था कि गांव के कुछ लोगों ने हरीश को जमकर पीटा था, जिससे उसकी मौत हो गई थी.रतिराम ने जलालुद्दीन नाम के व्यक्ति और उसकी पत्नी के साथ ही कुछ लोगों के खिलाफ पुलिस को लिखित एफआईआर दी थी. पुलिस शुरुआत में इस पूरे मामले को दबा रही थी. 19 जुलाई को अलवर पुलिस अधीक्षक ने एक प्रेस वार्ता करते हुए पूरे घटनाक्रम को सामने सड़क हादसा बताया था, लेकिन फिर खुद पुलिस ने उस मामले को हत्या में दर्ज किया.
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मृतक रतिराम के बेटे दिनेश जाटव ने बताया कि फालसा गांव में एक महिला को बाइक से टक्कर लगने के बाद उसके भाई को पीट-पीट कर घायल कर दिया गया था. इसके बाद उसकी दिल्ली के अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई थी. अलवर पुलिस इस मामले को एक्सीडेंट का रूप देने में जुटी हुई थी. इसका विरोध किए जाने पर आईजी के निर्देश पर 302 में हत्या का मामला दर्ज हुआ था. साथ ही पुलिस की सिफारिश पर जिला प्रशासन ने मृतक के परिजनों को 4 लाख 12 हजार रुपये की सहायता राशि दी गई थी. इसका मतलब पुलिस ने अप्रत्यक्ष रुप से मॉब लिंचिंग मान लिया था. इसके बाद पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तारी नहीं किया और आरोपी पक्ष के द्वारा रतिराम पर मुकदमा वापस लेने का दबाव बनाकर धमकी दी जा रही थी. इसकी पुलिस से शिकायत भी की गई, लेकिन पुलिस कोई कार्रवाई नहीं कर रही थी. आरोप ये भी है कि पुलिस पीड़ित पक्ष को धमकाकर भगा देती थी.
मृतक रतिराम के पुत्र दिनेश जाटव का कहना है पुलिस ने उसके भाई के हत्यारों को गिरफ्तार नहीं किया, इसलिए उनके हौंसले बुलंद हो गए. वो आए दिन उनके पिता को जान से मारने की धमकी देते और मामला वापस लेने के लिए दबाव बनाते थे. भाई की मौत के बाद परिवार वैसे ही टूट चुका था. परिवार में कोई कमाने वाला नहीं बचा था. पिता न्याय के लिए कई मंत्री और अधिकारियों के चक्कर लगा चुके थे, लेकिन कहीं से कोई मदद नहीं मिली. दिनेश ने विलाप करते हुए कहा कि उनके परिवार में अब कोई नहीं बचा है. पुलिस पूरे मामले को दबाने में लगी हुई है. पुलिस अगर शुरुआत में उसके भाई के कातिलों को पकड़ लेती तो उनके पिता को आत्महत्या नहीं करनी पड़ती. साथ ही कहा कि सरकार को उनकी मदद करनी चाहिए और आरोपियों को सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए.