अलवर. भारतीय वन राज्य रिपोर्ट, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की तरफ से हाल ही में एक रिपोर्ट (Ministry of Environment and Climate Change Report) जारी की गई है. भारतीय वन सर्वेक्षण के द्विवार्षिक प्रकाशन के अनुसार रणथंभौर में 44.57 वर्ग किलोमीटर और सरिस्का में 15.95 वर्ग किलोमीटर के हरित आवरण के कुल क्षेत्रफल में कमी आई है. सरकार की पुरानी डिजिटल रिपोर्ट के अनुसार टाइगर रिजर्व सीमा के क्षेत्रों के संबंध में वन क्षेत्र रणथंभौर में 45.39 प्रतिशत और सरिस्का में 66.83 प्रतिशत था. यह चिंता की बात है कि जंगल में जंगल क्षेत्र कम हो रहा है.
हालांकि, वन विभाग के अधिकारियों की मानें तो सरिस्का क्षेत्र में सरकार के आदेश पर विलायती बबूल को हटाने का काम (Removal of Solanaceous Acacia in Sariska) किया गया है. जिस क्षेत्र से विलायती बबूल हटी है, उस क्षेत्र को जंगल विहीन माना गया है. जबकि रणथंभौर में गांव का रीलोकेशन करने के लिए पेड़ों को हटाया गया है. अलवर, बीकानेर, हनुमानगढ़ और जयपुर जिलों में घने जंगल के साथ भूमि के पैच पाए गए और उनका आकार 78.15 वर्ग किलोमीटर पर अपरिवर्तित रहा. जबकि मामूली घने और खुले वन क्षेत्र में कुछ परिवर्तन मिला है.
केंद्र सरकार की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में कुल 16,645.96 वर्ग किलोमीटर के हरित क्षेत्र में राज्य के कुल क्षेत्रफल का 4.87 प्रतिशत शामिल था. रिपोर्ट में विभिन्न श्रेणियों में दर्ज वन क्षेत्र के अंदर और बाहर वन क्षेत्र के विस्तार का विश्लेषण किया गया है. उसमें साफ है कि प्रदेशभर में हरित आवरण में 2545 वर्ग किलोमीटर की मामूली वृद्धि हुई है. इसके अलावा पेड़ों की पांच आक्रामक प्रजातियों ने दर्ज वन क्षेत्र के कुल 511 वर्ग किलोमीटर में फैले हुए हैं.
यहां वन और वन्यजीव विशेषज्ञों ने कृषि के लिए अतिक्रमण और व्यापक क्षेत्रों में जानवरों के अनियंत्रित चराई के लिए वन क्षेत्र के सिकुड़ते आकार को जिम्मेदार ठहराया है. वन प्रेमियों व विशेषज्ञों के अनुसार चारागाह भूमि काफी हद तक नष्ट हो गई थी. इसलिए वन भूमि पर चराई का अत्यधिक दबाव था. जहां भी जंगल में विस्तार दिखाई दे रहा था, उस क्षेत्र में झाड़ियां ज्यादा हैं. इससे वन्यजीव व वातावरण को कोई फायदा नहीं मिलता है.
रणथंभौर व सरिस्का का खास स्थान...
देश-विदेश से लाखों लोग घूमने और जंगल का आनंद लेने के लिए (Tourist Places in Rajasthan) रणथंभौर व सरिस्का आते हैं. दोनों ही जगहें अपना खास स्थान रखती हैं और दोनों ही टाइगर रिजर्व हैं. यहां पर हजारों प्रकार के पौधों-वनस्पतियों की प्रजातियां हैं. साथ ही बाघ, पैंथर, नीलगाय, हिरण, सांभर सहित फनी जीवों की कई प्रजातियां पाई जाती हैं.
जिम्मेदार अधिकारियों ने यह कहा...
वन विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों ने कहा कि सरिस्का में विलायती बबूल को जंगल से हटाया गया है. विलायती बबूल हटाने का काम बड़े स्तर पर चलता है. विलायती बबूल को जड़ से उखाड़ा जाता है. तीन साल तक यह प्रक्रिया चलती है. विलायती बबूल अपने आसपास के क्षेत्र को बंजर बना देता है. अन्य पेड़-पौधों को पनपने नहीं देता है व वनस्पतियों को समाप्त करता है. इसलिए बड़े स्तर पर तेजी से फैलते विलायती बबूल को हटाने की प्रक्रिया चल रही है. जिस भूमि से विलायती बबूल को हटाया गया है, उस जगह पर प्लांटेशन का काम भी चल रहा है. जबकि रणथंभौर में गांव को रीलोकेट किया गया है. इसलिए पेड़-पौधों को हटाकर वहां बस्ती बसाई गई है, जिसके कारण वन क्षेत्र कम हुआ है.
हर साल लगाए जाते हैं पौधे...
वन विभाग की तरफ से हर साल लाखों पेड़ लगाए जाते हैं, लेकिन उनमें से आधे पेड़ ही लग पाते हैं. लाखों पौधे नष्ट हो जाते हैं. इसके अलावा हाईवे व नए सड़क मार्गों के लिए भी (Trees Cutting for Highway Construction in Rajasthan) लाखों पेड़ काटने की प्रक्रिया होती है.