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स्पेशल रिपोर्टः पुलिस पर हमलों के मामले में अलवर पहला नंबर, दूसरे स्थान पर भरतपुर

क्राइम के लिहाज से देश भर में बदनाम अलवर पुलिस पर होने वाले हमलों में भी सबसे आगे है. 4 साल के दौरान प्रदेश भर में पुलिस पर 1465 हमले की घटनाएं हुई. इनमें अकेले अलवर में 150 मामले सामने आए. देखिए स्पेशल रिपोर्ट

पुलिस पर हमलों के मामले में अलवर जिला आगे,  Alwar district is on top in case of attacks on police
पुलिस पर हमलों के मामले में अलवर जिला आगे
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Published : Nov 30, 2019, 10:05 PM IST

अलवर. क्राइम के लिहाज से देश भर में बदनाम अलवर पुलिस पर होने वाले हमलों में भी सबसे आगे है. 4 साल के दौरान प्रदेश भर में पुलिस पर 1465 हमले की घटनाएं हुई. इनमें अकेले अलवर में 150 मामले सामने आए. जबकि दूसरे स्थान पर भरतपुर है, जहां भरतपुर में पुलिस पर हमले के 110 मामले सामने आए हैं.

पुलिस पर हमलों के मामले में अलवर जिला आगे

अलवर जिले में हर साल 18 हजार मामले दर्ज होते हैं. जबकि पूरे प्रदेश में 15 से 16 हजार मामले दर्ज होते हैं. अलवर जिले में आए दिन बड़ी घटनाएं सामने आती है. ऐसे में पुलिस पर होने वाले हमलों में भी अलवर सबसे आगे है.

4 साल में प्रदेशभर में पुलिस पर हमलों के 1465 घटनाएं हुई

पुलिस के 4 साल के आंकड़ों पर नजर डालें तो प्रदेश में पुलिस पर हमले के 1465 वारदातें हुई. इस हिसाब से प्रतिदिन एक घटना सामने आई है. इसमें अलवर सबसे आगे है. अलवर में 4 साल के दौरान पुलिस पर हमले के 150 मामले सामने आए हैं. जबकि दूसरे स्थान पर भरतपुर है. भरतपुर में 110 मामले दर्ज हुए.

1465 में से 957 आरोपी फरार

वहीं, प्रदेश के सिरोही जिले में पुलिस पर हमले के सबसे कम मामले सामने आए. सिरोही में 4 साल के दौरान 6 बार पुलिस पर हमले हुए हैं. उधर, पुलिस पर हमला करने वाले बदमाश अब भी फरार हैं. 1465 वारदातों के 957 आरोपी आज भी पुलिस रिकॉर्ड में फरार चल रहे हैं. 54 मामलों में एफआर लग चुकी है तो वहीं 176 की जांच अब भी लंबित है. पुलिस की तरफ से अभी तक 1235 मामलों में ही चालान पेश किया गया है.

अवैध खनन और सीमावर्ती जिला है पुलिस पर हमले का मुख्य कारण

अलवर में पुलिस पर सबसे ज्यादा हमले होने का मुख्य कारण अवैध खनन और सीमावर्ती जिला है. वन विभाग और खनन विभाग की कार्रवाई में आए दिन पुलिस पर हमले की घटनाएं होती है. तो वहीं सीमावर्ती जिला होने के कारण अलवर में क्राइम का ग्राफ प्रदेश के अन्य जिलों की तुलना में सबसे ज्यादा है. ऐसे में सरकार की तरफ से अलवर पुलिसिंग में खास बदलाव की आवश्यकता है.

अलवर में 2 जिला बनने के बाद भी नहीं रुक रहा क्राइम

पुलिस के लिहाज से अलवर में 2 जिले बनने के बाद भी घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही है. अलवर में बदमाश बेखौफ हो चुके हैं. बेखोफ बदमाश ताबड़तोड़ घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं. प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत खुद खुले मंच से इस बात को स्वीकार कर चुके हैं.

अलवर. क्राइम के लिहाज से देश भर में बदनाम अलवर पुलिस पर होने वाले हमलों में भी सबसे आगे है. 4 साल के दौरान प्रदेश भर में पुलिस पर 1465 हमले की घटनाएं हुई. इनमें अकेले अलवर में 150 मामले सामने आए. जबकि दूसरे स्थान पर भरतपुर है, जहां भरतपुर में पुलिस पर हमले के 110 मामले सामने आए हैं.

पुलिस पर हमलों के मामले में अलवर जिला आगे

अलवर जिले में हर साल 18 हजार मामले दर्ज होते हैं. जबकि पूरे प्रदेश में 15 से 16 हजार मामले दर्ज होते हैं. अलवर जिले में आए दिन बड़ी घटनाएं सामने आती है. ऐसे में पुलिस पर होने वाले हमलों में भी अलवर सबसे आगे है.

4 साल में प्रदेशभर में पुलिस पर हमलों के 1465 घटनाएं हुई

पुलिस के 4 साल के आंकड़ों पर नजर डालें तो प्रदेश में पुलिस पर हमले के 1465 वारदातें हुई. इस हिसाब से प्रतिदिन एक घटना सामने आई है. इसमें अलवर सबसे आगे है. अलवर में 4 साल के दौरान पुलिस पर हमले के 150 मामले सामने आए हैं. जबकि दूसरे स्थान पर भरतपुर है. भरतपुर में 110 मामले दर्ज हुए.

1465 में से 957 आरोपी फरार

वहीं, प्रदेश के सिरोही जिले में पुलिस पर हमले के सबसे कम मामले सामने आए. सिरोही में 4 साल के दौरान 6 बार पुलिस पर हमले हुए हैं. उधर, पुलिस पर हमला करने वाले बदमाश अब भी फरार हैं. 1465 वारदातों के 957 आरोपी आज भी पुलिस रिकॉर्ड में फरार चल रहे हैं. 54 मामलों में एफआर लग चुकी है तो वहीं 176 की जांच अब भी लंबित है. पुलिस की तरफ से अभी तक 1235 मामलों में ही चालान पेश किया गया है.

अवैध खनन और सीमावर्ती जिला है पुलिस पर हमले का मुख्य कारण

अलवर में पुलिस पर सबसे ज्यादा हमले होने का मुख्य कारण अवैध खनन और सीमावर्ती जिला है. वन विभाग और खनन विभाग की कार्रवाई में आए दिन पुलिस पर हमले की घटनाएं होती है. तो वहीं सीमावर्ती जिला होने के कारण अलवर में क्राइम का ग्राफ प्रदेश के अन्य जिलों की तुलना में सबसे ज्यादा है. ऐसे में सरकार की तरफ से अलवर पुलिसिंग में खास बदलाव की आवश्यकता है.

अलवर में 2 जिला बनने के बाद भी नहीं रुक रहा क्राइम

पुलिस के लिहाज से अलवर में 2 जिले बनने के बाद भी घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही है. अलवर में बदमाश बेखौफ हो चुके हैं. बेखोफ बदमाश ताबड़तोड़ घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं. प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत खुद खुले मंच से इस बात को स्वीकार कर चुके हैं.

Intro:अलवर
क्राइम के लिहाज से देश भर में बदनाम अलवर पुलिस पर होने वाले हमलों में भी सबसे आगे है। 4 साल के दौरान प्रदेश भर में पुलिस पर 1465 हमले की घटनाएं हुई। इनमें अकेले अलवर में 150 मामले सामने आए। जबकि दूसरे स्थान पर भरतपुर है। भरतपुर में पुलिस पर हमले के 110 मामले सामने आए हैं।


Body:अलवर जिले में हर साल 18 हजार मामले दर्ज होते हैं। जबकि पूरे प्रदेश में 15 से 16 हजार मामले दर्ज होते हैं। अलवर जिले में आए दिन बड़ी घटनाएं सामने आती है। ऐसे में पुलिस पर होने वाले हमलों में भी अलवर सबसे आगे है। पुलिस के 4 साल के आंकड़ों पर नजर डालें तो प्रदेश में पुलिस पर हमले के 1465 वारदातें हुई। इस हिसाब से प्रतिदिन एक घटना सामने आई है। इसमें अलवर सबसे आगे है। अलवर में 4 साल के दौरान पुलिस पर हमले के 150 मामले हुए। जबकि दूसरे स्थान पर भरतपुर है। भरतपुर में 110 मामले दर्ज हुए। प्रदेश के सिरोही जिले में पुलिस पर हमले के सबसे कम मामले सामने आए। सिरोही में 4 साल के दौरान 6 बार पुलिस पर हमले हुए हैं। पुलिस पर हमला करने वाले बदमाश अब भी फरार हैं। 1465 वारदातों के 957 आरोपी आज भी पुलिस रिकॉर्ड में फरार चल रहे हैं। 54 मामलों में एफआर लग चुकी है। तो वहीं 176 की जांच अब भी लंबित है। पुलिस की तरफ से अभी तक 1235 मामलों में ही चालान पेश किया गया है।


Conclusion:अलवर में पुलिस पर सबसे ज्यादा हमले होने का मुख्य कारण अवैध खनन व सीमावर्ती जिला है। वन विभाग व खनन विभाग की कार्रवाई में आए दिन पुलिस पर हमले की घटनाएं होती है। तो वहीं सीमावर्ती जिला होने के कारण अलवर में क्राइम का ग्राफ प्रदेश के अन्य जिलों की तुलना में सबसे ज्यादा है। ऐसे में सरकार की तरफ से अलवर पुलिसिंग में खास बदलाव की आवश्यकता है। पुलिस के लिहाज से अलवर में 2 जिले बनने के बाद भी घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही है। अलवर में बदमाश बेखौफ हो चुके हैं। बेख़ौफ़ बदमाश ताबड़तोड़ घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत खुद खुले मंच से इस बात को स्वीकार कर चुके हैं।

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