पुष्कर(अजमेर): धार्मिक नगरी पुष्कर (Pushkar) में भी महिलाओ को सजते -संवरते देखकर सात समंदर पार से आई विदेशी बालायें भी अपने आपको रोक नहीं सकीं. आम राजस्थानी महिलाओं के अलावा कई विदेशी सैलानी भारतीय परिवेश और परम्परा अनुसार घुलते मिलते नजर आए. भारतीय संस्कृति में रूप चतुर्दशी (Roop Chaturdarshi) का क्या महत्व है उसको भी बखूबी समझने का प्रयास किया.
भारतीय परम्परा से विभोर सैलानी
पाश्चात्य संस्कृति से भारत की संस्कृति को आत्मसात कर रही विदेशी पर्यटक डेनबरगा ऑस्ट्रेलिया से भारत भ्रमण के लिये आयी थी. डेनबरगा ने बताया कि वह पिछले कुछ वर्षों से लगातार भारत आ रही है. इसी कारण से उसे भारत के त्योहारों के बारे में जानकारी है. विदेशी सैलानी डेनबरगा बड़े हर्ष से कहती हैं कि उन्हें भारतीय धार्मिक रीति रिवाज आकर्षित करते हैं. उन्होंने रूप चतुर्दशी के बारे में जाना और इन पलों को यादगार बनाने के लिए राजस्थानी रंग में रंगने का फैसला लिया.
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ये है मान्यता
मान्यता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन अत्याचारी नरकासुर राक्षस का वध कर उसके चगुल में बंदी बनाई गई 17 हजार 1 सौ रानियों को भगवान कृष्ण ने मुक्त कराया था. तब इन रानियों ने चंगुल से मुक्त होने के बाद सम्मान का अनुभव किया और जड़ी बूटियों से स्नान कर श्रृंगार किया था. तब से स्त्रियां विशेष श्रृंगार कर अपने पति की दीर्घायु की कामना करते हुए व्रत भी रखती हैं. इसी कारण से रूप चतुर्दशी पर सजा का विशेष महत्व है.
इससे जुड़ी एक और मान्यता है. राजा रंतिदेव और यमदूत की कथा में वर्णित एक प्रसंग का जिक्र किया जाता है. जिसके अनुसार नर्क चतुर्दशी के दिन ब्रह्म भोज करवाने तथा दक्षिण दिशा में घर के बाहर दीया जलाने से नर्क गामी पापों से मुक्ति मिलती है.