अजमेर. अजमेर कई धर्म और समाज के लोगों की तीर्थ स्थल बन चुका है. भारत पाकिस्तान विभाजन के बाद सिंध से आए सिंधी समाज के लोगों ने भी अजमेर में एक बड़ा तीर्थ स्थल स्थापित कर लिया है. सिंध प्रांत के जतोई शहर के संत दादूराम साहिब के अनुयायियों ने ट्रस्ट के माध्यम से जताई दरबार की स्थापना की.
अजमेर में विभिन्न धर्म और समाज के लोग रहते हैं. यूं कहें कि कोई भारत देखना चाहता है तो अजमेर को देख ले. अजमेर की पहचान धार्मिक पर्यटन नगरी के रूप में है. यहां दो प्रमुख धार्मिक स्थल हैं. सभी तीर्थों के गुरु पुष्कर में विश्व का इकलौता जगतपिता ब्रह्मा का मंदिर है. वहीं अजमेर में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह है. यहां जैन समाज ने भी नारेली तीर्थ स्थापित किया है. पारसी समाज का भी मंदिर है. ईसाई समाज के कई प्राचीन चर्च अजमेर में हैं.
पिछले कुछ वर्षों में अजमेर सिंधी समाज का भी तीर्थ स्थल के रूप में उभर गया है. अजमेर शहर सिंधी बाहुल्य है. यू तो सिंधी समाज के दर्जनों आश्रम अजमेर में हैं. लेकिन नगीना बाग में जतोई दरबार सिंधी समाज के लिए बड़ा आस्था का केंद्र बन चुका है. बताया जाता है कि सिंध प्रांत में जतोई शहर में जतोई दरबार साहिब अत्यंत प्रसिद्ध थे. यहां कई बड़े महात्मा हुए.
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सन 1930 से पहले जतोई शहर में बाढ़ आने पर वह जलमग्न हो गया. तब जतोई दरबार को मिठियाणी में स्थापित किया गया. स्वामी विट्ठल दास के ब्रह्मलीन होने पर सन 1934 में स्वामी दादूराम शाहिद को गद्दीनशीन किया गया. संत दादू राम साहेब का जन्म सिंध के देपारजन में हुआ था. 12 वर्ष की आयु में जब बड़े भाई ने उन्हें स्कूल में पढ़ने जाने से रोका तब उनके मन में वैराग्य आ गया. तब उन्होंने जतोई दरबार की शरण ली थी. भारत पाकिस्तान विभाजन के बाद संत दादूराम साहिब मुंबई भरूंच तथा मंदसौर होते हुए तीर्थ नगरी अजमेर आ गए. यहां उन्होंने दरबार की स्थापना 'बड़े साध' के नाम से नगीना बाग में की.
संत दादू राम साहिब बहुत ही दानी थे. वे कार्तिक माह में गुरु नानक जयंती और शिवरात्रि पर भगवान शिव शंकर का मेला दरबार साहिब में लगाते थे. वह परंपरा आज भी जतोई दरबार में जारी है. 9 अक्टूबर 1959 को संत दादूराम साहिब ने अपना शरीर त्याग दिया. इनके बाद संत किशनदास साहिब को गद्दी पर बिठाया गया. लेकिन वे गद्दी पर न बैठकर दरबार के सेवादार के रूप में कार्य करने लगे.
संत दादूराम ने बड़े साद की नींव रखी थी. वह अब एक विशाल जतोई दरबार के रूप में उभर चुकी है. जतोई दरबार में एक और भगवान शंकर की विशाल मूर्ति स्थापित है. वहीं वैष्णो देवी का गुफानुमा मंदिर है. सिंधी समाज की गहरी आस्था जतोई दरबार से जुड़ी हुई है. यही वजह है कि संत दादूराम साहिब ट्रस्ट की ओर से सिंधी समाज के आराध्य देव पूज्य भगवान झूलेलाल की 21 फुट ऊंची प्रतिमा भी जताई दरबार में स्थापित हो चुकी है. पूज्य झूलेलाल जयंती समारोह समिति के अध्यक्ष कंवल प्रकाश किशनानी बताते हैं कि भगवान झूलेलाल की मूर्ति दुनिया में और कहीं नहीं है. संतों एवं समाज के प्रबुद्ध जनों की उपस्थिति में भगवान झूलेलाल की विशाल मूर्ति स्थापित की गई है.
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अजमेर शहर में सिंधी समाज के लोगों की संख्या बहुत अधिक है. यही वजह है कि समाज की तीन दर्जन से ज्यादा संस्थाएं भी हैं. 3 से 18 अप्रैल तक सिंधी समाज चेटीचंड महोत्सव मना रहा है. अजमेर के लिए यह गौरव का विषय है कि कई धर्म समाज की तीर्थ नगरी में सिंधी समाज का तीर्थ भी अजमेर बन चुका है. सिंधी समाज के लोगों में काफी उत्साह का है. समाज की ओर से संतों का सम्मान किया गया. वहीं चेटीचंड महोत्सव का आगाज भी हो गया. कोरोना महामारी को देखते हुए समाज के लोगों की कार्यक्रम में उपस्थिति कम ही रखी.
जतोई दरबार में देश में रहने वाले सिंधी समाज की ही नहीं बल्कि विदेशों में रह रहे समाज के लोगों की भी गहरी आस्था जुड़ी हुई है. इष्ट देव भगवान झूलेलाल की विशाल मूर्ति जतोई दरबार में स्थापित होने से सिंधी समाज का गौरव ही नहीं, बल्कि अजमेर का मान भी बढ़ा है.