अजमेर: चौहान शासकों की बसाई हुई अजमेर नगरी के बीचों बीच खूबसूरत आनासागर झील (Anasagar Lake) अपने में एक वैभवशाली इतिहास (History Of Ajmer) समेटे हुए है. इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें तो अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान (Prithvi Raj Chauhan) के दादा अरणोराज ने सन 1135 से 1150 ईस्वी में आना सागर झील का निर्माण करवाया था. यह झील मानव निर्मित है.
आनासागर झील पर बांध भी बनाया गया था.चौहान वंश के बाद मुगल शासक जहांगीर ने 1637 में बांध के ऊपर ही बारादरी बनवाई. यहां पांच बारादरी और एक हमाम ( स्नान घर ) है. वही खामखां के तीन दरवाजे और सहेली बाजार भी मौजूद है. बारादारी के नीचे की और एक बाग है. जिसे कभी दौलत बाग (Daulat Bagh) के नाम से जाना जाता था आज उसे सुभाष उद्यान (Subhash Udyan ) के नाम से जानते हैं.
ताज महल से पहले बनी थी बारादरी
इतिहासकार डॉ टीके माथुर बताते है कि मकराना के संगमरमर से ही ताजमहल का निर्माण हुआ था. जहांगीर ने आनासागर झील पर बने बांध पर 5 बारादरी का निर्माण मकराना के संगमरमर से करवाया था. बताया जाता है कि ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रतिनिधि के तौर पर सर थॉमस रो ने हिंदुस्तान में व्यापार की स्वीकृति मांगने के लिए अजमेर जहांगीर से मिलने आया था तब बारादरी बनने से पूर्व उसे आनासागर बांध पर ही ठहराया गया था. उस दौरान तेज बारिश और तूफान आने पर सर थॉमस रो ने बादशाह जहांगीर से मदद मांगी थी तब जहांगीर ने उसे अजमेर के किले में ठहरने की स्वीकृति दी थी. यह वो ऐतिहासिक घटना क्रम है जिसने हिंदुस्तान की तकदीर बदल दी थी. जहाँगीर ने अकबर के किले से ही ईस्ट इंडिया कंपनी को हिंदुस्तान में व्यापार करने की स्वीकृति दी थी. बारादरी के निर्माण के बाद जहांगीर के अजमेर प्रवास के दौरान यही वक़्त बीता करता था. बड़ी बारादरी में दरबार और शेष बारादरी में उसके दफ्तर लगा करते थे. जहाँगीर के बाद शाहजहां ने बारादरी के नीचे सुंदर बाग का निर्माण करवाया था. बारादरी पर जहाँगीर ने दूरदराज से कई किस्म के पौधे मंगवाकर भी लगवाए थे.
पुष्कर होली जहांगीर को थी पसंद
पुष्कर के पवित्र माहौल से जहांगीर काफी प्रभावित था. जहाँगीर ने एक छोटा महल भी पुष्कर में बनवाया था. उस दौर में पुष्कर में खेली जाने वाली होली और गुलाब के बारे में उसने सुना था. तब वह अपने पत्नी नूरजहां के साथ पुष्कर भी रहा. यहां नूरजहां ने पुष्कर के गुलाब से इत्र बनवाया था. तब से पुष्कर में गुलाब का इत्र बनना शुरू हुआ जो आज भी अपनी महक से लोगों को आकर्षित कर रहा है.
जहांआरा को बेहद पसंद था आनासागर को बारादरी से निहारना
जहांआरा बादशाह जहांगीर की पोती और शाहजहां बेटी थी. जहांआरा का अजमेर में लंबा वक्त बिता. उसे ख्वाजा गरीब नवाज में अक़ीदा ( विश्वास ) था. अजमेर रहते उसका वक़्त सबसे ज्यादा बारादरी और दौलत बाग में ही बीता करता था. इतिहासकार डॉ टीके माथुर बताते है कि जहांआरा पूरे जीवन अविवाहित थी. अजमेर में ही उसने अपना शरीर छोड़ा था उसकी मजार दरगाह परिसर में आज भी मौजूद है.
माथुर ने बताया कि जहांआरा को नृत्य संगीत देखने का काफी शौक था. दरगाह से सुबह इबादत के बाद वह रात तक बारादरी पर ही नृत्य संगीत की महफिलें देखा करती थी. उन्होंने बताया कि उस वक़्त लाहौर में मीना बाजार प्रसिद्ध था जहां केवल महिलाओं का ही प्रवेश रहता था. उसी प्रकार अजमेर दौलत बाग और बारादरी के एक ओर बनाया गया सहेली बाजार में भी केवल महिलाओं का ही प्रवेश था. सहेली बाजार की बनावट भी इस प्रकार थी कि कोई भी कही से भीतर का माहौल देख नही सकता.
खामखां ( बेवजह ) के तीन दरवाजे
आनासागर झील से सट कर बनी मुगलकालीन खूबसूरत 5 बारादरी में से एक बारादरी है. जिसमे केवल तीन दरवाजे ही है जिन्हें खामखां के दरवाजे कहा जाता है. माना जाता है कि अजमेर में मराठा काल में इस बारादरी के अन्य अवशेषों का उपयोग कही अन्य स्थानों पर किया गया है. हालांकि इसके प्रमाण नही मिलते है. मगर आज भी यह संगमरमर के तीन दरवाजे आकर्षण बने है.
सहेली बाजार की हुई दुर्दशा
आज़ादी के बाद से ही पुरातत्व महत्त्व को संरक्षित की जिम्मेदारी जिनके कांधो पर थी उन्होंने कभी सहेली बाजार की सुध नही ली. लिहाजा सहेली बाजार खानाबदोश और नशेडियों के साथ साथ अनैतिक कार्यों का अड्डा लंबे समय तक बना रहा.
पिछले कुछ साल में सुभाष उद्यान को नया स्वरूप दिया गया तो कटीली झाड़ियां और गंदगी से लबरेज सहेली बाजार की सफाई हुई. लेकिन उसका जीर्णोद्धार नहीं हुआ. हालात यह है कि पिछले कुछ सालों से सहेली बाजार के उद्धार को भी ताला लग गया है. इतिहास की अमूल्य धरोहर आज भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है.