अजमेर. विश्व विख्यात सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के सालाना उर्स से पहले झंडे चढ़ाने की रस्म की अदायगी पारंपरिक रस्मों के साथ निभाई गई. इस अवसर पर अकीदतमंदों का सैलाब उमड़ पड़ा. दरगाह की सबसे ऊंची ईमारत बुलंद दरवाजे पर भीलवाड़ा के गौरी परिवार की ओर से झंडा (Flag hoisting at Buland Darwaza) चढ़ाया गया. इसके साथ ही 810वें उर्स की अनौपचारिक शुरुआत हो गई है.
शनिवार का दिन ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में माथा टेकने वालों के लिए विशेष रहा. वर्षभर ख्वाजा गरीब नवाज के उर्स का बेसब्री से इंतजार करने वाले लोगों के लिए वह घड़ी आ गई जब वह दरगाह में हाजरी देने आ सकेंगे. उर्स के पहले झंडा चढ़ाने की रस्म वर्षों से निभाई जाती रही है. शनिवार को भीलवाड़ा से आए गौरी परिवार की ओर से बुलंद दरवाजे पर झंडा पेश किया गया. दरगाह गेस्ट हाउस से बैंड बाजों के साथ झंडे को जुलूस के रूप में दरगाह लाया गया. जुलूस में शामिल मलंगों के कतरब देख लोग हैरान रह गए.
दरगाह के निजाम गेट पर झंडा पहुंचते ही अकीदतमंदों में झंडे को छूने और चूमने की होड़ मच गई. काफी मशक्कत के बाद पुलिस भीड़ को काबू कर पाई. बता दें कि झंडे की रस्म से पहले बड़े पीर साहब की पहाड़ी से तोप के गोले दागे गए. वहीं दरगाह परिसर में शादियाने बजाए गए. शाही कव्वालों ने सूफियाना कलाम पेश किए. झंडे की रस्म के वक्त उपस्थित लोग अपने मोबाइल में उस नजारे को कैद करते नजर आए.
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इस अवसर पर उर्स में नियुक्त मजिस्ट्रेट, बड़ी संख्या में पुलिस अधिकारी, कर्मचारी, दरगाह कमेटी के सदर अमीन पठान, नायब सदर मनव्वर खान सहित अन्य सदस्य एवं दरगाह के खादिम मौजूद रहे. दरगाह के खादिम कुतुबुद्दीन सकी ने बताया कि उर्स के पांच दिन पहले अलम (झंडा) की रस्म होती है. इसका मतलब यह होता है कि यह संदेश चला जाए कि पांच दिन बाद उर्स आने वाला है. उर्स के 5 दिन पहले झंडे को बुलंद दरवाजे पर चढ़ाया जाता है. भीलवाड़ा का गौरी परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी अपनी अकीदत पेश करते हुए झंडा लेकर हर साल आता है. इसके बाद रोशनी के वक्त अकीदतमंदों के लिए दुआएं मांगी जाती हैं.