अजमेर. पशुपालन के क्षेत्र में अजमेर जिला काफी आगे है. गाय, भैंस, पोल्ट्री फॉर्म और अब गोट फार्मिंग के क्षेत्र (Goat Farming trend in Ajmer) में भी अजमेर देश में अपनी पहचान बना चुका है. पिछले 5 सालों में अजमेर में गोट फार्मिंग का प्रचलन तेजी से बढ़ा है. इसका कारण कम लागत में अधिक मुनाफा है. गोट फार्मिंग को कैश क्रॉप के रूप में देखा जाता है, जिसके साढ़े पांच महीने में ही मुनाफा मिलने लगता है. राजस्थान में गोट की सबसे उन्नत नस्ल सिरोही जिले की मानी जाती है. अजमेर में सिरोही नस्ल की गोट फार्मिंग बाकि जगहों से ज्यादा हो रही है.
वहीं दूसरे नंबर पर सोजत नस्ल की गोट काफी डिमांड में रहती है. ये नस्ल सदियों से इंसानों के लिए आजीविका का साधन रहे हैं. राजस्थान के मरु प्रदेश में लोग ज्यादातर पशुपालन के जरिए अपनी आजीविका चलाते हैं. लेकिन इनमें भी गरीब तबके के लोग बकरी पालन ज्यादा किया करते थे. पर जैसे-जैसे इसका प्रचलन बढ़ने लगा, वैसे-वैसे बड़े किसान भी अब गोट फार्मिंग करने लगे हैं. गोट फार्मिंग से बकरे-बकरियों की न केवल नस्ल बढ़ने लगी है बल्कि पशुपालकों को अच्छा मुनाफा भी हो रहा है. पशुपालन विभाग की उपनिदेशक डॉ नवीन परिहार बताते हैं कि अजमेर में सिरोही नस्ल की बकरे बकरियों का पालन ज्यादा किया जा रहा है.
हर नस्ल की अपनी खासियत: सिरोही नस्ल के बकरे बकरियों की ग्रोथ और वजन अन्य नस्ल के बकरे बकरियों से बेहतर होती है. इस मसले के भूरे रंग के बकरे बकरियों की डिमांड ज्यादा रहती है. दूसरे नंबर पर सोजत नस्ल है. ये सफेद रंग की होती है. सिरोही नस्ल की तुलना में ये ज्यादा नाजुक होती है. इसके अलावा बारबरी, बीटल, तोतापुरी नस्ल का भी पालन किया जा रहा है. सिरोही नस्ल के बकरे और बकरियां 20 हजार रुपए से 50 हजार रुपए तक कीमत पर मिलते हैं. उन्होंने बताया कि बकरा मंडी में हर मंगलवार और शनिवार को बड़ी संख्या में बकरों की खरीद-फरोख्त होती है.
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मंडी में अजमेर ही नहीं नागौर टोंक भीलवाड़ा जयपुर सहित कई जिलों से बकरे बेचने के लिए मंडी आते हैं जबकि देश के कई राज्यों से खरीदार बकरे खरीदने के लिए अजमेर बकरा मंडी आते हैं. पशुपालक बकरियों को खरीदते हैं, ताकि प्रजनन से बकरे-बकरियों की नस्ल बढ़ सकें. डॉ परिहार ने बताया कि साढ़े 5 माह में बकरियां प्रजनन के लिए तैयार हो जाती हैं. वर्ष में दो बार बकरियों के दो से तीन बच्चे होते हैं. उन्होंने बताया कि कई राज्य बीपीएल परिवारों को रियायती दर पर बकरियां खरीद कर देते हैं ताकि गरीब परिवार उनसे अपना रोजगार चला सके. कर्नाटक, बिहार, झारखंड सहित कई राज्यों ने अजमेर से बड़ी संख्या में बकरियां खरीद चुके है.
कम से कम तीन साल का धैर्य: गोट फार्मिंग के मालिक श्रीधर बताते हैं कि कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो गोट फार्मिंग से अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है. उन्होंने बताया कि सात वर्ष पहले कुछ बकरियों के साथ उन्होंने गोटफॉर्मिंग शुरू की थी. वर्तमान में विभिन्न नस्ल की 100 से अधिक बकरियां उनके पास हैं. गोट फार्मिंग में बकरे बकरियों का समय पर टिकाकरण होना जरूरी होता है. कम लागत में गोट फार्मिंग शुरू की जा सकती है, लेकिन इसमें तीन वर्ष का धैर्य रखना होता है. उसके बाद आय बढ़ती जाती है. श्रीधर बताते है कि राज्य सरकार गोट फार्मिंग को बढ़ावा देने के लिए कम ब्याज और अनुदान के साथ ऋण भी दे रही है.
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गोट फार्मिंग के बढ़ते प्रचलन के कारण पिछले कुछ सालों से राजस्थान में अजमेर की बकरा मंडी दूसरे स्थान पर आ गई है. बकरा मंडी के उपाध्यक्ष इकबाल अहमद बताते हैं कि मंडी में सभी नस्लें के बकरे बिकने के लिए आते हैं. गोट फार्मिंग के मालिकों से दलाल बकरे खरीद कर मंडी में भेजते हैं या सीधे गोट फार्मर भी मंडी में बकरे बेचने के लिए आते हैं. सबसे ज्यादा मांग सिरोही नस्ल की रहती है. देश के कई राज्यों से व्यापारी अजमेर बकरे खरीदने के लिए आते हैं.
अजमेर और नागौर में पढ़ने वाली विभिन्न नस्लों की ज्यादा डिमांड रहती है. उन्होंने बताया कि इस बार 550 रुपए प्रतिकिलो गोश्त का भाव चल रहा है. वजन के हिसाब से बकरों की कीमत बढ़ती जाती है. रमजान के बाद ईद आने वाली है. ऐसे में कुर्बानी के लिए लोग बकरे खरीद रहे हैं जिसके कारण ईद तक भावों में तेजी रहेगी. लघु सीमांत किसानों के लिए गोट फार्मिंग वरदान साबित हो रही है. वहीं कुछ लोग बड़े स्तर पर भी गोट फार्मिंग कर रहे हैं. देश में अजमेर की पहचान यहां की विभिन्न खूबियों से तो है ही. लेकिन अब गोट फार्मिंग के क्षेत्र में भी अजमेर देशभर में अपनी पहचान बना चुका है.