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पैदल घर जा रहे श्रमिकों ने कहा- यहां मरें या रास्ते में क्या फर्क पड़ता है, जिंदा रहे तो घर पहुंच जाएंगे

लॉकडाउन के दौरान राजस्थान में फंसे कई प्रवासी श्रमिक ऐसे हैं, जो पैदल घर जाने के लिए मजबूर हैं. उन्हें ना तो सरकारी मदद मिल रही है ना ही उन्हें ये बताया जा रहा है कि वो घर कब जाएंगे. ऐसे में मध्य प्रदेश के रहने वाले 6 मजदूरों ने अपने घर के लिए पैदल ही कूच कर दी है. देखिए स्पेशल स्टोरी

6 Workers going home on foot, ajmer news
अजमेर से मध्य प्रदेश के लिए पैदल निकले श्रमिक
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Published : May 10, 2020, 2:13 PM IST

Updated : May 10, 2020, 2:39 PM IST

अजमेर. कोरोना महामारी के चलते किए गए लॉकडाउन की वजह से देश में लाखों श्रमिक बेरोजगार हो गए हैं. राजस्थान में ही लाखों प्रवासी श्रमिक लॉकडाउन के चलते फंसे हुए हैं. हालांकि राजस्थान सरकार प्रवासी श्रमिकों को उनके घर भेजने की व्यवस्था जारी रखे हुए हैं. बावजूद इसके सड़कों पर रात को सिर पर अपनी मजबूरी का बोझ उठाए प्रवासी श्रमिक पैदल सफर करते हुए दिखाई दे रहे हैं. इससे जाहिर है कि सरकार की ओर से श्रमिकों को घर भेजने के लिए किए जा रहे इंतजाम श्रमिकों की संख्या के अनुपात में कम है.

अजमेर से मध्य प्रदेश के लिए पैदल निकले श्रमिक

रात के सन्नाटे में सड़कों पर चुपचाप चलते श्रमिकों को अपनी जान की भी फिक्र नहीं है. बस उन्हें किसी तरह अपने घर पहुंचना है. ईटीवी भारत ने रात के वक्त सफर कर रहे ऐसे श्रमिकों से बात की और उनकी मजबूरी जानी. जिसमें ये सामने आया कि लंबे समय से जारी लॉकडाउन की वजह से उनके पास अब कमाई का कोई स्त्रोत नहीं बचा. बल्कि जो कमाया था वो भी खर्च हो गया है.

ये भी पढ़ें- स्पेशल: भीलवाड़ा के बाद अब राजस्थान में छाया 'बयाना मॉडल'

श्रमिकों ने बताया कि जिस ठेकेदार के लिए काम करते थे. उसने भी अब मदद करना बंद कर दिया है. सरकार से कोई सहायता मिल नहीं रही है. ऐसे में परिवार की फिक्र उन्हें बेचैन कर रही है. जिसके चलते रात को वो मजबूरी और जिम्मेदारी का बोझ उठाकर पैदल सफर करने को मजबूर हैं.

श्रमिक राम मिलन ने बताया कि 8 माह से वह अजमेर में मार्टिंडल ब्रिज के नीचे रहकर रेल ठेकेदार के लिए काम करते थे. लॉकडाउन के बाद उनका काम छिन गया है. लॉकडाउन से पहले जो कुछ कमाया था, वह यहां रहते हुए खर्च हो गया. यहां काम नहीं है और वहां परिवार की फिक्र उन्हें सता रही है. उन्होंने बताया कि सरकार की ओर से जारी वेबसाइट पर उन्होंने पंजीयन भी करवाया है. लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला. जेएलएन अस्पताल में उन्होंने अपनी स्क्रीनिंग भी करवा ली है. अब वह एमपी में अपने परिवार के पास जाना चाहते हैं.

ये भी पढ़ें- कोटा में फंसे बिहार के 5 हजार बच्चों को नहीं बुलाना चाहती नीतीश सरकार: प्रताप सिंह खाचरियावास

श्रमिक हर चटिया ने बताया कि पैदल सफर करते हुए वह कब एमपी अपने घर पहुंचेंगे, यह उन्हें नहीं मालूम. लेकिन नहीं गए तो परिवार की फिक्र से यहीं मर जाएंगे. श्रमिक ने कहा कि जब मरना ही है, तो यहां मरे या रास्ते में क्या फर्क पड़ता है. जिंदा रहे तो परिवार के पास तो पहुंचेंगे. श्रमिक ह्रदय लाल ने बताया कि लॉकडाउन के बाद ना उन्हें कोई मदद मिली और ना ही उन्हें उनके घर भेजने का कोई इंतजाम किया गया. ऐसे में पैदल अपने घर लौटने के अलावा उनके पास और कोई रास्ता नहीं बचा.

बता दें कि अजमेर में श्रमिकों को शेल्टर होम में रखा गया था. जहां उनके रहने और खाने की व्यवस्था की गई थी. लेकिन ऐसे कई श्रमिक हैं जिन्हें सरकारी सहायता का लाभ नहीं मिला. इनमें मध्य प्रदेश के 6 श्रमिक ऐसे हैं जिनका सब्र अब जवाब दे चुका है.

अजमेर. कोरोना महामारी के चलते किए गए लॉकडाउन की वजह से देश में लाखों श्रमिक बेरोजगार हो गए हैं. राजस्थान में ही लाखों प्रवासी श्रमिक लॉकडाउन के चलते फंसे हुए हैं. हालांकि राजस्थान सरकार प्रवासी श्रमिकों को उनके घर भेजने की व्यवस्था जारी रखे हुए हैं. बावजूद इसके सड़कों पर रात को सिर पर अपनी मजबूरी का बोझ उठाए प्रवासी श्रमिक पैदल सफर करते हुए दिखाई दे रहे हैं. इससे जाहिर है कि सरकार की ओर से श्रमिकों को घर भेजने के लिए किए जा रहे इंतजाम श्रमिकों की संख्या के अनुपात में कम है.

अजमेर से मध्य प्रदेश के लिए पैदल निकले श्रमिक

रात के सन्नाटे में सड़कों पर चुपचाप चलते श्रमिकों को अपनी जान की भी फिक्र नहीं है. बस उन्हें किसी तरह अपने घर पहुंचना है. ईटीवी भारत ने रात के वक्त सफर कर रहे ऐसे श्रमिकों से बात की और उनकी मजबूरी जानी. जिसमें ये सामने आया कि लंबे समय से जारी लॉकडाउन की वजह से उनके पास अब कमाई का कोई स्त्रोत नहीं बचा. बल्कि जो कमाया था वो भी खर्च हो गया है.

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श्रमिकों ने बताया कि जिस ठेकेदार के लिए काम करते थे. उसने भी अब मदद करना बंद कर दिया है. सरकार से कोई सहायता मिल नहीं रही है. ऐसे में परिवार की फिक्र उन्हें बेचैन कर रही है. जिसके चलते रात को वो मजबूरी और जिम्मेदारी का बोझ उठाकर पैदल सफर करने को मजबूर हैं.

श्रमिक राम मिलन ने बताया कि 8 माह से वह अजमेर में मार्टिंडल ब्रिज के नीचे रहकर रेल ठेकेदार के लिए काम करते थे. लॉकडाउन के बाद उनका काम छिन गया है. लॉकडाउन से पहले जो कुछ कमाया था, वह यहां रहते हुए खर्च हो गया. यहां काम नहीं है और वहां परिवार की फिक्र उन्हें सता रही है. उन्होंने बताया कि सरकार की ओर से जारी वेबसाइट पर उन्होंने पंजीयन भी करवाया है. लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला. जेएलएन अस्पताल में उन्होंने अपनी स्क्रीनिंग भी करवा ली है. अब वह एमपी में अपने परिवार के पास जाना चाहते हैं.

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श्रमिक हर चटिया ने बताया कि पैदल सफर करते हुए वह कब एमपी अपने घर पहुंचेंगे, यह उन्हें नहीं मालूम. लेकिन नहीं गए तो परिवार की फिक्र से यहीं मर जाएंगे. श्रमिक ने कहा कि जब मरना ही है, तो यहां मरे या रास्ते में क्या फर्क पड़ता है. जिंदा रहे तो परिवार के पास तो पहुंचेंगे. श्रमिक ह्रदय लाल ने बताया कि लॉकडाउन के बाद ना उन्हें कोई मदद मिली और ना ही उन्हें उनके घर भेजने का कोई इंतजाम किया गया. ऐसे में पैदल अपने घर लौटने के अलावा उनके पास और कोई रास्ता नहीं बचा.

बता दें कि अजमेर में श्रमिकों को शेल्टर होम में रखा गया था. जहां उनके रहने और खाने की व्यवस्था की गई थी. लेकिन ऐसे कई श्रमिक हैं जिन्हें सरकारी सहायता का लाभ नहीं मिला. इनमें मध्य प्रदेश के 6 श्रमिक ऐसे हैं जिनका सब्र अब जवाब दे चुका है.

Last Updated : May 10, 2020, 2:39 PM IST
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