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आजादी का अमृत महोत्सव : स्वतंत्रता सेनानियों की सेवा करने वाले डॉक्टरों की कहानी - freedom struggle

आजादी आंदोलन के इतिहास में कई ऐसे लोग थे, जो स्वतंत्रता सैनानियों के इस रूप में मददगार बनें कि उस दौर में आंदोलनकारियों के लिए हर जोखिम उठाने को तैयार थे. ऐसे लोगों की दास्तान एक बार दुनिया के सामने लाने की मुहिम ईटीवी भारत ने शुरु की है.

आजादी का अमृत महोत्सव
आजादी का अमृत महोत्सव
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Published : Oct 31, 2021, 5:06 AM IST

हैदराबाद : आजादी आंदोलन के इतिहास में कई ऐसे लोग थे, जो स्वतंत्रता सैनानियों के इस रूप में मददगार बनें कि उस दौर में आंदोलनकारियों के लिए हर जोखिम उठाने को तैयार थे. ऐसे लोगों की दास्तान एक बार दुनिया के सामने लाने की मुहिम ईटीवी भारत ने शुरु की है.

आइए आज आपको बताते हैं डॉ मुख़्तार अहमद अंसारी और हकीम अजमल खान की भूमिका के बारे में. ये दोनों शख्सियत क्रांतिवीरों के लिए ईलाज का काम करते रहे. जो लोग इसके अगुवा थे, उनकी सेहत संभालने का जिम्मा इन्हीं लोगों ने संभाला.

डॉ मुख्तार अहमद अंसारी ( एमए अंसारी ) और हकीम अजमल खान देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय जामिया मिल्लिया इस्लामिया के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे. डॉ.अंसारी ने 1928 से लेकर 1936 तक विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे. दोनों ने आजादी आंदोलन में अपनी बड़ी भूमिका निभाई. वे कांग्रेस और मुस्लिम लीग के सदस्य भी थे.

स्वतंत्रता सेनानियों की सेवा करने वाले डॉक्टरों की कहानी

इतिहासकार सोहेल हाशमीं बताते हैं कि डॉ. एम ए अंसारी ने स्वास्थ्य सेवा के जरिए देश की आजादी में अहम भूमिका निभाई. उन दिनों भारत में तीन बड़े सर्जन मशहूर थे, कलकत्ता के डॉ. बिधान चंद्र राय, मुंबई के मिराजकर और दिल्ली के डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी. दिल्ली के इस दरियागंज में डॉ. एमए अंसारी का बहुत बड़ा मकान है, जहां कांग्रेस के दिल्ली में आयोजित सम्मेल में शरीक हुए बड़े डेलिगेट आ कर रुका करते थे.

उस रोज़ को याद करते हुए इतिहासकार सोहेल हाशमी बताते है कि डॉ. एमए अंसारी के पास इलाज के लिए कई फ्रीडम फाइटर आया करते थे, जिन्हें डॉ अंसारी अपने घर में आसरा दे कर, उनका इलाज किया करते थे.

इतिहासकार सोहेल हाशमी बताते हैं कि हर विचारधारा के फ्रीडम फाइटर चाहे वे कांग्रेस हो, समाजवादी, कम्युनिस्ट हो या फिर अंडरग्राउंड मूवमेंट के लोग, सभी डॉ. एमए अंसारी घर आया करते थे, जरुरत पड़ने पर वहां आसरा भी लिया करते थे. हाशमी बताते हैं कि महात्मा गांधी दिल्ली आने पर स्वतंत्रता सैनानियों से पूछा करते थे कि तुम्हारा बादशाह कौन है, तो लोग डॉ. अंसारी का नाम लिया करते थे.

1868 में जन्में हकीम अजमल खान ने खिलाफत मूवमेंट और असहयोग आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने वाले हकीम अजमल खान लोगों का निशुल्क उपचार भी किया करते थे.

पढ़ें - देश मना रहा आजादी का 'अमृत महोत्सव', 75 साल बाद भी 'गुलाम' हैं ये 125 परिवार

असहयोग आंदोलन में अंग्रेजों के तरीके की शिक्षा (WESTERN EDUCATION) की बगावत में शौकत अली, मोहम्मद अली, मौलाना अब्दुल कलाम आजाद, गांधी जी सहित कई लोग इसमें शामिल थे, 1920 में शुरू हुए असहयोग आंदोलन में उस समय डॉ. जाकिर हुसैन के नेतृत्व में 200 छात्रों ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से वॉक आउट किया था, जिसके बाद जामिया मिल्लिया इस्लामिया की बुनियाद पड़ी.

शुरुआती दौर में किराए के बिल्डिंग में पढ़ाई शुरू की गई, कुछ वर्ष बाद जामिया अलीगढ़ से दिल्ली करोल बाग हकीम अजमल खान द्वारा बनाए गए तिब्बिया कॉलेज में शिफ्ट की गई, इतिहासकार सोहेल हाशमी बताते हैं... अंग्रेजों ने हकीम अजमल खान को भारत का विद्वान की उपाधि दी थी, लेकिन उन्होंने अंग्रेजों को यह उपाधि को वापस कर दी... जिस कारण भारतीय जनता ने उन्हें मसीह - उल - मुल्क का नाम दिया.

हकीम अजमल खान के पिता ने बल्लीमारान में स्थित शरीफ मंजिल में अस्पताल का निर्माण कराया था.. लेकिन धीरे-धीरे शरीफ मंजिल कांग्रेस के दफ्तर में तब्दील हो गई, दिल्ली में कांग्रेस वर्किंग कमेटी की होने वाली सारी मीटिंगें यहीं हुआ करती थी... कई बार गांधीजी भी शरीफ मंजिल में आकर रुके थे.,,

देश की स्वतंत्रता और अपनी मिट्टी की लड़ाई में अपना बहुमूल्य योगदान देने के बाद वर्ष 1934 को डॉ. अंसारी और 1927 में हकीम अजमल खान इसी मिट्टी में जा मिले. स्वतंत्रता सैनानियों के प्रति उनकी उनकी सेवा भावना, देश में अपने आप में एक अनोखी मिसाल है. जो नींव की ईंट बनें. देश की इन दो शख्सियतों को ईटीवी भारत का सलाम...

हैदराबाद : आजादी आंदोलन के इतिहास में कई ऐसे लोग थे, जो स्वतंत्रता सैनानियों के इस रूप में मददगार बनें कि उस दौर में आंदोलनकारियों के लिए हर जोखिम उठाने को तैयार थे. ऐसे लोगों की दास्तान एक बार दुनिया के सामने लाने की मुहिम ईटीवी भारत ने शुरु की है.

आइए आज आपको बताते हैं डॉ मुख़्तार अहमद अंसारी और हकीम अजमल खान की भूमिका के बारे में. ये दोनों शख्सियत क्रांतिवीरों के लिए ईलाज का काम करते रहे. जो लोग इसके अगुवा थे, उनकी सेहत संभालने का जिम्मा इन्हीं लोगों ने संभाला.

डॉ मुख्तार अहमद अंसारी ( एमए अंसारी ) और हकीम अजमल खान देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय जामिया मिल्लिया इस्लामिया के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे. डॉ.अंसारी ने 1928 से लेकर 1936 तक विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे. दोनों ने आजादी आंदोलन में अपनी बड़ी भूमिका निभाई. वे कांग्रेस और मुस्लिम लीग के सदस्य भी थे.

स्वतंत्रता सेनानियों की सेवा करने वाले डॉक्टरों की कहानी

इतिहासकार सोहेल हाशमीं बताते हैं कि डॉ. एम ए अंसारी ने स्वास्थ्य सेवा के जरिए देश की आजादी में अहम भूमिका निभाई. उन दिनों भारत में तीन बड़े सर्जन मशहूर थे, कलकत्ता के डॉ. बिधान चंद्र राय, मुंबई के मिराजकर और दिल्ली के डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी. दिल्ली के इस दरियागंज में डॉ. एमए अंसारी का बहुत बड़ा मकान है, जहां कांग्रेस के दिल्ली में आयोजित सम्मेल में शरीक हुए बड़े डेलिगेट आ कर रुका करते थे.

उस रोज़ को याद करते हुए इतिहासकार सोहेल हाशमी बताते है कि डॉ. एमए अंसारी के पास इलाज के लिए कई फ्रीडम फाइटर आया करते थे, जिन्हें डॉ अंसारी अपने घर में आसरा दे कर, उनका इलाज किया करते थे.

इतिहासकार सोहेल हाशमी बताते हैं कि हर विचारधारा के फ्रीडम फाइटर चाहे वे कांग्रेस हो, समाजवादी, कम्युनिस्ट हो या फिर अंडरग्राउंड मूवमेंट के लोग, सभी डॉ. एमए अंसारी घर आया करते थे, जरुरत पड़ने पर वहां आसरा भी लिया करते थे. हाशमी बताते हैं कि महात्मा गांधी दिल्ली आने पर स्वतंत्रता सैनानियों से पूछा करते थे कि तुम्हारा बादशाह कौन है, तो लोग डॉ. अंसारी का नाम लिया करते थे.

1868 में जन्में हकीम अजमल खान ने खिलाफत मूवमेंट और असहयोग आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने वाले हकीम अजमल खान लोगों का निशुल्क उपचार भी किया करते थे.

पढ़ें - देश मना रहा आजादी का 'अमृत महोत्सव', 75 साल बाद भी 'गुलाम' हैं ये 125 परिवार

असहयोग आंदोलन में अंग्रेजों के तरीके की शिक्षा (WESTERN EDUCATION) की बगावत में शौकत अली, मोहम्मद अली, मौलाना अब्दुल कलाम आजाद, गांधी जी सहित कई लोग इसमें शामिल थे, 1920 में शुरू हुए असहयोग आंदोलन में उस समय डॉ. जाकिर हुसैन के नेतृत्व में 200 छात्रों ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से वॉक आउट किया था, जिसके बाद जामिया मिल्लिया इस्लामिया की बुनियाद पड़ी.

शुरुआती दौर में किराए के बिल्डिंग में पढ़ाई शुरू की गई, कुछ वर्ष बाद जामिया अलीगढ़ से दिल्ली करोल बाग हकीम अजमल खान द्वारा बनाए गए तिब्बिया कॉलेज में शिफ्ट की गई, इतिहासकार सोहेल हाशमी बताते हैं... अंग्रेजों ने हकीम अजमल खान को भारत का विद्वान की उपाधि दी थी, लेकिन उन्होंने अंग्रेजों को यह उपाधि को वापस कर दी... जिस कारण भारतीय जनता ने उन्हें मसीह - उल - मुल्क का नाम दिया.

हकीम अजमल खान के पिता ने बल्लीमारान में स्थित शरीफ मंजिल में अस्पताल का निर्माण कराया था.. लेकिन धीरे-धीरे शरीफ मंजिल कांग्रेस के दफ्तर में तब्दील हो गई, दिल्ली में कांग्रेस वर्किंग कमेटी की होने वाली सारी मीटिंगें यहीं हुआ करती थी... कई बार गांधीजी भी शरीफ मंजिल में आकर रुके थे.,,

देश की स्वतंत्रता और अपनी मिट्टी की लड़ाई में अपना बहुमूल्य योगदान देने के बाद वर्ष 1934 को डॉ. अंसारी और 1927 में हकीम अजमल खान इसी मिट्टी में जा मिले. स्वतंत्रता सैनानियों के प्रति उनकी उनकी सेवा भावना, देश में अपने आप में एक अनोखी मिसाल है. जो नींव की ईंट बनें. देश की इन दो शख्सियतों को ईटीवी भारत का सलाम...

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