मुंबई : महाराष्ट्र में महाविकास आघाडी सरकार और राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी का कोल्डवॉर अब किसी से छुपा नही है. सरकार का कोई भी निर्णय या अध्यादेश हो राज्यपाल उसे ठंडे बस्ते में डाल देते है. दुसरी तरफ सरकार चलाने का भी उनपर सत्ता पक्ष के नेता आरोप लगाते है. ताजा मामला साकीनाका बलात्कार का है. इस बलात्कार कांड पर राज्य सरकार ने दो दिनों का विशेष अधिवेशन बुलाने का पत्र राज्यपाल कोश्यारी ने राज्य सरकार को लिखा. इसपर सरकार ने तिखा जवाब देते हुए कहा, बलात्कार तो यूपी और मध्यप्रदेश में ज्यादा बढ़े है तो केंद्र सरकार को ही चार दिन का विशेष अधिवेशन बुलाने का आग्रह राज्यपाल करे.
विधान परिषद के राज्यपाल नियुक्त सदस्यों का मुद्दा अभी तक सुलझा नही है. ऐसे में विशेष अधिवेशन बुलाने की राज्यपाल की पहल से महाविकास आघाडी सरकार ने सख्त वार किया है. शिवसेना का मुखपत्र दैनिक सामना के संपादकीय में शिवसेना ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए राज्यपाल को 'मदमस्त हाथी' कहा और कहा कि इसके महावत दिल्ली में बैठे हैं.
देशभर में कुल मिलाकर कानून और सुव्यवस्था की स्थिति अच्छी नहीं है. कई राज्यों में नक्सलवादी हमलों में वृद्धि होने से गृहमंत्री शाह को मुख्यमंत्रियों की आपातकालीन बैठक बुलानी पड़ी. भाजपा के विरोधियों की सरकार जिन राज्यों में है, वहां कई भाजपाई नेता सिर्फ कीचड़ उछालते और इसके इनाम के रूप में जेड प्लस दर्जे की केंद्रीय सुरक्षा उन्हें दी जाती है. पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र आदि राज्यों में यह प्रमुखता से नजर आता है.
सीआरपीएफ के सैकड़ों जवान इसी तरह का खास कर्तव्य निभा रहे हैं. इस शक्ति को राष्ट्र की रक्षा, जनता की सुरक्षा के लिए घातक सिद्ध होनेवालों के खिलाफ इस्तेमाल किए जाने की आवश्यकता है. परंतु फिलहाल हमारे देश में कुछ अलग ही होता दिख रहा है. आज के युग में कौवे मोती खा रहे हैं और हंस दाना चुग रहा है. महाराष्ट्र सहित पूरे देश में कानून और सुव्यवस्था की स्थिति को देखने के बाद ऐसा ही कहना होगा.
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महंत नरेंद्र गिरि महाराज के आत्महत्या करने की नौबत आई. आत्महत्या है या हत्या ये तय होना बाकी है, परंतु इतने बड़े संत की संदिग्ध मौत यह किसी को कानून और व्यवस्था की गिरती स्थिति का प्रमाण नहीं लगता और इस मुद्दे पर उत्तर प्रदेश विधानसभा के दो-चार दिन का विशेष अधिवेशन बुलाकर चर्चा की जाए, किसी को भी ऐसा नहीं लगना चाहिए?
मध्य प्रदेश के रीवा जिले में एक नाबालिग बच्ची का चार लोगों ने बलात्कार किया और अब उसके परिवार को भी धमकाया जा रहा है. ये कोई अच्छे कानून-व्यवस्था के लक्षण नहीं हैं. महाराष्ट्र के राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी को हमारे राज्य में महिलाओं का शोषण, कानून-सुव्यवस्था के बारे में चिंता होती है, उसी तरह की चिंता उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश के राज्यपालों को क्यों नहीं होनी चाहिए? अथवा वहां के राजभवन की संवेदना मर चुकी है? महाराष्ट्र में भाजपा की महिला महामंडल भी महिलाओं पर अन्याय-अत्याचार को लेकर इतनी आक्रामक है कि न्याय के लिए वे राजभवन में डेरा डालकर बैठ जाती हैं. ऐसे जागरूक महिला मंडल के मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश में न होने का अफसोस किसे नहीं होना चाहिए? रीवा जिले की नाबालिग बच्ची पर यौनाचार व साकीनाका की घटना में क्या अंतर है? दोनों घटनाओं में महिलाओं की हत्या हुई, परंतु हंगामा सिर्फ महाराष्ट्र में होता है. अंतर ये है कि महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार नहीं है तथा अन्य दो राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं. इसलिए वहां साधु-संतों की मौत हो जाए अथवा बच्चियों पर बलात्कार हो जाए? किसी को क्या फर्क पड़ता है! बच्चियों पर यौनाचार हुआ क्या?
ओडिशा भाजपा शासित राज्य नहीं है, फिर भी नवीन पटनायक केंद्र सरकार से सामंजस्य बनाकर काम-काज चला रहे हैं. उस ओडिशा राज्य में महिलाओं पर यौनाचार की संख्या वैसे बढ़ गई है, बलात्कार की घटनाओं में ओडिशा देश में दूसरे नंबर का राज्य बन गया है. ऐसा आरोप वहां के विपक्ष ने सरेआम लगाया है. ओडिशा में भाजपा का महिला मंडल इस मुद्दे पर एकदम शांत बैठा है.
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महाराष्ट्र की भाजपा की ताई-माई-अक्का और दादा द्वारा अन्य राज्यों में उनकी महिला महामंडल को लड़ने के लिए बल देने की जरूरत है. गृह विभाग द्वारा बीच-बीच में राज्यपालों की बैठक बुलाई जाती है. राज्यपालों के संवैधानिक अधिकारों पर उसमें अनुकूल-प्रतिकूल चर्चा होती है. उस परिषद में कम-से-कम महाराष्ट्र के विद्यमान राज्यपाल को अन्य राज्यों के राज्यपालों को फटकार लगानी चाहिए व साकीनाका की घटना को भुनाने के लिए महाराष्ट्र में जिस तरह से विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने का सुझाव यहां के मुख्यमंत्री को दिया था वैसा ही कार्य अन्य राज्यपालों को भी करना चाहिए. ऐसी मांग करें. मतलब पूरे देश की हजारों यौन शोषित महिलाओं को न्याय मिलेगा.
हाथी के पैरों तले लोकतंत्र
राज्यपाल सिर्फ सरकारी पैसे पर पाले जानेवाले सफेद हाथी नहीं हैं. दिल्ली की सत्ताधारी पार्टियों की सरकारें जिन-जिन राज्यों में नहीं हैं, उन-उन राज्यों में वो 'मदमस्त निरंकुश हाथी' की ही भूमकिा निभाते हैं और ऐसे हाथियों के महावत दिल्ली में बैठकर नियंत्रित करते हैं. उसी हाथी के पैरों तले लोकतंत्र का संविधान, कानून, राजनीतिक संस्कृति को रौंदते हुए अलग शुरुआत की जाती है. वास्तव में मतलब संविधान के निर्माताओं द्वारा निर्धारित कर्तव्यों का पालन करना राज्यपाल के लिए अनिवार्य है. परंतु किसी राज्य का राज्यपाल यदि राजभवन में बैठकर अपनी पूरी ताकत उन्हीं के द्वारा शपथ दिलाई गई सरकार को अस्थिर करने में लगाता होगा तो ये कहां तक उचित है? हमारे लोकतंत्र में यही दृश्य आज हर स्तर पर दिखाई देता है.
आपकी ही धोती जलेगी!
राज्यों को आसानी से काम नहीं करने देना. राज्यपाल को अपने सहयोगियों को सुरक्षा देकर उन्हें मनमाने ढंग से गड़बड़ी करने की छूट देना. राज्यपाल जैसी संवैधानिक संस्था का इस वजह से अवमूल्यन किया जाए. इससे देश का संघीय ढांचा भरभराकर गिर रहा है. दिल्ली में नया संसद भवन बनाने से लोकतंत्र सुरक्षित रहेगा और बढ़ेगा, किसी को ऐसा लगता होगा तो उनके पैरों तले कुचली गई संघीय राज्य की व्यवस्था की थोड़ी चीखें भी उन्हें सुननी चाहिए. केंद्र की सरकार, प्रधानमंत्री पूरे देश के नेता होते हैं. फिर भले ही राज्यों की सरकारें उन्हें माननेवाली राजनीतिक पार्टी की न हों तब भी. उन राज्यों को अस्थिर करना मतलब राष्ट्रीय एकता को कलंक लगाने जैसा ही है. महाराष्ट्र की घटनाएं कलंक लगाने का ही उदाहरण है. अर्थात महाराष्ट्र को कलंक लगाओगे तो आपकी ही धोती जलेगी. ये मत भूलो!