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बीजेपी ने बदले तीन प्रभारी, लेकिन कांग्रेस को पुनिया पर भरोसा, क्या नए प्रभारी से बीजेपी को मिलेगी सत्ता

chhattisgarh assembly election 2023 भानुप्रतापपुर उपचुनाव की तारीख जैसे जैसे नजदीक आते जा रही है. वैसे वैसे ही छत्तीसगढ़ का सियासी पारा बढ़ता जा रहा है. भाजपा और कांग्रेस एक दूसरे पर हमला करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे. इस बीच भाजपा के नए प्रदेश प्रभारी ओम माथुर और सीएम भूपेश बघेल के बीच जुबानी जंग छिड़ी हुई है. अगले साल ही प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2023 होनी है. जिसे देखते हुए सभी दल एक्टिव मोड में नजर आ रहे हैं. छत्तीसगढ़ में बीजेपी ने लगातार तीन बार अपने प्रदेश प्रभारी बदल दिए हैं. लेकिन छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रभारी पीएल पुनिया बने हुए हैं. कांग्रेस को पुनिया पर भरोसा है. क्योंकि पुनिया के रहते ही छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई.

Congress not change state incharge in Cg
कांग्रेस को पुनिया पर भरोसा
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Published : Nov 23, 2022, 9:53 PM IST

रायपुर: प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया ने पिछले 5 सालों से छत्तीसगढ़ कांग्रेस की कमान संभाल (Congress not change state incharge in Cg) रखी है. जबकि इस बीच भाजपा एक के बाद एक तीन प्रदेश प्रभारियों को बदल चुकी है. भाजपा प्रदेश प्रभारी अनिल जैन के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ में साल 2018 में विधानसभा चुनाव लड़ा गया था, जिसमें भाजपा की करारी हार हुई थी. इसके बाद लोकसभा चुनाव भी भाजपा ने अनिल जैन के नेतृत्व में ही लड़ा और बेहतर प्रदर्शन किया. लेकिन नवंबर 2020 में पार्टी ने अनिल जैन की जगह डी पुरंदेश्वरी को छत्तीसगढ़ का प्रदेश प्रभारी बनाया. पुरंदेश्वरी को कांग्रेसी हंटरवाली के नाम से पुकारते रहे. इस बीच पुरंदेश्वरी भी कई बार अपने बयानों को लेकर चर्चा में बनी रही. थूकने वाला बयान हो या फिर अन्य कोई बयान, इसको लेकर लगातार कांग्रेस पुरंदेश्वरी को घेरती रही. इसके बाद सितंबर 2022 में पार्टी ने पुरंदेश्वरी को हटाकर प्रदेश की कमान ओम माथुर को सौंपी. इस तरह से विधानसभा चुनाव 2018 से लेकर अब तक भाजपा तीन प्रदेश प्रभारी बदल (BJP changed state incharge thrice times) चुकी है. आगे भी यह संशय बरकरार है कि हो सकता है चुनाव के पहले भाजपा माथुर की जगह किसी और को प्रदेश प्रभारी बना दें. chhattisgarh assembly election 2023

कांग्रेस को पुनिया पर भरोसा
कांग्रेस की सरकार बनाने में पुनिया ने निभाई बड़ी भूमिका: कांग्रेस की बात की जाए तो पुनिया को जुलाई 2017 में बीके हरिप्रसाद के बाद छत्तीसगढ़ की कमान सौंपी गई थी. कमान मिलते ही पुनिया ने आक्रमक तरीके से काम करते हुए कई गुटों में बटी कांग्रेस को एक किया. साल 2018 में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार स्थापित करने में पुनिया ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने 15 साल सत्ता पर काबिज रहने वाली भाजपा को 90 में से 15 सीटों पर समेट दिया और खुद 68 सीटों के साथ सरकार बनाई. इसी का नतीजा था कि 2020 में जब देश के अन्य राज्यों के प्रदेश प्रभारियों को बदला गया, तो उस दौरान हाईकमान ने पुनिया को छत्तीसगढ़ प्रदेश प्रभारी का कार्यभार यथावत रखा. उसमें कोई फेरबदल नहीं किया गया. वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए भी लग रहा है कि कांग्रेस मिशन 2023 में पुनिया के साथ ही उतरेगी.

भाजपा के प्रदेश प्रभारी पर सुशील आनंद का तंज: कांग्रेस मीडिया विभाग के प्रदेश अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला का कहना है कि "पीएल पुनिया प्रदेश में बेहतर काम कर रहे हैं. उनके नेतृत्व में ही प्रदेश में सरकार बनी. आज उनके नेतृत्व में ही प्रदेश में 4-4 उपचुनाव जीते गए हैं. नगरी निकाय और पंचायत चुनाव जीता. पुनिया के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार के द्वारा बेहतर योजनाएं बनाई जा रही है. उसका जनता के बीच में बेहतर क्रियान्वयन हो रहा है. इसलिए कांग्रेस में प्रदेश प्रभारी बदलने की जरूरत नहीं पड़ी है. वहीं दूसरी और भाजपा पिछला विधानसभा चुनाव हार गई, चार उपचुनाव हार गई और नगरी निकाय चुनाव में एक भी महापौर नहीं बना सकी. भाजपा के प्रदेश प्रभारी बनने के बाद वे छत्तीसगढ़ आते हैं, तो बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, लेकिन बाद में उनके बयान बदल जाते हैं. पुरंदेश्वरी ने कहा था कि छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल बड़ी चुनौती है. मथुर कहते हैं कि छत्तीसगढ़ में कोई चुनौती नहीं, 2 दिन बाद कहते हैं कि हमको मुख्यमंत्री और विधायकों को टारगेट करना होगा, यह बड़ी चुनौती है."

यह भी पढ़ें: रमन सिंह के गढ़ में सीएम भूपेश की ललकार, कहा मुझे किसी का डर नहीं

राजनीतिक दलों को अपना काम करने का अधिकार: सुशील आनंद शुक्ला का कहना है कि "कांग्रेस प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया 2017 से छत्तीसगढ़ कांग्रेस की कमान संभाले हुए हैं, जबकि भाजपा ने इस बीच 3 प्रदेश प्रभारी बदल दिए." जब यह सवाल ओम माथुर से किया गया, तो उन्होंने कहा कि "पुनिया यूपी में भी थे. लोकतंत्र है, लोकतंत्र में सभी राजनीतिक दलों को अपना काम करने का अधिकार है. उनके तरीके अलग-अलग हो सकते हैं. इसलिए उनके किसी काम से हमारे काम की तुलना क्यों करना. यह तुलना आने वाले चुनाव में जनता करेगी."

माथुर ने सीएम बघेल को दूसरा अहमद पटेल करार दिया: उससे पहले ओम माथुर ने कहा था कि "छत्तीसगढ़ उनके लिए चुनौती नहीं है." जिस पर चुटकी लेते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा था कि "आपके लिए सबसे बड़ी चुनौती है कि आप कितने दिन प्रभारी रहेंगे." इस पर पलटवार करते हुए माथुर ने कहा कि "उनको अधिकार है वह कुछ भी कह सकते हैं, लोकतंत्र है. मैं उस तरह की भाषा का इस्तेमाल नहीं करूंगा. यह उनकी बौखलाहट निकल रही है. क्या वे पार्टी का सिस्टम बनाएंगे, क्या पार्टी के निर्णय भूपेश करेंगे, वह अहमद पटेल बनने की कोशिश ना करें. अहमद पटेल के जाने के बाद यह दूसरा अहमद पटेल तैयार हो रहे हैं. इस तरह की भाषा ना बोलें."

माथुर के बयान पर सीएम भूपेश का पलटवार: माथुर के इस बयान पर जब सीएम बघेल से मीडिया ने इस संबंध में सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा कि "अहमद पटेल बनना आसान नहीं है. अहमद पटेल बड़ी शख्सियत थे. वे कई बार लोकसभा जीते, राज्यसभा में रहे, सोनिया जी के सचिव के रूप में बरसों तक देश की राजनीति में उनका दखल था. अहमद पटेल बनना आसान काम नहीं है. जिस प्रकार से अहमद पटेल ने पार्टी को सेवाएं दीं, वह किसी व्यक्ति के बस की बात नहीं है. उनसे तुलना करना है."

भाजपा नेताओं के कान खींचने की बात पर सीएम बोले: सीएम भूपेश ने भाजपा नेताओं के कान खींचने की बात पर कहा, "हंटर चलाने से भी काम नहीं चला, अब कान खींचने की बात है. मतलब यह है कि जब बच्चे उद्दंड हो जाते हैं, बात नहीं मानते, तब कान खींचा जाता है या तो वे दिल्ली वालों से सध नहीं रहे हैं. दिल्ली वालों की सुन नहीं रहे हैं. उनसे कुछ संभल नहीं रहा है. दंड देने की बात क्यों कहते हैं. जब स्थिति संभलती नहीं, तब दंड देने की बात होती है."

रायपुर: प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया ने पिछले 5 सालों से छत्तीसगढ़ कांग्रेस की कमान संभाल (Congress not change state incharge in Cg) रखी है. जबकि इस बीच भाजपा एक के बाद एक तीन प्रदेश प्रभारियों को बदल चुकी है. भाजपा प्रदेश प्रभारी अनिल जैन के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ में साल 2018 में विधानसभा चुनाव लड़ा गया था, जिसमें भाजपा की करारी हार हुई थी. इसके बाद लोकसभा चुनाव भी भाजपा ने अनिल जैन के नेतृत्व में ही लड़ा और बेहतर प्रदर्शन किया. लेकिन नवंबर 2020 में पार्टी ने अनिल जैन की जगह डी पुरंदेश्वरी को छत्तीसगढ़ का प्रदेश प्रभारी बनाया. पुरंदेश्वरी को कांग्रेसी हंटरवाली के नाम से पुकारते रहे. इस बीच पुरंदेश्वरी भी कई बार अपने बयानों को लेकर चर्चा में बनी रही. थूकने वाला बयान हो या फिर अन्य कोई बयान, इसको लेकर लगातार कांग्रेस पुरंदेश्वरी को घेरती रही. इसके बाद सितंबर 2022 में पार्टी ने पुरंदेश्वरी को हटाकर प्रदेश की कमान ओम माथुर को सौंपी. इस तरह से विधानसभा चुनाव 2018 से लेकर अब तक भाजपा तीन प्रदेश प्रभारी बदल (BJP changed state incharge thrice times) चुकी है. आगे भी यह संशय बरकरार है कि हो सकता है चुनाव के पहले भाजपा माथुर की जगह किसी और को प्रदेश प्रभारी बना दें. chhattisgarh assembly election 2023

कांग्रेस को पुनिया पर भरोसा
कांग्रेस की सरकार बनाने में पुनिया ने निभाई बड़ी भूमिका: कांग्रेस की बात की जाए तो पुनिया को जुलाई 2017 में बीके हरिप्रसाद के बाद छत्तीसगढ़ की कमान सौंपी गई थी. कमान मिलते ही पुनिया ने आक्रमक तरीके से काम करते हुए कई गुटों में बटी कांग्रेस को एक किया. साल 2018 में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार स्थापित करने में पुनिया ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने 15 साल सत्ता पर काबिज रहने वाली भाजपा को 90 में से 15 सीटों पर समेट दिया और खुद 68 सीटों के साथ सरकार बनाई. इसी का नतीजा था कि 2020 में जब देश के अन्य राज्यों के प्रदेश प्रभारियों को बदला गया, तो उस दौरान हाईकमान ने पुनिया को छत्तीसगढ़ प्रदेश प्रभारी का कार्यभार यथावत रखा. उसमें कोई फेरबदल नहीं किया गया. वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए भी लग रहा है कि कांग्रेस मिशन 2023 में पुनिया के साथ ही उतरेगी.

भाजपा के प्रदेश प्रभारी पर सुशील आनंद का तंज: कांग्रेस मीडिया विभाग के प्रदेश अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला का कहना है कि "पीएल पुनिया प्रदेश में बेहतर काम कर रहे हैं. उनके नेतृत्व में ही प्रदेश में सरकार बनी. आज उनके नेतृत्व में ही प्रदेश में 4-4 उपचुनाव जीते गए हैं. नगरी निकाय और पंचायत चुनाव जीता. पुनिया के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार के द्वारा बेहतर योजनाएं बनाई जा रही है. उसका जनता के बीच में बेहतर क्रियान्वयन हो रहा है. इसलिए कांग्रेस में प्रदेश प्रभारी बदलने की जरूरत नहीं पड़ी है. वहीं दूसरी और भाजपा पिछला विधानसभा चुनाव हार गई, चार उपचुनाव हार गई और नगरी निकाय चुनाव में एक भी महापौर नहीं बना सकी. भाजपा के प्रदेश प्रभारी बनने के बाद वे छत्तीसगढ़ आते हैं, तो बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, लेकिन बाद में उनके बयान बदल जाते हैं. पुरंदेश्वरी ने कहा था कि छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल बड़ी चुनौती है. मथुर कहते हैं कि छत्तीसगढ़ में कोई चुनौती नहीं, 2 दिन बाद कहते हैं कि हमको मुख्यमंत्री और विधायकों को टारगेट करना होगा, यह बड़ी चुनौती है."

यह भी पढ़ें: रमन सिंह के गढ़ में सीएम भूपेश की ललकार, कहा मुझे किसी का डर नहीं

राजनीतिक दलों को अपना काम करने का अधिकार: सुशील आनंद शुक्ला का कहना है कि "कांग्रेस प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया 2017 से छत्तीसगढ़ कांग्रेस की कमान संभाले हुए हैं, जबकि भाजपा ने इस बीच 3 प्रदेश प्रभारी बदल दिए." जब यह सवाल ओम माथुर से किया गया, तो उन्होंने कहा कि "पुनिया यूपी में भी थे. लोकतंत्र है, लोकतंत्र में सभी राजनीतिक दलों को अपना काम करने का अधिकार है. उनके तरीके अलग-अलग हो सकते हैं. इसलिए उनके किसी काम से हमारे काम की तुलना क्यों करना. यह तुलना आने वाले चुनाव में जनता करेगी."

माथुर ने सीएम बघेल को दूसरा अहमद पटेल करार दिया: उससे पहले ओम माथुर ने कहा था कि "छत्तीसगढ़ उनके लिए चुनौती नहीं है." जिस पर चुटकी लेते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा था कि "आपके लिए सबसे बड़ी चुनौती है कि आप कितने दिन प्रभारी रहेंगे." इस पर पलटवार करते हुए माथुर ने कहा कि "उनको अधिकार है वह कुछ भी कह सकते हैं, लोकतंत्र है. मैं उस तरह की भाषा का इस्तेमाल नहीं करूंगा. यह उनकी बौखलाहट निकल रही है. क्या वे पार्टी का सिस्टम बनाएंगे, क्या पार्टी के निर्णय भूपेश करेंगे, वह अहमद पटेल बनने की कोशिश ना करें. अहमद पटेल के जाने के बाद यह दूसरा अहमद पटेल तैयार हो रहे हैं. इस तरह की भाषा ना बोलें."

माथुर के बयान पर सीएम भूपेश का पलटवार: माथुर के इस बयान पर जब सीएम बघेल से मीडिया ने इस संबंध में सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा कि "अहमद पटेल बनना आसान नहीं है. अहमद पटेल बड़ी शख्सियत थे. वे कई बार लोकसभा जीते, राज्यसभा में रहे, सोनिया जी के सचिव के रूप में बरसों तक देश की राजनीति में उनका दखल था. अहमद पटेल बनना आसान काम नहीं है. जिस प्रकार से अहमद पटेल ने पार्टी को सेवाएं दीं, वह किसी व्यक्ति के बस की बात नहीं है. उनसे तुलना करना है."

भाजपा नेताओं के कान खींचने की बात पर सीएम बोले: सीएम भूपेश ने भाजपा नेताओं के कान खींचने की बात पर कहा, "हंटर चलाने से भी काम नहीं चला, अब कान खींचने की बात है. मतलब यह है कि जब बच्चे उद्दंड हो जाते हैं, बात नहीं मानते, तब कान खींचा जाता है या तो वे दिल्ली वालों से सध नहीं रहे हैं. दिल्ली वालों की सुन नहीं रहे हैं. उनसे कुछ संभल नहीं रहा है. दंड देने की बात क्यों कहते हैं. जब स्थिति संभलती नहीं, तब दंड देने की बात होती है."

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