हैदराबाद: 14 अगस्त 1947 को अस्तित्व में आए पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के साथ भारत की अब तक 4 बार जंग हो चुकी है. जिसमें पहला 1947 का भारत-पाक युद्ध, जिसे प्रथम कश्मीर युद्ध भी कहा जाता है, दूसरा 1965, तीसरा 1971 का युद्ध जिसमें पूरी दुनिया ने भारत के शौर्य को देखा. इस युद्ध में पाक के दो हिस्से हुए और एक हिस्सा बांग्लादेश बना. चौथा और अंतिम युद्ध था कारगिल, जिसमें हमेशा की तरह धोखे से कारगिल (Kargil War) की चोटियों पर कब्जा करने वाले पाकिस्तान को फिर से मुंह की खानी पड़ी. हालांकि जानकार बताते हैं इस गुपचुप हमले में पाक आर्मी को शुरुआत में बढ़त मिली, लेकिन भारतीय सेना के जांबाजों ने असंभव को संभव करते हुए हारी हुई बाजी पलट दी. इस जंग को छेड़ने के पीछे क्या थे पाकिस्तान के मंसूबे, कैसे मिली शिकस्त, जानिए आज कारगिल दिवस पर ...
पाक के धोखे को ऐसे समझा था भारतीय सेना ने और दी थी मात
जानकार बताते हैं कि 8 मई 1999 का दिन था जब, पाकिस्तानी सैनिक सबसे पहले कारगिल इलाके (Kargil Area) में भारतीय चरवाहों को दिखाई दिए. चरवाहों ने ये बात भारतीय सेना (Indian Army) को बताई. सेना के जवानों ने इलाके का निरीक्षण किया और जान गए कि पाकिस्तानी भारतीय सीमा में घुस आए हैं. स्थिति भांप लेने के बाद इंडियन आर्मी ने जवाबी कार्रवाई में फायरिंग कर दी.
हैरानी की बात ये थी कि पाकिस्तान ने कोई जवाबी कार्रवाई नहीं की. दरअसल, पाक की चाल कुछ और थी. पाकिस्तानी सेना के तत्कालीन जनरल परवेज मुशर्रफ ने पहले से ही खुद रेकी की थी कि उस समय यहां इंडियन आर्मी रोजाना वहां पेट्रोलिंग के लिए नहीं जाती थी. साथ ही ये इलाका नेशनल हाइवे-1-D के एकदम करीब है और यह रास्ता लद्दाख से कारगिल को श्रीनगर और देश के बाकी हिस्सों से जोड़ता है. यह रास्ता सेना के लिए अहम सप्लाई रूट है. ये इलाका दुश्मन के कब्जे में जाने का मतलब सेना के लिए सप्लाई का बुरी तरह से प्रभावित होना था.
पाक सेना ने इस सूनसान इलाके और मौसम का फायदा उठाकर यहां घुसपैठ करने की योजना बनाई तो उसका पहला लक्ष्य टाइगर हिल पर कब्जा करना था. वहीं भारतीय सेना ने एक कदम आगे जाकर तय किया था कि किसी भी हाल में टाइगर हिल पर कब्जा करना है. चूंकि यह सबसे मुश्किल काम था इसलिए पाकिस्तानी सेना ने भी सोचा नहीं था की भारत ऐसा कदम उठा लेगा. भारतीय सेना ने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए करीब 18,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित टाइगर हिल को जीत लिया.
टाइगर हिल पर जीत एक बड़ा टर्निंग प्वाइंट था और इसी के बाद से ऊंचाई पर बैठकर बढ़त बनाकर चल रहे पाकिस्तान के मंसूबे पस्त हो गए. भारतीय सेना के लिए पूरा ऑपरेशन बहुत आसान हो गया और पहले प्वाइंट 4965, फिर सांदो टॉप, जुलु स्पर, ट्राइजंक्शन सभी भारतीय रेंज में आ गए थे. उसके बाद जो हुआ उसे पूरी दुनिया आज भी सलाम करती है.
जब दिलीप कुमार ने नवाज शरीफ को कर दिया हक्का-बक्का
कारगिल युद्ध का एक किस्सा बड़ा ही मशहूर है. दरअसल, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को पाकिस्तानी सेना के घुसपैठ के बारे में पता चला तो उन्होंने पहले खुद पाकिस्तानी के उस समय के पीएम से बात करके नाराजगी जाहिर की. उसके बाद उन्होंने नवाज को फोन रखने से रोका और कहा कि जरा रुकिए, अब मैं आपसे किसी की बात करा रहा हूं.
जब तक नवाज शरीफ कुछ समझते, उनके कानों में दिलीप कुमार की आवाज गूंज रही थी जिसे सुनकर नवाज शरीफ हक्का-बक्का रह गए थे. फोन पर अपनी बात को बढ़ाते हुए दिलीप कुमार बोले मियां साहब! आप हमेशा भारत-पाकिस्तान के बीच शांति के मुद्दे पर अडिग रहे हैं, आप ऐसा करेंगे ऐसी उम्मीद न थी. इस वजह से भारत के मुसलमान अपने आपको असुरक्षित महसूस कर रहे हैं और लोग अपना घर तक छोड़ने की सोच रहे हैं. ऐसे हालातों से निपटने के लिए कुछ कीजिए.
कारगिल के हीरो कैप्टन विक्रम बत्रा और गुंजन सक्सेना
कारगिल का जिक्र आए और कैप्टन विक्रम बत्रा का नाम होंठों पर न आए, ऐसा भला कैसे हो सकता है. हिमाचल के शेर कारगिल हीरो कैप्टन विक्रम बत्रा ने कारगिल के पांच बेहद महत्वपूर्ण प्वाइंट्स पर तिरंगा फहराने में अहम भूमिका निभाई थी. उनके पिता गिरधारी लाल बत्रा विक्रम के निडर जज्बे का जिक्र करते हुए कहते हैं कि जब उन्होंने प्वाइंट 5140 को पाक के कब्जे से मुक्त कराया.
इसके बाद उन्होंने अपनी कमांड पोस्ट को रेडियो पर एक मैसेज दिया- 'ये दिल मांगे मोर', उसके बाद अपने अपनी मां और मुझसे से बात की थी. परमवीर चक्र पाने वाले शहीद विक्रम बत्रा के बारे में तत्कालीन इंडियन आर्मी चीफ ने कहा था कि अगर वह जिंदा लौटकर आते, तो इंडियन आर्मी के हेड होते. विक्रम बत्रा को मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च वीरता सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.
कारगिल गर्ल गंजन सक्सेना ने युद्ध क्षेत्र में निडर होकर चीता हेलीकॉप्टर उड़ाया. इस दौरान वह द्रास और बटालिक की ऊंची पहाड़ियों से घायल सैनिकों को उठाकर वापस सुरक्षित स्थान पर लेकर आईं. पाकिस्तानी सैनिक लगातार रॉकेट लॉन्चर और गोलियों से हमला कर रहे थे. गुंजन के एयरक्राफ्ट पर मिसाइल भी दागी गई, लेकिन निशाना चूक गया और वे बाल-बाल बचीं. बिना किसी हथियार के गुंजन ने पाकिस्तानी सैनिकों का मुकाबला किया और कई जवानों को वहां से सुरक्षित निकाला. गुंजन को उनकी बहादुरी के लिए शौर्य चक्र से सम्मानित किया.
कारगिल युद्ध से जुड़े 10 चौंकाने वाले खुलासे
- पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के पूर्व अधिकारी शाहिद अजीज ने खुद अपने देश को बेनकाब किया. दरअसल, पहले पाकिस्तान की ओर से बयान दिया गया था कि कारगिल की लड़ाई में मुजाहिद्दीन शामिल थे. अजीज ने बताया कि यह लड़ाई पाकिस्तान के नियमित सैनिकों ने लड़ी.
- कारगिल की लड़ाई शुरू होने से कुछ सप्ताह पहले तत्कालीन पाकिस्तानी जनरल परवेज मुशर्रफ ने एक हेलिकॉप्टर से नियंत्रण रेखा पार की थी. साथ ही भारतीय जमीन पर करीब 11 किमी अंदर जिकरिया मुस्तकार नामक स्थान पर रात भी बिताई थी.
- उम्मीद से ज्यादा खतरनाक हुई कारगिल की जंग में एक समय ऐसा भी आया जब हार के खौफ में खिसियाये हुए मुशर्रफ ने परमाणु हथियार तक इस्तेमाल करने की तैयारी कर ली थी.
- पाकिस्तानी सेना कारगिल युद्ध को 1998 से अंजाम देने की फिराक में थी. इस काम के लिए पाक सेना ने अपने 5000 जवानों को कारगिल पर चढ़ाई करने के लिए भेजा था.
- कारगिल की लड़ाई के दौरान पाकिस्तानी एयर फोर्स के चीफ को पहले इस ऑपरेशन की सूचना नहीं दी गई थी. जब इस बारे में पाकिस्तानी एयर फोर्स के चीफ को बताया गया तो उन्होंने इस मिशन में आर्मी का साथ देने से मना कर दिया था.
- एक पाकिस्तानी अखबार के मुताबिक, नवाज शरीफ ने इस बात को स्वीकारा था कि कारगिल का युद्ध पाकिस्तानी सेना के लिए एक आपदा साबित हुआ था. इसमें पाकिस्तान को 1965 और 1971 की लड़ाई से भी ज्यादा नुकसान हुआ था और 2700 से ज्यादा सैनिक खो दिए थे.
- कारगिल युद्ध में भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के खिलाफ मिग-27 और मिग-29 का प्रयोग किया था. मिग-27 की मदद से इस युद्ध में उन स्थानों पर बम गिराए, जहां पाक सैनिकों ने कब्जा जमा लिया था. इसके अलावा मिग-29 करगिल में बेहद महत्वपूर्ण साबित हुआ और इससे पाक के कई ठिकानों पर आर-77 मिसाइलें दागी गईं थीं.
- आठ मई को कारगिल युद्ध शुरू होने के 3 दिन बाद इंडियन एयर फोर्स ने थल सेना की मदद शुरू कर दी थी. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस युद्ध में वायु सेना के करीब 300 विमान उड़ान भरते थे.
- कारगिल की ऊंचाई समुद्र तल से 16000 से 18000 फीट ऊपर है. ऐसे में उड़ान भरने के लिए विमानों को करीब 20,000 फीट की ऊंचाई पर उड़ना पड़ता है. इतनी ऊंचाई पर हवा का घनत्व 30% से कम होने से पायलट का दम विमान के अंदर ही घुट सकता है और विमान दुर्घटनाग्रस्त होने का खतरा बना रहता है.
- इस जंग में भारतीय सेना ने तोपखाने (आर्टिलरी) से 2,50,000 गोले और रॉकेट दागे गए थे. 300 से अधिक तोपों, मोर्टार और रॉकेट लॉन्चरों ने रोज करीब 5,000 बम फायर किए थे. लड़ाई के महत्वपूर्ण 17 दिनों में प्रतिदिन हर आर्टिलरी बैटरी से औसतन एक मिनट में एक राउंड फायर किया गया था. दूसरे विश्व युद्ध के बाद यह पहली ऐसी लड़ाई थी, जिसमें किसी एक देश ने दुश्मन देश की सेना पर इतनी अधिक बमबारी की थी.