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उम्र के ढलान पर जोधईया बाई की उड़ान! विलुप्त होती बैगा चित्रकला को किया जीवित, अब मिलेगा पद्मश्री पुरुस्कार - MP News umaria

83 साल की उम्र में जोधइया बाई बैगा को बैगा चित्रकारी ने राष्ट्रपति भवन तक पहुंचा दिया है. उन्हें 8 मार्च को महिला दिवस पर दिल्ली में राष्ट्रीय मातृशक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा. बैगा जनजातीय कलाकार जोधईया बाई को पद्मश्री पुरुस्कार देने की गृह मंत्रालय भारत सरकार ने घोषणा की है.

Jodhia Bai Umaria
उमरिया जोधईया बाई
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Published : Jan 26, 2023, 4:54 PM IST

Updated : Feb 15, 2023, 2:01 PM IST

उम्र के ढलान पर जोधईया बाई की उड़ान!

उमरिया। 83 साल की उम्र में जोधईया बाई बैगा को कला के क्षेत्र में गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्मश्री पुरुस्कार देने की गृह मंत्रालय भारत सरकार ने घोषणा की है. बीते वर्ष में आठ मार्च यानी महिला दिवस पर उन्हें दिल्ली में राष्ट्रीय मातृशक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. जोधईया बाई को पद्मश्री अवार्ड का सपना देख उनके गुरु स्वर्गीय आशीष स्वामी कोविड की दूसरी लहार के दौरान अप्रैल 2021 में दुनिया को अलविदा कह गए. आखिर इस बूढ़ी आदिवासी महिला ने कर दिखाया. उमरिया जैसे एक छोटे से गांव लोढ़ा की रहने वाली.

Jodhia Bai Umaria
देश विदेश में लग चुकी है प्रदर्शनी

विलुप्त बैगा चित्रकारी को किया जीवित: जोधईया बाई बैगा की किस्मत आसमान से भी ऊंची हो गई है. 83 वर्ष की उम्र में जब आम इंसान जीने की उम्मीदें थक जाती हैं, ऐसे उम्र के पड़ाव में जोधईया बाई की उड़ान नई बुलंदियों को छू रही है. जोधईया बाई ने एक बार फिर विलुप्त हो चुकी बैगा चित्रकारी को पुनर्जीवित किया है. बड़ादेव और बाघासुर के चित्रों से बैगाओं के घरों की दीवारों को सुशोभित होती थी पर अब धीरे धीरे इनका चलन खत्म सा होता दिख रहा. ना ही वे बैगाओं की नई पीढ़ी को जानते हैं. लेकिन जोधईया बाई के प्रयास से बैगा जनजाति की यह कला एक बार फिर जीवंत हो उठी है. पिछले 10 वर्षों में जोधइया बाई द्वारा निर्मित चित्रों के विषय पुरानी भारतीय परंपरा में देवलोक, भगवान शिव और बाघ की अवधारणा पर आधारित हैं. जिसमें पर्यावरण और वन्य जीवन के महत्व को दर्शाया गया है.

Jodhia Bai Umaria
80 साल की उम्र में जोधइया बाई बैगा

पर्यावरण का चिंतन: बैगा चित्रकारी बैगा आदिवासियों की कल्पना का वह पूरा संसार है. जिसे वह अपने नजरिए से देखता और रचता है. बैगाओं की इसी कल्पना को उनकी शैली कहा गया है. स्व.आशीष स्वामी के अनुसार बैगा वृक्षों में और बाघों में भगवान शंकर को देखते हैं. इसलिए वे अपने चित्रों में भगवान शंकर को बघासुर और वृक्षों के रूप में चित्रत करते हैं. बैगा अपने घरों की सज्जा भी इसी कल्पना के अनुसार करते हैं. भित्ती पर बनाए जाने वाले चित्र ही बैगा चित्रकारी कहलाती है. जंगल में रहने वाले इन आदिवासियों के चित्रों में मुख्य रूप से जंगल, जंगल के जानवर और पर्यावरण का चिंतन दिखाई पड़ता है. बैगाओं ने चीजों को किस तरह से देखा. महसूस किया और फिर उसे मिट्टी के रंगों से उकेरा यही बैगा चित्रकारी है.

Jodhia Bai Umaria
विलुप्त होती बैगा चित्रकला को किया जीवित

देश विदेश में लग चुकी है प्रदर्शनी: उनके चित्रों को पेरिस, मिलान इटली, फ्रांस में आयोजित कला दीर्घाओं में प्रदर्शित किया गया है. इसके अलावा इंग्लैंड, अमेरिका और जापान आदि में बने पारंपरिक बैगा जाति के चित्रों की प्रदर्शनी भी लगाई गई है. शांति निकेतन विश्वभारती विश्वविद्यालय, नेशनल स्कूल आफ ड्रामा, आदिरंग कार्यक्रम में शामिल हुईं और सम्मानित हुईं. मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय भोपाल में जोधइया बाई के नाम से एक स्थाई दीवार बनी हुई है. जिस पर इनके बनाए हुए चित्र हैं. मानस संग्रहालय में भी शामिल चुकी है. प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान ना सिर्फ जोधइया बाई को सम्मानित कर चुके हैं. बल्कि वे उनसे मिलने के लिए लोढ़ा के उनके कर्मस्थल तक भी पहुंच गए थे.

बैगा आदिवासी महिलाओं ने चित्रकारी से बनाई दुनिया में पहचान

ये हैं प्रमुख उपलब्धियां: शांतिनिकेतन विश्वभारती विश्वविद्यालय, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, आदि रंग ने कार्यक्रम में भाग लिया. भोपाल के जनजातीय संग्रहालय में जोधैया बाई के नाम पर एक स्थायी दीवार है, जिस पर उनके द्वारा बनाई गई पेंटिंग हैं. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ना केवल जोधैया बाई को सम्मानित किया है, बल्कि वह उनसे मिलने लोढ़ा में उनके कार्यस्थल भी पहुंचे थे.

उम्र के ढलान पर जोधईया बाई की उड़ान!

उमरिया। 83 साल की उम्र में जोधईया बाई बैगा को कला के क्षेत्र में गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्मश्री पुरुस्कार देने की गृह मंत्रालय भारत सरकार ने घोषणा की है. बीते वर्ष में आठ मार्च यानी महिला दिवस पर उन्हें दिल्ली में राष्ट्रीय मातृशक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. जोधईया बाई को पद्मश्री अवार्ड का सपना देख उनके गुरु स्वर्गीय आशीष स्वामी कोविड की दूसरी लहार के दौरान अप्रैल 2021 में दुनिया को अलविदा कह गए. आखिर इस बूढ़ी आदिवासी महिला ने कर दिखाया. उमरिया जैसे एक छोटे से गांव लोढ़ा की रहने वाली.

Jodhia Bai Umaria
देश विदेश में लग चुकी है प्रदर्शनी

विलुप्त बैगा चित्रकारी को किया जीवित: जोधईया बाई बैगा की किस्मत आसमान से भी ऊंची हो गई है. 83 वर्ष की उम्र में जब आम इंसान जीने की उम्मीदें थक जाती हैं, ऐसे उम्र के पड़ाव में जोधईया बाई की उड़ान नई बुलंदियों को छू रही है. जोधईया बाई ने एक बार फिर विलुप्त हो चुकी बैगा चित्रकारी को पुनर्जीवित किया है. बड़ादेव और बाघासुर के चित्रों से बैगाओं के घरों की दीवारों को सुशोभित होती थी पर अब धीरे धीरे इनका चलन खत्म सा होता दिख रहा. ना ही वे बैगाओं की नई पीढ़ी को जानते हैं. लेकिन जोधईया बाई के प्रयास से बैगा जनजाति की यह कला एक बार फिर जीवंत हो उठी है. पिछले 10 वर्षों में जोधइया बाई द्वारा निर्मित चित्रों के विषय पुरानी भारतीय परंपरा में देवलोक, भगवान शिव और बाघ की अवधारणा पर आधारित हैं. जिसमें पर्यावरण और वन्य जीवन के महत्व को दर्शाया गया है.

Jodhia Bai Umaria
80 साल की उम्र में जोधइया बाई बैगा

पर्यावरण का चिंतन: बैगा चित्रकारी बैगा आदिवासियों की कल्पना का वह पूरा संसार है. जिसे वह अपने नजरिए से देखता और रचता है. बैगाओं की इसी कल्पना को उनकी शैली कहा गया है. स्व.आशीष स्वामी के अनुसार बैगा वृक्षों में और बाघों में भगवान शंकर को देखते हैं. इसलिए वे अपने चित्रों में भगवान शंकर को बघासुर और वृक्षों के रूप में चित्रत करते हैं. बैगा अपने घरों की सज्जा भी इसी कल्पना के अनुसार करते हैं. भित्ती पर बनाए जाने वाले चित्र ही बैगा चित्रकारी कहलाती है. जंगल में रहने वाले इन आदिवासियों के चित्रों में मुख्य रूप से जंगल, जंगल के जानवर और पर्यावरण का चिंतन दिखाई पड़ता है. बैगाओं ने चीजों को किस तरह से देखा. महसूस किया और फिर उसे मिट्टी के रंगों से उकेरा यही बैगा चित्रकारी है.

Jodhia Bai Umaria
विलुप्त होती बैगा चित्रकला को किया जीवित

देश विदेश में लग चुकी है प्रदर्शनी: उनके चित्रों को पेरिस, मिलान इटली, फ्रांस में आयोजित कला दीर्घाओं में प्रदर्शित किया गया है. इसके अलावा इंग्लैंड, अमेरिका और जापान आदि में बने पारंपरिक बैगा जाति के चित्रों की प्रदर्शनी भी लगाई गई है. शांति निकेतन विश्वभारती विश्वविद्यालय, नेशनल स्कूल आफ ड्रामा, आदिरंग कार्यक्रम में शामिल हुईं और सम्मानित हुईं. मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय भोपाल में जोधइया बाई के नाम से एक स्थाई दीवार बनी हुई है. जिस पर इनके बनाए हुए चित्र हैं. मानस संग्रहालय में भी शामिल चुकी है. प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान ना सिर्फ जोधइया बाई को सम्मानित कर चुके हैं. बल्कि वे उनसे मिलने के लिए लोढ़ा के उनके कर्मस्थल तक भी पहुंच गए थे.

बैगा आदिवासी महिलाओं ने चित्रकारी से बनाई दुनिया में पहचान

ये हैं प्रमुख उपलब्धियां: शांतिनिकेतन विश्वभारती विश्वविद्यालय, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, आदि रंग ने कार्यक्रम में भाग लिया. भोपाल के जनजातीय संग्रहालय में जोधैया बाई के नाम पर एक स्थायी दीवार है, जिस पर उनके द्वारा बनाई गई पेंटिंग हैं. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ना केवल जोधैया बाई को सम्मानित किया है, बल्कि वह उनसे मिलने लोढ़ा में उनके कार्यस्थल भी पहुंचे थे.

Last Updated : Feb 15, 2023, 2:01 PM IST
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