टीकमगढ़। अगर आपसे कहा जाए कि किसी बावड़ी में से पानी के साथ-साथ बर्तन भी निकलते हैं. तो शायद आप विश्वास नहीं करेंगे. लेकिन टीकमगढ़ जिले में एक ऐसी ही बावड़ी थी. जिसमें से बर्तन निकलते थे. हालांकि यह चमत्कार आज के वक्त में देखने को नहीं मिलता. लेकिन वक्त ऐसा होता था. क्योंकि स्थानीय लोग इसे सच मानते हैं.
टीकमगढ़ शहर से दो किलो मीटर दूर पपौरा गांव में एक प्रसिद्ध जैन मंदिर है. जिसे पपौरा जैन मंदिर के नाम से जाना जाता है. इस मंदिर में आदिनाथ भगवान विराजमान है. इसी मंदिर परिसर में एक बावड़ी है. स्थानीय लोग कहते है कि इस बावड़ी में से एक वक्त में बर्तन निकलते थे. क्योंकि इस पूरे क्षेत्र में भगवान आदिनाथ की विशेष कृपा थी. जिसके चलते यहां के लोगों की वे हर जरुरत को पूरा करते थे.
भगवान आदिनाथ की कृपा से निकलते थे बर्तन
स्थानीय लोग इस घटना से जुड़ी एक किवदंती बताते हैं, कहा जाता है कि एक बार का गांव के एक गरीब परिवार के घर में शादी थी. लेकिन उसके पास बर्तन तक नहीं थे. लिहाजा उस गरीब ने भगवान आदिनाथ के सामने प्रार्थना की. तब एक आकाशवाणी हुई और आवाज आयी की बावड़ी के पास जाकर संदेश दो कि तुम्हें कितने बर्तन चाहिए उतने बर्तन मिल जाएगे. गरीब ने जब बावड़ी के पास जाकर प्रार्थना की तो उसे बर्तन मिल गए. तब से जब भी किसी को भी बर्तन की जरुरत पड़ती. वह बावड़ी के पास एक चिट्ठी में बर्तन लिख कर रख देता और दूसरे दिन उसे उतने ही बर्तन मिल जाते थे.
गरीबों की बावड़ी के नाम से है पहचान
लोगों की जरुरत पूरी होने की वजह से इसे गरीबों की बावड़ी कहा जाता है. स्थानीय लोग मानते है कि यहां भगवान आदिनाथ की कृपा से इस बावड़ी में यक्ष निवास करते हैं. जो सबकी जरुरतों को पूरा करते हैं. इसलिए जब भी किसी को बर्तन की जरुरत पड़ती वे इस बावड़ी से ले लेते थे. हालांकि बाद में इस बावड़ी से वर्तन निकलना बंद हो गए. स्थानीय लोग बताते हैं कि बावड़ी से निकलने वाले बर्तन बेहद चमकीलें और सुंदर दिखते थे. जिससे कुछ लोगों यहां से बर्तन निकालने के बाद उन्हें वापस ही नहीं रखा. जिससे धीरे-धीरे इस बावड़ी से बर्तन निकलना बंद हो गए. माना जाता है कि पिछले 90 साल से इस बावड़ी से बर्तन नहीं निकलते हैं.
आज भी पूरी होती हैं मनोकामनाएं
अब बावड़ी में से वर्तन निकालना तो बंद हो गए. लेकिन लोगों की आस्था आज भी इस बावड़ी से जुड़ी है. मंदिर में तांबे के कुछ ऐसे वर्तन आज भी रखे हैं जो शायद बावड़ी से निकले थे. गांव के लोग इसे गरीबों के बावड़ी कहते है क्योंकि यह हमेशा गरीबों की मदद करती थी. यही वजह है कि इस बावड़ी को देखने आज भी दूर-दूर से लोग पपौरा गांव पहुंचते है जिसका इतिहास आज भी यहां लोग सुनाते हैं.