टीकमगढ़। बुंदेला राजाओं की धरती बुंदेलखंड का ऐतिहासिक महत्व किसी से छुपा नहीं है. इस क्षेत्र में स्थापत्य कला के अद्भुत नमूने देखने को मिलते हैं. यहां कई ऐतिहासिक धरोहर हैं, जो वीरता, भक्ति और प्रेम की निशानी हैं और अपनी कहानी खुद ही बयां करतीं हैं. ऐसी ही प्राचीन धरोहर है महारानी हीरा कुवर जू की बावड़ी. ओरछा रोड पर स्थित इस बावड़ी की कहानी बड़ी दिलचस्प है. कहते हैं कि एक दिन महारानी हीरादेवी ने महाराज सुजान सिंह से उपहार की मांग की. जिस पर राजा ने कहा कुछ भी मांगने का वचन दे दिया. तो फिर रानी ने स्नान के लिए एक सुंदर बावड़ी और महल की मांग रख दी.
फिर क्या था, कुछ ही समय बाद राजा सुजान सिंह ने 1660 में इस बावरी को तैयार करवा दिया गया. माना जाता है इस आलीशान बावड़ी में सात खंड हैं. जिसमें पांच खंड पानी में डूबे रहते हैं और दो खंडों पर महल बना हुआ है. जहां रानी सखियों के साथ आराम करतीं थीं. टीकमगढ़ महल से इस बावड़ी की दूरी 10 किलोमीटर है. कहा जाता है कि महल से बावड़ी तक एक सुरंग बनाई गई थी, जिसके जरिए महारानी अपनी सखियों के साथ स्नान करने इस बावड़ी में जातीं थीं.
स्थानीय लोगों का कहना है कि बावड़ी का पानी कभी खाली नहीं होता है. माना जाता है कि इसकी गहराई करीब 500 मीटर है. पानी के इस स्त्रोत के चलते ही कालांतर में यहां हीरानगर नामक एक कस्बा बसाया गया. जिसमें आज करीब तीन हजार लोग रहते हैं. करीब 350 साल पहले बनाई ये बावड़ी महाराजा सुजान सिंह और महारानी हीरादेवी के प्रेम की निशानी है. जो आज भी उनके अमर प्रेम की गाथा सुना रही है.