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शहडोल जिले में तेजी से पैर पसार रहा कुपोषण, आखिर कब मिलेगी इस कलंक से मुक्ति? - शहडोल जिले में पैर पसारता कुपोषण

कुपोषण मध्य प्रदेश को दीमक की तरह लग चुका है. प्रदेश का लगभग हर जिला कुपोषण का दंश झेल रहा है. कुछ ऐसे ही हालात आदिवासी बाहुल्य शहडोल जिले के भी है. जहां कुपोषण तेजी से पैर पसारता जा रहा है.

कुपोषण
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Published : Dec 4, 2019, 1:37 AM IST

शहडोल। जिले में कुपोषण के आंकड़े बेहद चौकाने वाले है. जिले भर में 18 हजार 221 बच्चे कुपोषण का शिकार है. जबकि 2 हजार 381 बच्चें अति कुपोषित हैं. कुपोषण के खिलाफ जंग लड़ने के लिये जगह-जगह आंगनबाड़ी मिनी आंगनबाड़ी चल रही है. जहां गांव-गांव से लेकर गली मोहल्ले तक के बच्चों पर नज़र रखी जाती है. लेकिन फिर भी जिले भर में कुपोषित बच्चों की संख्या घटने की बजाए लगातार बढ़ती जा रही है.

शहडोल में बढ़ता कुपोषण

शहडोल जिले में 6 एनआरसी केंद्र बनाए गए हैं. जिनमें शहडोल, बुढ़ार, सिंहपुर, गोपापारू, जयसिंहनगर, ब्यौहारी शामिल हैं. अगर इन एनआरसी केंद्र की बात की जाए तो यहां कुपोषित बच्चों की भरमार है. ऐसा हम नहीं खुद जिले के महिला एवं अधिकारी कह रहे हैं. हालांकि महिला एवं बाल विकास अधिकारी का कहना है कि कुपोषण एक बहुआयामी समस्या है. जिसे एक योजना की तरह ट्रीट करके ही खत्म किया जा सकता. शहडोल जिले में पूरा सरकारी अमला कुपोषण से जंग लड़ रहा है.

अधिकारी भले ही कुछ भी कहे. लेकिन जिले के कुपोषित बच्चों को पोषित करने के सरकारों द्वारा चलाई जा रही योजनाएं न काफी साबित हो रही है. ऐसे में सरकारों को कुपोषण के कलंक को मिटाने की जिम्मेदारी तो लेनी ही होगी. ताकि देश का भविष्य कुपोषण के कलंक से मुक्त हो सके.

शहडोल। जिले में कुपोषण के आंकड़े बेहद चौकाने वाले है. जिले भर में 18 हजार 221 बच्चे कुपोषण का शिकार है. जबकि 2 हजार 381 बच्चें अति कुपोषित हैं. कुपोषण के खिलाफ जंग लड़ने के लिये जगह-जगह आंगनबाड़ी मिनी आंगनबाड़ी चल रही है. जहां गांव-गांव से लेकर गली मोहल्ले तक के बच्चों पर नज़र रखी जाती है. लेकिन फिर भी जिले भर में कुपोषित बच्चों की संख्या घटने की बजाए लगातार बढ़ती जा रही है.

शहडोल में बढ़ता कुपोषण

शहडोल जिले में 6 एनआरसी केंद्र बनाए गए हैं. जिनमें शहडोल, बुढ़ार, सिंहपुर, गोपापारू, जयसिंहनगर, ब्यौहारी शामिल हैं. अगर इन एनआरसी केंद्र की बात की जाए तो यहां कुपोषित बच्चों की भरमार है. ऐसा हम नहीं खुद जिले के महिला एवं अधिकारी कह रहे हैं. हालांकि महिला एवं बाल विकास अधिकारी का कहना है कि कुपोषण एक बहुआयामी समस्या है. जिसे एक योजना की तरह ट्रीट करके ही खत्म किया जा सकता. शहडोल जिले में पूरा सरकारी अमला कुपोषण से जंग लड़ रहा है.

अधिकारी भले ही कुछ भी कहे. लेकिन जिले के कुपोषित बच्चों को पोषित करने के सरकारों द्वारा चलाई जा रही योजनाएं न काफी साबित हो रही है. ऐसे में सरकारों को कुपोषण के कलंक को मिटाने की जिम्मेदारी तो लेनी ही होगी. ताकि देश का भविष्य कुपोषण के कलंक से मुक्त हो सके.

Intro:नोट- वर्जन महिला एवं बाल विकास के जिला कार्यक्रम अधिकारी मनोज लारोकर का है।

इस आदिवासी अंचल में भी है कुपोषण का प्रकोप, यहां कुपोषण है एक कलंक

शहडोल- शहडोल जिला आदिवासी अंचल के अंतर्गत आता है, और यहां भी कुपोषण एक कलंक की तरह है, जिले में भी कुपोषित बच्चों की संख्या ज्यादा है जो प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। शहडोल में भी कुपोषित बच्चों के जो आंकड़े मिले वो चौकाने वाले हैं।


Body:कुपोषण एक कलंक, जानिए जिले में कुपोषण की स्थिति

महिला बाल विकास के जिला कार्यक्रम अधिकारी मनोज लारोकर बताते हैं कि जिले में 0 से 5 साल तक के बच्चे टोटल 96,108 बच्चे हैं, जिसमें 94,781 बच्चों का वजन किया गया जिसमें 1327 बच्चे वजन से छूट गए।

जिन बच्चों का वजन किया गया उनमें 18,221 ऐसे बच्चे हैं जो कुपोषित बच्चे हैं मतलब कम वजन वाले बच्चे हैं।

और 2,381 ऐसे बच्चे हैं जो अतिकुपोषित बच्चे हैं जिनका वजन बहुत ही कम है।

जानिए मैदानी हकीकत

कुपोषण के खिलाफ जंग लड़ने के लिये जगह जगह आंगनबाड़ी मिनी आंगनबाड़ी बनाये गए हैं जहां गांव गांव से लेकर गली मोहल्ले तक के बच्चों पर नज़र रखा जाता है फिर भी कुपोषित बच्चों की संख्या में कमी नहीं आ रही है। कुपोषण जिले के लिए एक कलंक की तरह है।

जिले में टोटल 1599 आंगनबाड़ी केंद्र हैं जिसमें 1415 मुख्य आंगनबाड़ी हैं तो वहीं 184 मिनी आगनबाड़ी केंद्र हैं।

जिले में सुपरवाइजर के 56 पद भरे हुए हैं, जिले भर में 1404 आगनबाड़ी कार्यकर्ता अलग अलग जगह पर पदस्थ हैं, 1402 सहायिकाएं अलग अलग जगह पर पदस्थ हैं, 184 मिनी कार्यकर्ता हैं, इन सभी की जिम्मेदारी होती है कुपोषण के खिलाफ जंग लड़ने की।

जिले में एनआरसी केंद्र

जिले में बुढ़ार, शहडोल, सिंहपुर, गोहपारू, जयसिंहनगर, ब्यौहारी, 6 एनआरसी केंद्र भी हैं जहां कुपोषित बच्चों को पोषित किया जाता है।




Conclusion:इसके बाद भी कुपोषण कलंक क्यों ?

महिला बाल विकास के जिला कार्यक्रम अधिकारी मनोज लारोकर के मुताबिक कुपोषण एक तरह से बहुआयामी समस्या है, और बहुआयामी समस्या होने के चलते उसे सही ढंग से ट्रीट करना जरूरी है।

एनआरसी को लेकर महिला एवं बाल विकास के जिला कार्यक्रम अधिकारी का कहना है कि एनआरसी अमूमन भरे रहते हैं, त्योहार और खेती किसानी के समय ही थोड़ी दिक्कत होती है, लेकिन जब हम जिला मुख्यालय के जिला चिकित्सल्य में एनआरसी की स्थिति देखने पहुंचे तो वहां महज 5 बच्चे ही मिले जो एनआरसी की स्थिति को लेकर भी सवाल खड़ा करते है। संभागीय मुख्यालय के एनआरसी में महज 5 बच्चे रहना वो भी तब जब जिले में कुपोषण एक कलंक है, बहुत कुछ कहता है।

जिले भर में जब इतना बड़ा मैदानी अमला कुपोषण के खिलाफ जंग लड़ रहा है, कुपोषण के खिलाफ जंग लड़ने के लिए सरकार इतनी योजनाएं और सुविधाएं ला रही है, कुपोषित बच्चों को पोषित करने के लिए जिले भर में इतने एनआरसी केंद्र हैं, फिर भी कुपोषण जिले में एक कलंक क्यों है ये एक बड़ा सवाल है।
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