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देवउठनी एकादशी में जरूर करें ये काम, आप पर बनी रहेगी भगवान की कृपा, होगा लाभ ही लाभ - तुलसी विवाह पूजा विधी

Dev Uthani Ekadashi 2023: दीपावली के बाद लोगों ने देवउठनी एकादशी की तैयारियां शुरू कर दी है. इस दिन तुलसी विवाह के साथ ही शुभ कार्यों की शुरूआत हो जाती है. ज्योतिष आचार्य पंडित सुशील शुक्ला शास्त्री से जानिए क्यों मनाते हैं देव उठनी एकादशी, शुभ मुहूर्त और इस विशेष दिन हमें क्या करना चाहिए.

Dev Uthani Ekadashi 2023
देवउठनी एकादशी
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Nov 20, 2023, 5:47 PM IST

देवउठनी एकादशी में जरूर करें ये काम

Dev Uthani Ekadashi 2023। दीपावली के बाद देवउठनी एकादशी की तैयारी भी लोग बड़े जोर शोर से करते हैं, क्योंकि देवउठनी एकादशी के दिन भी विशेष पूजा की जाती है. इस दिन से ऐसा माना जाता है कि देवउठनी एकादशी के दिन से सारे शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं. मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं और इस दिन पूजा पाठ का भी विशेष महत्व है. इसलिए भी देवउठनी एकादशी की तैयारी लोग काफी पहले से करने लगते हैं. बाजार में इन दिनों आप जहां भी जाएंगे रौनक पाएंगे. सड़कों के किनारे मिट्टी के दिये और गन्ने की दुकान पाएंगे.

इस दिन से भगवान होंगे जागृत: ज्योतिष आचार्य पंडित सुशील शुक्ला शास्त्री बताते हैं की देवउठनी एकादशी 23 नवंबर को है. इस दिन का बहुत ही विशेष महत्व होता है, क्योंकि 23 नवंबर को जब देव उठनी एकादशी होगी. उस दिन ऐसा माना जाता है कि चार महीने के बाद भगवान विष्णु जागृत होते हैं. इसे चातुर्मास भी कहा जाता है. शास्त्रों में ऐसा वर्णन है कि देव उठनी एकादशी से 4 महीने पहले भगवान क्षीर सागर में शयन के लिए चले जाते हैं और जैसे ही वो आराम करने के लिए क्षीर सागर में जाते हैं. सभी धार्मिक कार्य मांगलिक कार्य बंद हो जाते हैं. जैसे ही देव उठनी एकादशी की तिथि आती है. भगवान उस दिन जागृत होते हैं.

देवउठनी एकादशी के दिन करें तुलसी विवाह: ज्योतिष आचार्य पंडित सुशील शुक्ला शास्त्री कहते हैं कि देवउठनी एकादशी की तिथि जैसे ही आती है. उस दिन तुरंत ही तुलसी जी का विवाह भगवान विष्णु के साथ किया जाता है. इसके लिए पहले तुलसी जी का पौधा रखें. 8:21 बजे तक भद्रा है और भद्रा जैसे ही समाप्त होगा. उसके बाद आंगन में तुलसी का पौधा रखें. लाल वस्त्र से ढंके और एक कलश जलाएं. विवाह जैसे गन्ने का एक मंडप बनाऐं, मंडप बनाकर वहीं पर सभी महिलाऐं बैठकर विष्णु और तुलसी जी का पूजन करने के बाद पाद प्रच्छालन करें, विवाह जैसे कार्यक्रम करें और वहां पर बैठकर मंगल गीत गाएं.

यहां पढ़ें...

मांगलिक कार्यक्रम की हो जाती है शुरुआत: शास्त्रों में वर्णन है कि जिस घर में देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु और तुलसी जी का विवाह रचाया जाता है. तुलसी जी का पौधा वही लगा रहता है, तो शास्त्रों में लिखा है कि वहां भगवान की छाया हमेशा बनी रहती है. तुलसी का पौधा जहां पर लगा रहता है. भगवान वहीं पर हमेशा विराजमान रहते हैं. उस घर में मांगलिक कार्यक्रम होते हैं और कोई भी आधी व्याधि रोग का प्रवेश नहीं होता है. कुल मिलाकर भगवान की कृपा दृष्टी बनी रहती है. जैसे ही भगवान जागृत होते हैं. उसके बाद से ही भगवान विष्णु जी का सभी देवता सहयोग करते हैं. तभी से मांगलिक कार्यक्रम शुरू हो जाते हैं. जैसे विवाह है, व्रतबन्ध है, कनछेदन है, ये प्रारंभ हो जाते हैं. गृह प्रवेश है और भी मांगलिक कार्यक्रम हैं. यह सब कार्यक्रम शुरू हो जाते हैं, इसलिए देव उठनी एकादशी का विशेष महत्व है.

देवउठनी एकादशी में जरूर करें ये काम

Dev Uthani Ekadashi 2023। दीपावली के बाद देवउठनी एकादशी की तैयारी भी लोग बड़े जोर शोर से करते हैं, क्योंकि देवउठनी एकादशी के दिन भी विशेष पूजा की जाती है. इस दिन से ऐसा माना जाता है कि देवउठनी एकादशी के दिन से सारे शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं. मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं और इस दिन पूजा पाठ का भी विशेष महत्व है. इसलिए भी देवउठनी एकादशी की तैयारी लोग काफी पहले से करने लगते हैं. बाजार में इन दिनों आप जहां भी जाएंगे रौनक पाएंगे. सड़कों के किनारे मिट्टी के दिये और गन्ने की दुकान पाएंगे.

इस दिन से भगवान होंगे जागृत: ज्योतिष आचार्य पंडित सुशील शुक्ला शास्त्री बताते हैं की देवउठनी एकादशी 23 नवंबर को है. इस दिन का बहुत ही विशेष महत्व होता है, क्योंकि 23 नवंबर को जब देव उठनी एकादशी होगी. उस दिन ऐसा माना जाता है कि चार महीने के बाद भगवान विष्णु जागृत होते हैं. इसे चातुर्मास भी कहा जाता है. शास्त्रों में ऐसा वर्णन है कि देव उठनी एकादशी से 4 महीने पहले भगवान क्षीर सागर में शयन के लिए चले जाते हैं और जैसे ही वो आराम करने के लिए क्षीर सागर में जाते हैं. सभी धार्मिक कार्य मांगलिक कार्य बंद हो जाते हैं. जैसे ही देव उठनी एकादशी की तिथि आती है. भगवान उस दिन जागृत होते हैं.

देवउठनी एकादशी के दिन करें तुलसी विवाह: ज्योतिष आचार्य पंडित सुशील शुक्ला शास्त्री कहते हैं कि देवउठनी एकादशी की तिथि जैसे ही आती है. उस दिन तुरंत ही तुलसी जी का विवाह भगवान विष्णु के साथ किया जाता है. इसके लिए पहले तुलसी जी का पौधा रखें. 8:21 बजे तक भद्रा है और भद्रा जैसे ही समाप्त होगा. उसके बाद आंगन में तुलसी का पौधा रखें. लाल वस्त्र से ढंके और एक कलश जलाएं. विवाह जैसे गन्ने का एक मंडप बनाऐं, मंडप बनाकर वहीं पर सभी महिलाऐं बैठकर विष्णु और तुलसी जी का पूजन करने के बाद पाद प्रच्छालन करें, विवाह जैसे कार्यक्रम करें और वहां पर बैठकर मंगल गीत गाएं.

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मांगलिक कार्यक्रम की हो जाती है शुरुआत: शास्त्रों में वर्णन है कि जिस घर में देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु और तुलसी जी का विवाह रचाया जाता है. तुलसी जी का पौधा वही लगा रहता है, तो शास्त्रों में लिखा है कि वहां भगवान की छाया हमेशा बनी रहती है. तुलसी का पौधा जहां पर लगा रहता है. भगवान वहीं पर हमेशा विराजमान रहते हैं. उस घर में मांगलिक कार्यक्रम होते हैं और कोई भी आधी व्याधि रोग का प्रवेश नहीं होता है. कुल मिलाकर भगवान की कृपा दृष्टी बनी रहती है. जैसे ही भगवान जागृत होते हैं. उसके बाद से ही भगवान विष्णु जी का सभी देवता सहयोग करते हैं. तभी से मांगलिक कार्यक्रम शुरू हो जाते हैं. जैसे विवाह है, व्रतबन्ध है, कनछेदन है, ये प्रारंभ हो जाते हैं. गृह प्रवेश है और भी मांगलिक कार्यक्रम हैं. यह सब कार्यक्रम शुरू हो जाते हैं, इसलिए देव उठनी एकादशी का विशेष महत्व है.

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