शहडोल। वैसे तो खीरा की खेती किसानों के लिए आम बात है अधिकतर किसान इसकी खेती करते हैं जिन किसानों को खीरा की खेती करना पसंद है. ऐसे किसानों के लिए ही आज हम यह खबर लेकर आए हैं. आज हम जिस खीरा के बारे में बताने जा रहे हैं उसकी खेती किसान 12 महीने कर सकते है, बस उनके पास पॉलीहाउस होना जरूरी है. इस खीरा की खेती से सामान्य खीरा से ज्यादा उत्पादन भी ले सकते हैं और बड़े शहरों में तो इस खीरा की बहुत ज्यादा डिमांड भी है. इस खीरा को फ्रेंच खीरा के नाम से भी जाना जाता है, कहीं-कहीं लोग इसे जापानी खीरा भी कहते हैं और तो और इसकी खेती पूरी तरह से जैविक तरीके से भी की जा सकती है मतलब लागत भी घट सकती है. ना तो इसके उत्पादन में कमी आती है और ना ही किसी तरह के रोग की वजह से पौधे नष्ट होते हैं.
ये खीरा है खास: शहडोल कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिकों ने इन दिनों एक अलग ही प्रजाति के खीरे की खेती करके नवाचार किया है जो किसानों के लिए उत्सुकता का केंद्र बना हुआ है. खीरा की खेती करने वाले क्षेत्र के किसान इसकी खेती देखने के लिए ज्यादा तादात में पहुंच रहे हैं क्योंकि इस खीरा की फसल में फ्रूटिंग देखकर हर कोई हैरान है साथ ही इसमें किसी भी तरह के केमिकल फर्टिलाइजर और कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं किया गया है, बल्कि पूरी तरह से जैविक तरीके से इसकी खेती की गई है. फिर भी इसका उत्पादन देख हर कोई हैरान है. कृषि विज्ञान केंद्र शहडोल में जिस खीरा का नवाचार किया गया है उसका नाम पार्थेनोकार्पिक कुकुंबर है जो गेर्किन्स किस्म का है और अब यही क्षेत्र के आदिवासी किसानों के लिए उत्सुकता का बड़ा केंद्र बना हुआ है.
सेल्फ पॉलिनेटेड खीरा: कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर मृगेंद्र सिंह बताते हैं कि वैसे तो मोस्टली खीरा क्रॉस पोलिनेटेड क्रॉप्स है. इसको प्रोटेक्टेड उसमें सामान्य खीरे की खेती नहीं की जा सकती. इस बार पॉली हाउस में जिस खीरे का हमने नवाचार किया है वो सेल्फ पॉलिनेटेड खीरा है. इसमें चारों तरफ से बंद होने के कारण इसमें पॉलिनेशन नहीं हो पाता है, इसलिए इसमें अलग से पॉलीहाउस प्रोटेक्टेड कल्टीवेटेड इसे गेर्किन्स कहते हैं सेल्फ पोलिनेटेड कुकुंबर उसके सीड लगाए गए हैं.
एडवांस टेक्नॉलॉजी के साथ जैविक खेती: कृषि वैज्ञानिक मृगेंद्र सिंह बताते हैं कि इसमें मुख्य रूप से देखने की चीज यह है कि एडवांस टेक्नोलॉजी के साथ में यहां पर किसी भी तरह के केमिकल का उपयोग नहीं किया गया है ना तो इसमें डीएपी यूरिया या किसी भी तरह के फर्टिलाइजर को डाला गया है, ना ही इसमें किसी तरह के इंसेक्टिसाइड पेस्टिसाइड का इस्तेमाल किया गया है. आप देख सकते हैं कि इसमें जबरदस्त फलन है.
देखा जाए तो आदिवासी अंचल में किसानों के लिए वैसे प्रोटेक्टेड कल्टीवेशन में जाएंगे तो चीजें काफी कॉस्टली हो जाती हैं इनपुट्स काफी महंगे हो जाते हैं. सॉल्युबल फर्टिलाइजर फिर उसमें इंसेक्टिसाइड पेस्टिसाइड, और दूसरी चीजें लेकिन हमने यहां पर जो करके देखा है. इस पूरे फसल में घन जीवामृत डाला गया है इसमें प्रोटेक्शन के लिए ब्रह्मास्त्र और निमास्त्र का इस्तेमाल किया गया है लेकिन किसी भी तरह के केमिकल का उपयोग नहीं किया गया है और फसल उतनी ही शानदार उतनी ही स्वस्थ है और इतनी अच्छी फ्रूटिंग हो रही है. आप देख पा रहे हैं. यह यह हमारे आदिवासी अंचल के लिए तकनीक के साथ में जो समन्वय जैविक खेती का जो कहना चाहिए उसका उसका एक तरह से प्रदर्शन हमने किया है.
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सेहत के लिए शानदार, अच्छी खासी डिमांड: कृषि वैज्ञानिक मृगेंद्र सिंह बताते हैं कि ये खीरा खाने में भी स्वादिष्ट है और सेहत के लिए भी शानदार है. इसकी बड़े शहरों में बहुत ज्यादा डिमांड रहती है. इसका टेस्ट अपने आप में अद्भुत है, डाइजेशन के लिए बहुत उपयुक्त है, मेट्रोस में जहां बड़े-बड़े शहर हैं और बड़े रेस्टोरेंट हैं वहां यह ₹100 किलो के आसपास बिकता है. अभी क्योंकि हमारा प्रायोगिक तौर पर है अभी इसका मार्केट हम देखेंगे कि क्या रेट बिक पा रहा है. ये डाइजेशन के हिसाब से बहुत जबरदस्त चीज है और इसकी बड़े रेस्टोरेंट में बहुत डिमांड है. जब आप इसको टेस्ट करेंगे तो देखेंगे एकदम अपने देसी खीरा का जो स्वाद आता है वैसे ही इस खीरा का स्वाद आएगा.
साल में 12 महीने कर सकते हैं इसकी खेती: यह हमारे आदिवासी अंचल के किसानों के लिए अपने आप में वरदान हो सकता है क्योंकि इसकी खेती प्रोटेक्टेड में है इसलिए राउंड द ईयर कभी भी इसकी खेती की जा सकती है. कई बार किसान कुछ जानकारी के अभाव में सामान्य खीरे की खेती करना शुरू करता है. पेड़ तो उसमें बहुत अच्छा पौधा बहुत अच्छा बनता है, लेकिन अंत में फल नहीं आता, मुख्य रूप से अपने को यह जानने की जरूरत है कि प्रोटेक्टेड जैसे कि उद्यानिकी विभाग के माध्यम से कई किसानों के यहां पॉली हाउस बनवाया गया है. कुछ किसानों ने अपने से पॉलीहाउस लगवाया है लेकिन इसका सही फायदा किसान नहीं ले पा रहा है. ऐसे किसानों के लिए ये खीरा काफी फायदेमंद हो सकता है.
हमने इसमें बीज लिया है जो सेल्फ पॉलीनेटेड कुकुंबर कहलाता है बाकी जैविक तरीके से इसकी खेती की है. वैसे तो इस फसल को गेर्किन्स बोलते हैं सेल्फ पोलिनेटेड कुकुंबर है, इसमें सामान्य रूप से देखा जाए तो मेल और फीमेल फ्लावर अलग-अलग नहीं पाए जाते हैं. इसमें हर्मो फ्रोडाइट फ्लावर ही आते हैं. यह सेल्फ पॉलिनेटेड है इसीलिए इसमें आप देख पा रहे होंगे कि पहले नोड से ही इसमें फ्रूट्स चालू हो गए हैं. ये खीरा एकदम नीचे से फलना शुरु करता है बहुत ही जबरदस्त फ्रुटिंग आएगा, निश्चित रूप से इसमें फलन भी बहुत जबरदस्त आएगा, और और हर नोड पर इसमें फ्रूट्स आपको दिखेंगे.
दमदार पैदावार: इस खीरे के उत्पादन पर नजर डालें तो 45 से 60 दिन में इसमें फलन होने लगती है और पर एकड़ में 300 क्विंटल के आसपास इसका उत्पादन होता है. 100 वर्ग मीटर में 12 से 15 क्विंटल तक खीरा निकल आता है. एक पौधे से 4 से 5 किलो तक मिलता है तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कितना ज्यादा उत्पादन होता है. ऐसे में खीरा की खेती करने वाले इन किसानों के लिए ये खीरा एक वरदान साबित हो सकता है क्योंकि कम जगह में बंपर उत्पादन देता है.