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मोदी लहर के बाद जिसने पहली बार दी थी बीजेपी को मात, इस बार दांव पर साख

रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट सातवीं बार चुनाव लड़ रहे कांग्रेस प्रत्याशी कांतिलाल भूरिया कांग्रेस के बड़े आदिवासी नेता माने जाते हैं. दो बार केंद्रीय मंत्री रहे भूरिया का मुकाबला इस बार बीजेपी के गुमान सिंह डामोर से है.

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Published : May 18, 2019, 1:01 PM IST

Updated : May 18, 2019, 5:58 PM IST

रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी कांतिलाल भूरिया

झाबुआ। सिर पर पगड़ी और बदन पर पारंपरिक परिधान, चेहरे पर सरल मुस्कान के साथ लोगों से बातचीत करते इस शख्स की पहचान बड़े आदिवासी नेता के तौर पर होती है. जिसे मध्यप्रदेश की राजनीति में कांतिलाल भूरिया के नाम से जाना जाता है. रतलाम-झाबुआ संसदीय सीट से 7वीं बार सियासी दंगल में ताल ठोक रहे भूरिया प्रदेश के दिग्गज कांग्रेसियों की जमात में शामिल हैं, जिनके राजनीतिक कुशलता का लोहा दिल्ली दरबार में भी माना जाता है.

कांतिलाल भूरिया का सियासी सफर

झाबुआ जिले के मोर डूंडिया गांव के एक साधारण परिवार में जन्मे भूरिया ने एनएसयूआई से सियासी पारी शुरु की थी. भूरिया उस दौर में युवा आदिवासी नेता के तौर पर अपनी पहचान बना रहे थे. तभी कांग्रेस ने उन्हें विधानसभा के सियासी पिच पर बैंटिग करने का मौका दिया और भूरिया ने पूरे दम के साथ पहली ही बार में सियासी बॉल को विधानसभा के अंदर पहुंचा दिया था. इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. कांतिलाल भूरिया के राजनीतिक सफर पर नजर डालें तो.

1980 में कांतिलाल पहली बार में ही विधानसभा चुनाव जीते
1980 से 1996 तक लगातार पांच बार विधायक चुने गये
दिग्विजय सिंह की सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाए गये
1996 में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़े और जीते
यूपीए-1, यूपीए-2 में केंद्रीय मंत्री का पद संभाला
2011 में मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बने
पांच बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं
सातवीं बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं

2014 के मोदी लहर में अपनी परंपरागत सीट रतलाम-झाबुआ से चुनाव हारने वाले कांतिलाल भूरिया की रणनीतिक क्षमता और कुशलता का लोहा इसी बात से माना जा सकता है कि 2016 में इस सीट पर हुए उपचुनाव में उन्होंने अपनी खोई हुई सल्तनत पर दोबारा कब्जा कर लिया. उस वक्त ये जीत कांग्रेस के लिए संजीवनी की तरह थी क्योंकि 2014 में प्रचंड बहुमत हासिल करने वाली बीजेपी पहले ही उपचुनाव में चित हो गयी थी. कांतिलाल के सियासी कुशलता से ही ऐसा संभव हो पाया था.

इस सीट को भूरिया ने कांग्रेस के मजबूत गढ़ के रुप में स्थापित कर दिया है, जबकि इस बार उनका मुकाबला बीजेपी के गुमान सिंह डामोर से है, जिनका गुमान वह हर हाल में तोड़ना चाहेंगे क्योंकि विधानसभा चुनाव में डामोर ने उनके बेटे विक्रांत की सियासी पारी पर ब्रेक लगा दिया था. भूरिया को इस बार अपनी सीट भी बचानी है और बेटे की हार का बदला भी चुकाना है.

झाबुआ। सिर पर पगड़ी और बदन पर पारंपरिक परिधान, चेहरे पर सरल मुस्कान के साथ लोगों से बातचीत करते इस शख्स की पहचान बड़े आदिवासी नेता के तौर पर होती है. जिसे मध्यप्रदेश की राजनीति में कांतिलाल भूरिया के नाम से जाना जाता है. रतलाम-झाबुआ संसदीय सीट से 7वीं बार सियासी दंगल में ताल ठोक रहे भूरिया प्रदेश के दिग्गज कांग्रेसियों की जमात में शामिल हैं, जिनके राजनीतिक कुशलता का लोहा दिल्ली दरबार में भी माना जाता है.

कांतिलाल भूरिया का सियासी सफर

झाबुआ जिले के मोर डूंडिया गांव के एक साधारण परिवार में जन्मे भूरिया ने एनएसयूआई से सियासी पारी शुरु की थी. भूरिया उस दौर में युवा आदिवासी नेता के तौर पर अपनी पहचान बना रहे थे. तभी कांग्रेस ने उन्हें विधानसभा के सियासी पिच पर बैंटिग करने का मौका दिया और भूरिया ने पूरे दम के साथ पहली ही बार में सियासी बॉल को विधानसभा के अंदर पहुंचा दिया था. इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. कांतिलाल भूरिया के राजनीतिक सफर पर नजर डालें तो.

1980 में कांतिलाल पहली बार में ही विधानसभा चुनाव जीते
1980 से 1996 तक लगातार पांच बार विधायक चुने गये
दिग्विजय सिंह की सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाए गये
1996 में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़े और जीते
यूपीए-1, यूपीए-2 में केंद्रीय मंत्री का पद संभाला
2011 में मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बने
पांच बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं
सातवीं बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं

2014 के मोदी लहर में अपनी परंपरागत सीट रतलाम-झाबुआ से चुनाव हारने वाले कांतिलाल भूरिया की रणनीतिक क्षमता और कुशलता का लोहा इसी बात से माना जा सकता है कि 2016 में इस सीट पर हुए उपचुनाव में उन्होंने अपनी खोई हुई सल्तनत पर दोबारा कब्जा कर लिया. उस वक्त ये जीत कांग्रेस के लिए संजीवनी की तरह थी क्योंकि 2014 में प्रचंड बहुमत हासिल करने वाली बीजेपी पहले ही उपचुनाव में चित हो गयी थी. कांतिलाल के सियासी कुशलता से ही ऐसा संभव हो पाया था.

इस सीट को भूरिया ने कांग्रेस के मजबूत गढ़ के रुप में स्थापित कर दिया है, जबकि इस बार उनका मुकाबला बीजेपी के गुमान सिंह डामोर से है, जिनका गुमान वह हर हाल में तोड़ना चाहेंगे क्योंकि विधानसभा चुनाव में डामोर ने उनके बेटे विक्रांत की सियासी पारी पर ब्रेक लगा दिया था. भूरिया को इस बार अपनी सीट भी बचानी है और बेटे की हार का बदला भी चुकाना है.

Intro:झाबुआ : 1 जून 1950 को जन्मे कांतिलाल भूरिया ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत 1972 में झाबुआ के शहीद चंद्रशेखर आजाद महाविद्यालय से छात्र नेता के रूप में की। कांग्रेस की छात्र इकाई एनएसयूआई नेभूरिया के छात्र राजनीति में बड़ा उलटफेर किया और वह आज देश के दिग्गज आदिवासी नेता के रूप में जाने जाते हैं । छात्र राजनीति से निकलकर उन्होंने पहला चुनाव झाबुआ जिले के थांदला विधानसभा से 1980 में लड़ा और जीतकर विधानसभा पहुंचे । 1980 से 1996 तक झाबुआ जिले की थांदला विधानसभा सीट से 5 बार विधायक रहे कांतिलाल भूरिया ।


Body: मध्य प्रदेश में अर्जुन सिंह के मुख्यमंत्री काल में कांतिलाल भूरिया संसदीय सचिव बने तो दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्री काल में कैबिनेट मिनिस्टर का दर्जा भूरिया को मिला। 1996 में भूरिया पहली बार झाबुआ संसदीय सीट से सांसद का चुनाव जीतकर दिल्ली की राजनीति में सक्रिय हुए तब से अब तक कांतिलाल भूरिया पांच बार रतलाम -झाबुआ और रतलाम संसदीय सीट से सांसद है। अपवाद स्वरूप 2014 में कांतिलाल भूरिया को पहली बार हार का सामना करना पड़ा मगर यह हार भी ज्यादा दिनों तक टिक नही पाई और एक ही साल के अंतराल में हुए उपचुनाव पर जीतकर सांसद बने ।


Conclusion:सांसद रहते हुए कांतिलाल भूरिया को यूपीए1 में 2003 में केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री का दर्जा दिया गया । इस दौरान कांतिलाल भूरिया ने ना सिर्फ कांग्रेस संगठन बल्कि मंत्रिमंडल में भी खुद को मजबूत आदिवासी नेता के रूप में स्थापित किया। यूपीए-2 में कांतिलाल भूरिया एक बार फिर से केंद्रीय जनजाति मामलों के मंत्री बनाए गए । फैक्ट विधायक -5 बार , थांदला विधानसभा से सांसद -5 बार , रतलाम झाबुआ संसदीय क्षेत्र से सांसद का चुनाव लड़े 6 बार , 2014 में पहली बार हारे 2003 यूपीए 1- केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री 2008 यूपीए2- ट्राइबल मिनिस्टर 2011 - प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष पहला चुनाव दिलीप सिंह भूरिया से हारे पिछला चुनाव दिलीप सिंह भूरिया की बेटी निर्मला भूरिया से जीते कांतिलाल भूरिया की व्यक्तिगत जानकारी पत्नी - कल्पना भूरिया पुत्र दो - संदीप भूरिया, डॉ विक्रांत भूरिया पिता - नानुराम भूरिया माता- लाडकी बाई शिक्षा- एम ए , एलएलबी पहला कॉलेज -शहीद चंद्रशेखर आजाद महाविद्यालय झाबुआ
Last Updated : May 18, 2019, 5:58 PM IST

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