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जबलपुर के वैज्ञानिकों की अनोखी खोज, बिना पेड़-पौधे काटे निकाली जा सकती है उनसे बनने वाली दवा

जबलपुर रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी विधि ढूंढ निकाली है जिससे बिना पेड़ों को काटे ही उनके अंदर पाए जाने वाले औषधीय गुणों वाले तत्वों को लैब में पैदा किया जा सकता है. यूनिवर्सिटी के डिजाइंड एंड इनोवेशन लैब के वैज्ञानिक डॉ एसएस संधू ने इन शोधों पर पेटेंट भी ले लिया है.

reserch of Rani Durgavati University Scientist
बिना पेड़ पौधे काटे निकाली जा सकती है उनसे बनने वाली दवा
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Published : Jun 4, 2023, 6:49 PM IST

बिना पेड़ पौधे काटे निकाली जा सकती है उनसे बनने वाली दवा

जबलपुर। रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के डिजाइन एंड इन्नोवेशन सेंटर के वैज्ञानिक डॉ. एसएस संधू और उनके दो छात्र डॉक्टर सुनील सिंह और डॉक्टर रविंद्र ने एक ऐसा शोध किया है कि जिससे हमारे पेड़ पौधे भी बच जाएंगे और उनके अंदर के औषधीय तत्व भी उन पेड़ पौधों को काटे बिना ही निकाले जा सकते हैं . इन वैज्ञानिकों ने अपनी इस विधि को पेटेंट भी करवा लिया है. अभी तक पेड़ पौधों से औषधीय तत्वों को निकालने के लिए उन्हें काटना पढ़ता है तब जाकर उनकी जड़ तने फूल पत्ती और फलों से औषधि मिल पाती है इसकी वजह से कई पेड़ पौधे औषधि बनाने के लिए इतने काटे गए कि वह लुप्त प्राय श्रेणी तक पहुंच गए हैं. इसलिए यह शोध महत्वपूर्ण है.

माइक्रो ऑर्गेनिजमस से मॉलिक्यूल: डॉ. एसएस संधू ने बताया कि उनके गुरु डॉक्टर रजक जो एक बायो साइंटिस्ट थे वह अक्सर कहते थे की जिस पौधे में जो औषधीय गुण पाए जाते हैं वह उस पौधे में पाए जाने वाले फंगस और बैक्टीरिया के भीतर भी पाए जाते हैं. प्रकृति में पाए जाने वाले हर जीवित जंतु और पेड़ पौधों के भीतर बहुत से दूसरे माइक्रो ऑर्गेनाइज्म भी पाए जाते हैं जिन्हें हम कवक फंगस और बैक्टीरिया के रूप में जानते हैं. इनमें कुछ माइक्रो ऑर्गेनाइज्म उस जंतु या पौधे के दुश्मन होते हैं जो उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं लेकिन इसमें कुछ सूक्ष्म जीव ऐसे भी होते हैं जो उसे जंतु या पौधे के लिए फायदेमंद होते हैं.

Unique discovery of scientists of Jabalpur
डॉ. एसएस संधु ने कराया पेटेंट

डॉ. एसएस संधु का यह सोच था कि पेड़ पौधे के अंदर पाए जाने वाले मित्र बैक्टीरिया वायरस और फंगस से पौधे में पाई जाने वाली औषधीय गुणों को निकालने की कोशिश की जाए. इसके लिए डॉक्टर एसएस संधू ने डॉ जितेंद्र और डॉक्टर संदीप के साथ शोध शुरू किया. इन वैज्ञानिकों ने ओरोक्सिलम इंडिकम नाम के एक पौधे से अपना शोध कार्य शुरू किया. इस पेड़ से एक दवा निकाली जाती है जिसका उपयोग एंटीबायोटिक दवा के रूप में किया जाता है लेकिन इसके लिए इस पौधे फलियों का उपयोग किया जाता है इन वैज्ञानिकों ने सबसे पहले पौधे की फलियों से ही दवा बनाई.

Unique discovery of scientists of Jabalpur
बिना पौधे काटे दवा बनाने की खोज

इसके बाद इन वैज्ञानिकों ने अपने विचार के अनुरूप पेड़ में पाए जाने वाले माइक्रो ऑर्गेज्म को उस पौधे से निकालकर अपनी लैब में उगाया और इस माइक्रो ऑर्गेनिकजम से भी उन्होंने दवा बनाई. जब इन दोनों दवा के रासायनिक संरचना का अध्ययन किया गया तो पता लगा कि दोनों एक सी हैं.

विधि पेटेंट: इसी शोध के परिणाम को डॉ. एसएस संधू ने अपने 2 छात्र वैज्ञानिक डॉ. संदीप और डॉक्टर जितेंद्र सिंह के साथ पेटेंट के लिए मुंबई भेजा और उन्हें ना केबल नए मॉलिक्यूल खोजने का पेटेंट मिला बल्कि इस विधि को भी उन्होंने पेटेंट करवा लिया. डॉ. एस एस संधू का कहना है कि इस तरीके से हर औषधीय पौधे के अंदर पाए जाने वाले माइक्रो ऑर्गेज्म को लैब में तैयार करके औषधि बनाई जा सकती है और इसके लिए उस पौधे की जिस हिस्से में दवा मिलती है उस हिस्से का मात्र आधे इंच का टुकड़ा भी बड़ी तादाद में दबाव बनाने के लिए पर्याप्त है.

Unique discovery of scientists of Jabalpur
खोज का पेटेंट

टिशू कल्चर पेटेंट: पेड़ों को नुकसान पहुंचाए बिना यदि लैब में किसी औषधीय पौधे के दवा वाले हिस्से को टिशू कल्चर के जरिए उगाया जाता है तो उससे भी अच्छी गुणवत्ता की वही दवा प्रयोगशाला में भी बनाई जा सकती है जो पौधा नैसर्गिक रूप से प्राकृतिक वातावरण में तैयार करता है. इस तकनीक पर भी डिजाइन एंड इन्नोवेशन लैब्स रानी दुर्गावती में शोध कार्य किया गया और इस पर भी इस लैब ने पेटेंट ले लिया है. डॉक्टर संधू का कहना है कि टैक्सास नाम का एक पेड़ दुनिया से लुप्त होने की कगार पर है क्योंकि इससे एक दवा बनाई जाती थी और इसकी वजह से उसे इतना काटा गया कि अब उसका मिलना दूभर हो गया. यही हाल भारतीय आयुर्वेद में वर्णित कई जड़ी बूटियों का भी है इनके पेड़ पौधों का अंधाधुंध दोहन किया जा रहा है और यह लुप्त होने की कगार पर पहुंच गए हैं. इस विधि के जरिए न सिर्फ इन पेड़ पौधों को बचाया जा सकेगा बल्कि इनके अंदर पाई जाने वाली दवा को प्राकृतिक तरीके से लैब में बनाया भी जा सकेगा.

बिना पेड़ पौधे काटे निकाली जा सकती है उनसे बनने वाली दवा

जबलपुर। रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के डिजाइन एंड इन्नोवेशन सेंटर के वैज्ञानिक डॉ. एसएस संधू और उनके दो छात्र डॉक्टर सुनील सिंह और डॉक्टर रविंद्र ने एक ऐसा शोध किया है कि जिससे हमारे पेड़ पौधे भी बच जाएंगे और उनके अंदर के औषधीय तत्व भी उन पेड़ पौधों को काटे बिना ही निकाले जा सकते हैं . इन वैज्ञानिकों ने अपनी इस विधि को पेटेंट भी करवा लिया है. अभी तक पेड़ पौधों से औषधीय तत्वों को निकालने के लिए उन्हें काटना पढ़ता है तब जाकर उनकी जड़ तने फूल पत्ती और फलों से औषधि मिल पाती है इसकी वजह से कई पेड़ पौधे औषधि बनाने के लिए इतने काटे गए कि वह लुप्त प्राय श्रेणी तक पहुंच गए हैं. इसलिए यह शोध महत्वपूर्ण है.

माइक्रो ऑर्गेनिजमस से मॉलिक्यूल: डॉ. एसएस संधू ने बताया कि उनके गुरु डॉक्टर रजक जो एक बायो साइंटिस्ट थे वह अक्सर कहते थे की जिस पौधे में जो औषधीय गुण पाए जाते हैं वह उस पौधे में पाए जाने वाले फंगस और बैक्टीरिया के भीतर भी पाए जाते हैं. प्रकृति में पाए जाने वाले हर जीवित जंतु और पेड़ पौधों के भीतर बहुत से दूसरे माइक्रो ऑर्गेनाइज्म भी पाए जाते हैं जिन्हें हम कवक फंगस और बैक्टीरिया के रूप में जानते हैं. इनमें कुछ माइक्रो ऑर्गेनाइज्म उस जंतु या पौधे के दुश्मन होते हैं जो उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं लेकिन इसमें कुछ सूक्ष्म जीव ऐसे भी होते हैं जो उसे जंतु या पौधे के लिए फायदेमंद होते हैं.

Unique discovery of scientists of Jabalpur
डॉ. एसएस संधु ने कराया पेटेंट

डॉ. एसएस संधु का यह सोच था कि पेड़ पौधे के अंदर पाए जाने वाले मित्र बैक्टीरिया वायरस और फंगस से पौधे में पाई जाने वाली औषधीय गुणों को निकालने की कोशिश की जाए. इसके लिए डॉक्टर एसएस संधू ने डॉ जितेंद्र और डॉक्टर संदीप के साथ शोध शुरू किया. इन वैज्ञानिकों ने ओरोक्सिलम इंडिकम नाम के एक पौधे से अपना शोध कार्य शुरू किया. इस पेड़ से एक दवा निकाली जाती है जिसका उपयोग एंटीबायोटिक दवा के रूप में किया जाता है लेकिन इसके लिए इस पौधे फलियों का उपयोग किया जाता है इन वैज्ञानिकों ने सबसे पहले पौधे की फलियों से ही दवा बनाई.

Unique discovery of scientists of Jabalpur
बिना पौधे काटे दवा बनाने की खोज

इसके बाद इन वैज्ञानिकों ने अपने विचार के अनुरूप पेड़ में पाए जाने वाले माइक्रो ऑर्गेज्म को उस पौधे से निकालकर अपनी लैब में उगाया और इस माइक्रो ऑर्गेनिकजम से भी उन्होंने दवा बनाई. जब इन दोनों दवा के रासायनिक संरचना का अध्ययन किया गया तो पता लगा कि दोनों एक सी हैं.

विधि पेटेंट: इसी शोध के परिणाम को डॉ. एसएस संधू ने अपने 2 छात्र वैज्ञानिक डॉ. संदीप और डॉक्टर जितेंद्र सिंह के साथ पेटेंट के लिए मुंबई भेजा और उन्हें ना केबल नए मॉलिक्यूल खोजने का पेटेंट मिला बल्कि इस विधि को भी उन्होंने पेटेंट करवा लिया. डॉ. एस एस संधू का कहना है कि इस तरीके से हर औषधीय पौधे के अंदर पाए जाने वाले माइक्रो ऑर्गेज्म को लैब में तैयार करके औषधि बनाई जा सकती है और इसके लिए उस पौधे की जिस हिस्से में दवा मिलती है उस हिस्से का मात्र आधे इंच का टुकड़ा भी बड़ी तादाद में दबाव बनाने के लिए पर्याप्त है.

Unique discovery of scientists of Jabalpur
खोज का पेटेंट

टिशू कल्चर पेटेंट: पेड़ों को नुकसान पहुंचाए बिना यदि लैब में किसी औषधीय पौधे के दवा वाले हिस्से को टिशू कल्चर के जरिए उगाया जाता है तो उससे भी अच्छी गुणवत्ता की वही दवा प्रयोगशाला में भी बनाई जा सकती है जो पौधा नैसर्गिक रूप से प्राकृतिक वातावरण में तैयार करता है. इस तकनीक पर भी डिजाइन एंड इन्नोवेशन लैब्स रानी दुर्गावती में शोध कार्य किया गया और इस पर भी इस लैब ने पेटेंट ले लिया है. डॉक्टर संधू का कहना है कि टैक्सास नाम का एक पेड़ दुनिया से लुप्त होने की कगार पर है क्योंकि इससे एक दवा बनाई जाती थी और इसकी वजह से उसे इतना काटा गया कि अब उसका मिलना दूभर हो गया. यही हाल भारतीय आयुर्वेद में वर्णित कई जड़ी बूटियों का भी है इनके पेड़ पौधों का अंधाधुंध दोहन किया जा रहा है और यह लुप्त होने की कगार पर पहुंच गए हैं. इस विधि के जरिए न सिर्फ इन पेड़ पौधों को बचाया जा सकेगा बल्कि इनके अंदर पाई जाने वाली दवा को प्राकृतिक तरीके से लैब में बनाया भी जा सकेगा.

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