जबलपुर। मध्य प्रदेश की पटवारी भर्ती में अन्य पिछड़ा वर्ग को सरकार की ओर से 27 प्रतिशत आरक्षण दिया गया था, लेकिन मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में सरकार की इस प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए गए हैं और सरकार से पूछा गया है कि उन्होंने 14 प्रतिशत की बजाय 27 प्रतिशत आरक्षण किस आधार पर दिया. सोमवार को जबलपुर हाईकोर्ट में हुई सुनवाई में सरकार इसका जवाब नहीं दे पाई और सरकार ने जवाब देने के लिए 11 अगस्त तक का समय मांगा है.
ओबीसी के 27 प्रतिशत आरक्षण को चुनौतीः पटवारी भर्ती परीक्षा में अन्य पिछड़ा वर्ग के अभ्यर्थियों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण दिया गया था, लेकिन जबलपुर के एक अभ्यर्थी ने अन्य पिछड़ा वर्ग के 27 प्रतिशत आरक्षण को चुनौती दी है और उनका कहना है कि अन्य पिछड़ा वर्ग को 14 प्रतिशत आरक्षण ही दिया जाना चाहिए. इस मामले में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई थी. इसकी सुनवाई शुक्रवार 4 अगस्त को हुई थी. सोमवार को फिर यह मामला जबलपुर हाईकोर्ट के जस्टिस शील नागू और जस्टिस अमरनाथ केसरवानी की कोर्ट में लगा हुआ था. दोनों ही जजों ने शुक्रवार को ही सरकार से इस मामले में अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए आदेश दिया था. इस मामले की सुनवाई होनी थी, लेकिन सरकार का जवाब नहीं आ पाया. सरकार के वकीलों ने 11 अगस्त तक का समय मांगा है.
12 लाख उम्मीदवारः पटवारी भर्ती परीक्षा मध्यप्रदेश की अब तक की सबसे बड़ी परीक्षा की. इसमें लगभग 12,00,000 उम्मीदवारों ने परीक्षा दी थी. सरकार ने 9,073 पदों के लिए भर्ती निकाली थी. महीनों तक पूरे प्रदेश के कई शहरों में चली परीक्षा मध्यप्रदेश कर्मचारी चयन आयोग ने ली थी .
सवालों के घेरे में भाजपा विधायक का कॉलेजः इसके पहले की प्रक्रिया पूरी हो पाती इसमें कुछ व्यवधान आ गए, जैसे ही पटवारी परीक्षा की मेरिट लिस्ट जारी की गई, तो इसमें ग्वालियर के एनआरआई कॉलेज में एक साथ 7 लोग मेरिट में आ गए. यह कॉलेज भारतीय जनता पार्टी के विधायक संजीव कुशवाहा का है. इसके बाद जिन उम्मीदवारों ने मेरिट सूची में नाम दर्ज करवाया, उनसे मिलने के लिए मीडिया उनके घरों तक पहुंच गई और उनसे कुछ सामान्य सवाल जवाब किए, लेकिन मेरिट सूची में आए उम्मीदवार बड़े सहज और सरल सवालों का जवाब नहीं बन पा रहे थे. इसकी वजह से इनके मेरिट में आने पर सवाल खड़ा हुआ. हालांकि सरकार ने अपनी ओर से डैमेज कंट्रोल के लिए यह कहा कि जो लोग सिलेक्ट हुए हैं वे अलग-अलग समय पर परीक्षा में बैठे थे और कोई गड़बड़ी नहीं हुई, लेकिन पटवारी परीक्षा के मेरिट में आने वाले उम्मीदवारों के वीडियो सोशल मीडिया में ज्यादा वायरल हुए तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भर्ती प्रक्रिया को रोक कर इस पर एक जांच बैठा दी. पटवारी भर्ती परीक्षा में हुए भ्रष्टाचार की जांच हाईकोर्ट के पूर्व जज राजेंद्र कुमार वर्मा कर रहे हैं, जो अपनी जांच रिपोर्ट 31 अगस्त तक दे देंगे.
भर्ती प्रक्रिया रोकने को चुनौतीः पटवारी परीक्षा में बैठे जबलपुर के ही एक अभ्यर्थी ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी, जिसमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा भर्ती प्रक्रिया में रोक लगाने के आदेश को चुनौती दी गई थी. इसकी ओर से कोर्ट में पैरवी कर रहे वकील का कहना था कि मुख्यमंत्री इस भर्ती प्रक्रिया को नहीं रोक सकते. कोर्ट ने इस मामले में भी सरकार से जवाब मांगा था लेकिन सरकार का जवाब अब तक नहीं आया है. इसके बाद पटवारी भर्ती में आरक्षण के मुद्दे पर चुनौती दी गई है, जिसकी सुनवाई चल रही है. सरकार अभी तक यह स्पष्ट नहीं कर पाई है कि आखिर उन्होंने 27 प्रतिशत आरक्षण किस नियम के तहत दिया है. क्योंकि अभी भी अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट से हरी झंडी नहीं मिली है. हालांकि, मध्यप्रदेश सरकार ने इसे अपनी कैबिनेट से पास कर दिया है. इस मुद्दे पर कुछ मामलों की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में भी चल रही है. इसलिए फिलहाल जब तक सुप्रीम कोर्ट कोई फैसला नहीं देता, तब तक सरकार भी जवाब देने में लेट लतीफी करती रहेगी.