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Maternity Leave हर प्रसूता व उसके नवजात का मौलिक अधिकार, हर हाल में मिले लाभ: हाई कोर्ट

मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने (Madhya Pradesh High Court) मातृत्व अवकाश प्रसूता व उसके नवजात का मौलिक अधिकार (Maternity Leave Fundamental Right) करार दिया है, किसी भी हाल में इससे वंचित नहीं किया जा सकता है. इसके लिए किसी नियम की भी आवश्यकता नहीं है.

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Published : Aug 13, 2021, 12:23 PM IST

जबलपुर। मध्यप्रदेश हाई कोर्ट (Madhya Pradesh High Court) के जस्टिस विशाल धगत की एकलपीठ ने महिला कर्मचारी को मातृत्व अवकाश (Maternity Leave) प्रदान करने का आदेश दिया है, उमरिया पीएचई विभाग में जिला परामर्शदाता (संविदा) पर कार्यरत सुषमा द्विवेदी ने मातृत्व अवकाश का लाभ नहीं दिये जाने को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. सुषमा की याचिका स्वीकार करते हुए मातृत्व अवकाश प्रदान करने का कोर्ट ने आदेश पारित किया है. याचिकाकर्ता ने संविदा सेवा के दौरान मातृत्व अवकाश प्रदान किए जाने के लिए आवेदन दिया था, जिसे कार्यपालन यंत्री उमरिया ने ये कहते हुए निरस्त कर दिया था कि संविदा कर्मचारी के संदर्भ में कोई विभागीय सर्कुलर मातृत्व अवकाश प्रदान करने के लिए नहीं मिला है. इस आदेश के विरुद्ध सुषमा ने मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी.

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याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता आशीष त्रिवेदी ने तर्क दिया कि मातृत्व लाभ अधिनियम 1961, जोकि प्रसव के पहले और बाद में कुछ अवधि के लिए कुछ प्रतिष्ठानों में महिलाओं की नियुक्ति को विनियमित करता है और मातृत्व एवं अन्य लाभों की व्यवस्था करता है. इसका उद्देश्य महिलाओं और उनके बच्चों का जब वह कार्यरत रहती हैं, पूर्ण रूप से स्वास्थ्य एवं रखरखाव की व्यवस्था करने और मातृत्व की प्रतिष्ठा (Maternity Leave) की रक्षा करता है. यह अधिनियम खदानों, फैक्ट्रियों, सर्कस उद्योग, बागान, दुकानों और प्रतिष्ठानों जोकि दस या अधिक व्यक्तियों को कार्य पर लगाते हैं, उनके लिए भी प्रयोज्य है. मातृत्व अवकाश प्रदान करने के लिए अलग से किसी अन्य नियम की आवश्यकता नहीं है.

अधिवक्ता ने कहा कि मातृत्व अवकाश (Maternity Leave) प्रदान किए जाने का विषय संविधान के नीति निर्देशक तत्वों के रूप में अनुच्छेद 42 में शामिल किया गया है, सर्वोच्च न्यायालय ने इसे प्रत्येक प्रसूता एवं उसके बच्चे के लिए अनुच्छेद 21 के अंतर्गत मूलभूत अधिकार माना है. वहीं शासन की ओर से मौजूद शासकीय अधिवक्ता ने विरोध करते हुए तर्क दिया कि मातृत्व अवकाश का लाभ एवं मातृत्व लाभ अधिनियम संविदा कर्मचारियों के संबंध में लागू नहीं होता है.

न्यायालय ने उभय पक्षों की सुनवाई के बाद कहा कि मातृत्व अवकाश (Maternity Leave Fundamental Right) संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत मूल अधिकार है और प्रत्येक न्यायालय इसे प्रदान करने हेतु बाध्य है. इसके अलावा न्यायालय ने यह भी प्रतिपादित किया की मातृत्व अवकाश रोजगार और नियोक्ता की प्रकृति के साथ नहीं बदलता है, संविदा एवं अन्य प्रकार से कार्यरत प्रत्येक महिला प्रसव काल में इस लाभ को प्राप्त करने की अधिकारी है. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता असीम त्रिवेदी, अपूर्व त्रिवेदी, आनंद शुक्ला ने भी पैरवी की.

जबलपुर। मध्यप्रदेश हाई कोर्ट (Madhya Pradesh High Court) के जस्टिस विशाल धगत की एकलपीठ ने महिला कर्मचारी को मातृत्व अवकाश (Maternity Leave) प्रदान करने का आदेश दिया है, उमरिया पीएचई विभाग में जिला परामर्शदाता (संविदा) पर कार्यरत सुषमा द्विवेदी ने मातृत्व अवकाश का लाभ नहीं दिये जाने को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. सुषमा की याचिका स्वीकार करते हुए मातृत्व अवकाश प्रदान करने का कोर्ट ने आदेश पारित किया है. याचिकाकर्ता ने संविदा सेवा के दौरान मातृत्व अवकाश प्रदान किए जाने के लिए आवेदन दिया था, जिसे कार्यपालन यंत्री उमरिया ने ये कहते हुए निरस्त कर दिया था कि संविदा कर्मचारी के संदर्भ में कोई विभागीय सर्कुलर मातृत्व अवकाश प्रदान करने के लिए नहीं मिला है. इस आदेश के विरुद्ध सुषमा ने मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी.

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याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता आशीष त्रिवेदी ने तर्क दिया कि मातृत्व लाभ अधिनियम 1961, जोकि प्रसव के पहले और बाद में कुछ अवधि के लिए कुछ प्रतिष्ठानों में महिलाओं की नियुक्ति को विनियमित करता है और मातृत्व एवं अन्य लाभों की व्यवस्था करता है. इसका उद्देश्य महिलाओं और उनके बच्चों का जब वह कार्यरत रहती हैं, पूर्ण रूप से स्वास्थ्य एवं रखरखाव की व्यवस्था करने और मातृत्व की प्रतिष्ठा (Maternity Leave) की रक्षा करता है. यह अधिनियम खदानों, फैक्ट्रियों, सर्कस उद्योग, बागान, दुकानों और प्रतिष्ठानों जोकि दस या अधिक व्यक्तियों को कार्य पर लगाते हैं, उनके लिए भी प्रयोज्य है. मातृत्व अवकाश प्रदान करने के लिए अलग से किसी अन्य नियम की आवश्यकता नहीं है.

अधिवक्ता ने कहा कि मातृत्व अवकाश (Maternity Leave) प्रदान किए जाने का विषय संविधान के नीति निर्देशक तत्वों के रूप में अनुच्छेद 42 में शामिल किया गया है, सर्वोच्च न्यायालय ने इसे प्रत्येक प्रसूता एवं उसके बच्चे के लिए अनुच्छेद 21 के अंतर्गत मूलभूत अधिकार माना है. वहीं शासन की ओर से मौजूद शासकीय अधिवक्ता ने विरोध करते हुए तर्क दिया कि मातृत्व अवकाश का लाभ एवं मातृत्व लाभ अधिनियम संविदा कर्मचारियों के संबंध में लागू नहीं होता है.

न्यायालय ने उभय पक्षों की सुनवाई के बाद कहा कि मातृत्व अवकाश (Maternity Leave Fundamental Right) संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत मूल अधिकार है और प्रत्येक न्यायालय इसे प्रदान करने हेतु बाध्य है. इसके अलावा न्यायालय ने यह भी प्रतिपादित किया की मातृत्व अवकाश रोजगार और नियोक्ता की प्रकृति के साथ नहीं बदलता है, संविदा एवं अन्य प्रकार से कार्यरत प्रत्येक महिला प्रसव काल में इस लाभ को प्राप्त करने की अधिकारी है. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता असीम त्रिवेदी, अपूर्व त्रिवेदी, आनंद शुक्ला ने भी पैरवी की.

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