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वुशु में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी नाम कमा रहे जबलपुर के खिलाड़ी - संस्कारधानी जबलपुर

वुशु खेल में जबलपुर के 25 से ज्यादा खिलाड़ियों को प्रदेश के सर्वोच्च खेल अलंकरण पुरस्कार से नवाजा जा चुका है. इस वर्ष भी जबलपुर के वुशु खिलाड़ी अर्पित खरे को एकलव्य पुरस्कार दिया जा रहा है. जिस पर उनके कोच मनोज गुप्ता ने खुशी जताई है.

jabalpur wushu coaching  center
जबलपुर वुशु कोचिंग सेंटर
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Published : Sep 16, 2021, 1:15 PM IST

जबलपुर। मध्यप्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर (Sanskardhani Jabalpur) में बीते 25 सालों से खेल की प्रतिभा निकल रही हैं. जिन्हें तराशने का काम वुशु के अंतर्राष्ट्रीय कोच (Wushu International Coach) मनोज गुप्ता कर रहे हैं. वुशु खेल में जबलपुर के 25 से ज्यादा खिलाड़ियों को प्रदेश के सर्वोच्च खेल अलंकरण पुरस्कार से नवाजा जा चुका है. इस वर्ष भी जबलपुर के वुशु खिलाड़ी (Wushu Player Mp) अर्पित खरे को एकलव्य पुरस्कार (Mp Eklavya Award) दिया जा रहा है. जिस पर उनके कोच मनोज गुप्ता ने खुशी जताई है.

एमपी के वुशु खिलाड़ियों ने विश्वभर में किया भारत का नाम रोशन.

कैसे शुरू हुआ वुशु
वुशु एक पारंपरिक चीनी मार्शल आर्ट (China Marshal Art) खेल है. इस खेल को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है- ताआलू और संसो. ताआलू पूर्व निर्धारित एक्रोबैटिक आंदोलनों से संबंधित है, जहां प्रतियोगी काल्पनिक हमलावरों के खिलाफ उनकी तकनीकियों पर महारत हासिल की है. दूसरी तरफ संसो एक पूर्ण संपर्क खेल है. प्राचीन प्रथाओं और आधुनिक खेल सिद्धांतों का संयोजन है जो कि कुश्ती-किक और मुक्केबाजी जैसा दिखता है. वुशु चीन का लोकप्रिय खेल है. भारत के वुशु एसोसिएशन (India Wushu Association) ने इसे एक ऐसे गेम के रूप में देखा है, जो लड़ाई की गतिविधियों के साथ आंतरिक और बाहरी दोनों अभ्यासों पर ध्यान देता है. भारत में यह खेल पहली बार 1989 में आया था. इस खेल को राष्ट्रीय खेलों में पदक कार्यक्रमों के रूप में खेला जाता है.

मध्यप्रदेश में भी लोकप्रिय खेल हो रहा वुशु (Wushu Famous in Mp)
विश्व और भारत के साथ-साथ वुशु धीरे-धीरे मध्य प्रदेश में भी लोकप्रिय हो रहा है. आलम यह है कि मध्य प्रदेश के सबसे सर्वोच्च पुरस्कार में वुशु ने अपनी एक अलग ही जगह बना ली है. संस्कारधानी जबलपुर से भी विश्व स्तर पर कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी (Wushu International Player) निकल कर सामने आए हैं. जबलपुर के 25 से ज्यादा ऐसे खिलाड़ी हैं, जिन्होंने वुशु खेल में एकलव्य-विक्रम और द्रोणाचार्य अवार्ड (Dronacharya Award) जीते हैं.

वुशु खिलाड़ियों का रहता है दबदबा
राज्य सरकार के सर्वोच्च पुरस्कार में हर वर्ष वुशु के खिलाड़ी जरूर होता है. 2006 के बाद से लगातार वुशु खिलाड़ी मध्य प्रदेश का सर्वोच्च पुरस्कार जीत रहे हैं. 2006 में पहली बार मोनिका नामदेव ने एकलव्य पुरस्कार जीता था. उसके बाद से हर साल कोई न कोई खिलाड़ी इस सर्वोच्च पुरस्कार को जीतने में कामयाब हो रहा है. 2020 में स्पर्श खरे (Wushu Player Sharsh Khare) ने एकलव्य अवार्ड जीता, 2019 में अंशिता पांडे को यह अवार्ड मिला था.

एकाग्रता और तेजी है इस खेल की सफलता
2019 में एकलव्य पुरस्कार जीतने वाली अंशिता पांडे बताती हैं कि इस खेल में अगर सफल होना है तो खिलाड़ियों में एकाग्रता और तेजी होनी चाहिए. अंशिता पांडे (Award Winner Anshita Pandey) बताती हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार और पदक जीतने के लिए वह सुबह-शाम 4-4 घंटे मेहनत करतीं थीं और मेहनत रंग भी लाई. राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना जौहर दिखाते हुए मैंने मध्य प्रदेश का नाम रोशन किया है.

स्पर्श खरे भी किसी से कम नहीं
कक्षा 11वीं में पढ़ने वाली स्पर्श खरे ने वुशु खेल में रुचि दिखाते हुए इसे सीखने का फैसला किया था. स्पर्श खरे ने महज आठ सालों के भीतर ही न सिर्फ राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपना जौहर दिखाया. इस वर्ष स्पर्श खरे को 2020 एकलव्य पुरस्कार से नवाजा जा रहा है. स्पर्श के पास अभी तक 20 राष्ट्रीय और तीन अंतरराष्ट्रीय खिताब हैं.

रंग लाई कोच मनोज गुप्ता की मेहनत
वुशु खेल में महारत और अंतरराष्ट्रीय कोच मनोज गुप्ता ने अभी तक जबलपुर से ही करीब 25 ऐसे अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों को प्रशिक्षित किया है, जिन्होंने भारत सहित विश्व में मध्य प्रदेश का नाम रोशन किया है. वुशु के अंतरराष्ट्रीय कोच मनोज गुप्ता (Wushu International Coach Manoj Gupta) बताते हैं कि उनके खिलाड़ी सिर्फ खेल ही नहीं बल्कि इंडिया गोट टैलेंट (India Got Talent) में भी अपना हुनर दिखा चुके हैं. इसके अलावा उनके छात्रों के कई कारनामे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड (Guinness Book of World Record) और लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड (Limca Book of World Record) में भी दर्ज हैं.

वुशु में अभी तक इन्हें मिला अवार्ड (MP Award Winner Player List)

अवॉर्डवर्षनाम
एकलव्य2006 मोनिका नामदेव
एकलव्य 2007 अंजलि कोष्टा
विक्रम2007 नीलम मिश्रा
एकलव्य 2008 अंजूल नामदेव
विक्रम 2008 मोनिका नामदेव
विक्रम 2009 शिल्पा कैथल
एकलव्य2009 अंकिता रैकवार
एकलव्य2010श्रद्धा यादव
विश्वामित्र 2010 सारिका मनोज नामदेव गुप्ता
एकलव्य2011 दिव्यांश मनोज गुप्ता
विक्रम2011 अंजलि कोष्टा
विक्रम 2012 अंजू नामदेव
एकलव्य 2012 शुभम राज पटेल
एकलव्य 2013 भूरक्षा दुबे (अशोकनगर)
विक्रम 2013 रोहन सिंह ठाकुर
एकलव्य 2014 साक्षी जाटव
विश्वामित्र 2014 बृजेश घुरन्ते (अशोकनगर)
एकलव्य 2015 मनीष बारस्कर (भोपाल)
विक्रम 2015 अंकिता रैकवार
विक्रम 2016 पूर्वी सोनी
एकलव्य 2016 नेहा राजपूत (अशोकनगर)
एकलव्य 2017 प्रियंक जैन (अशोकनगर)
विक्रम 2017 स्वेच्छा जाटव
एकलव्य 2018 नम्रता बत्रा (इंदौर)
एकलव्य2018-2019 अंकिता पांडे
एकलव्य 2020 स्पर्श खरे

मेडल की तीरंदाज: जिसने कम उम्र में ही हासिल किया बड़ा मुकाम

ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ रहा चाइनीज खेल वुशु का क्रेज

वुशु एक चाइनीज खेल था. आज यह खेल सिर्फ चाइना-भारत (Indo-china relation) ही नहीं पूरे विश्व मे अपनी ख्याति जमा चुका है. खासतौर पर भारत के मध्य प्रदेश से इस खेल में लगातार खिलाड़ी निकलकर सामने आ रहे हैं. यह प्रदेश के लिए एक गौरव की बात है.

जबलपुर। मध्यप्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर (Sanskardhani Jabalpur) में बीते 25 सालों से खेल की प्रतिभा निकल रही हैं. जिन्हें तराशने का काम वुशु के अंतर्राष्ट्रीय कोच (Wushu International Coach) मनोज गुप्ता कर रहे हैं. वुशु खेल में जबलपुर के 25 से ज्यादा खिलाड़ियों को प्रदेश के सर्वोच्च खेल अलंकरण पुरस्कार से नवाजा जा चुका है. इस वर्ष भी जबलपुर के वुशु खिलाड़ी (Wushu Player Mp) अर्पित खरे को एकलव्य पुरस्कार (Mp Eklavya Award) दिया जा रहा है. जिस पर उनके कोच मनोज गुप्ता ने खुशी जताई है.

एमपी के वुशु खिलाड़ियों ने विश्वभर में किया भारत का नाम रोशन.

कैसे शुरू हुआ वुशु
वुशु एक पारंपरिक चीनी मार्शल आर्ट (China Marshal Art) खेल है. इस खेल को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है- ताआलू और संसो. ताआलू पूर्व निर्धारित एक्रोबैटिक आंदोलनों से संबंधित है, जहां प्रतियोगी काल्पनिक हमलावरों के खिलाफ उनकी तकनीकियों पर महारत हासिल की है. दूसरी तरफ संसो एक पूर्ण संपर्क खेल है. प्राचीन प्रथाओं और आधुनिक खेल सिद्धांतों का संयोजन है जो कि कुश्ती-किक और मुक्केबाजी जैसा दिखता है. वुशु चीन का लोकप्रिय खेल है. भारत के वुशु एसोसिएशन (India Wushu Association) ने इसे एक ऐसे गेम के रूप में देखा है, जो लड़ाई की गतिविधियों के साथ आंतरिक और बाहरी दोनों अभ्यासों पर ध्यान देता है. भारत में यह खेल पहली बार 1989 में आया था. इस खेल को राष्ट्रीय खेलों में पदक कार्यक्रमों के रूप में खेला जाता है.

मध्यप्रदेश में भी लोकप्रिय खेल हो रहा वुशु (Wushu Famous in Mp)
विश्व और भारत के साथ-साथ वुशु धीरे-धीरे मध्य प्रदेश में भी लोकप्रिय हो रहा है. आलम यह है कि मध्य प्रदेश के सबसे सर्वोच्च पुरस्कार में वुशु ने अपनी एक अलग ही जगह बना ली है. संस्कारधानी जबलपुर से भी विश्व स्तर पर कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी (Wushu International Player) निकल कर सामने आए हैं. जबलपुर के 25 से ज्यादा ऐसे खिलाड़ी हैं, जिन्होंने वुशु खेल में एकलव्य-विक्रम और द्रोणाचार्य अवार्ड (Dronacharya Award) जीते हैं.

वुशु खिलाड़ियों का रहता है दबदबा
राज्य सरकार के सर्वोच्च पुरस्कार में हर वर्ष वुशु के खिलाड़ी जरूर होता है. 2006 के बाद से लगातार वुशु खिलाड़ी मध्य प्रदेश का सर्वोच्च पुरस्कार जीत रहे हैं. 2006 में पहली बार मोनिका नामदेव ने एकलव्य पुरस्कार जीता था. उसके बाद से हर साल कोई न कोई खिलाड़ी इस सर्वोच्च पुरस्कार को जीतने में कामयाब हो रहा है. 2020 में स्पर्श खरे (Wushu Player Sharsh Khare) ने एकलव्य अवार्ड जीता, 2019 में अंशिता पांडे को यह अवार्ड मिला था.

एकाग्रता और तेजी है इस खेल की सफलता
2019 में एकलव्य पुरस्कार जीतने वाली अंशिता पांडे बताती हैं कि इस खेल में अगर सफल होना है तो खिलाड़ियों में एकाग्रता और तेजी होनी चाहिए. अंशिता पांडे (Award Winner Anshita Pandey) बताती हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार और पदक जीतने के लिए वह सुबह-शाम 4-4 घंटे मेहनत करतीं थीं और मेहनत रंग भी लाई. राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना जौहर दिखाते हुए मैंने मध्य प्रदेश का नाम रोशन किया है.

स्पर्श खरे भी किसी से कम नहीं
कक्षा 11वीं में पढ़ने वाली स्पर्श खरे ने वुशु खेल में रुचि दिखाते हुए इसे सीखने का फैसला किया था. स्पर्श खरे ने महज आठ सालों के भीतर ही न सिर्फ राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपना जौहर दिखाया. इस वर्ष स्पर्श खरे को 2020 एकलव्य पुरस्कार से नवाजा जा रहा है. स्पर्श के पास अभी तक 20 राष्ट्रीय और तीन अंतरराष्ट्रीय खिताब हैं.

रंग लाई कोच मनोज गुप्ता की मेहनत
वुशु खेल में महारत और अंतरराष्ट्रीय कोच मनोज गुप्ता ने अभी तक जबलपुर से ही करीब 25 ऐसे अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों को प्रशिक्षित किया है, जिन्होंने भारत सहित विश्व में मध्य प्रदेश का नाम रोशन किया है. वुशु के अंतरराष्ट्रीय कोच मनोज गुप्ता (Wushu International Coach Manoj Gupta) बताते हैं कि उनके खिलाड़ी सिर्फ खेल ही नहीं बल्कि इंडिया गोट टैलेंट (India Got Talent) में भी अपना हुनर दिखा चुके हैं. इसके अलावा उनके छात्रों के कई कारनामे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड (Guinness Book of World Record) और लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड (Limca Book of World Record) में भी दर्ज हैं.

वुशु में अभी तक इन्हें मिला अवार्ड (MP Award Winner Player List)

अवॉर्डवर्षनाम
एकलव्य2006 मोनिका नामदेव
एकलव्य 2007 अंजलि कोष्टा
विक्रम2007 नीलम मिश्रा
एकलव्य 2008 अंजूल नामदेव
विक्रम 2008 मोनिका नामदेव
विक्रम 2009 शिल्पा कैथल
एकलव्य2009 अंकिता रैकवार
एकलव्य2010श्रद्धा यादव
विश्वामित्र 2010 सारिका मनोज नामदेव गुप्ता
एकलव्य2011 दिव्यांश मनोज गुप्ता
विक्रम2011 अंजलि कोष्टा
विक्रम 2012 अंजू नामदेव
एकलव्य 2012 शुभम राज पटेल
एकलव्य 2013 भूरक्षा दुबे (अशोकनगर)
विक्रम 2013 रोहन सिंह ठाकुर
एकलव्य 2014 साक्षी जाटव
विश्वामित्र 2014 बृजेश घुरन्ते (अशोकनगर)
एकलव्य 2015 मनीष बारस्कर (भोपाल)
विक्रम 2015 अंकिता रैकवार
विक्रम 2016 पूर्वी सोनी
एकलव्य 2016 नेहा राजपूत (अशोकनगर)
एकलव्य 2017 प्रियंक जैन (अशोकनगर)
विक्रम 2017 स्वेच्छा जाटव
एकलव्य 2018 नम्रता बत्रा (इंदौर)
एकलव्य2018-2019 अंकिता पांडे
एकलव्य 2020 स्पर्श खरे

मेडल की तीरंदाज: जिसने कम उम्र में ही हासिल किया बड़ा मुकाम

ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ रहा चाइनीज खेल वुशु का क्रेज

वुशु एक चाइनीज खेल था. आज यह खेल सिर्फ चाइना-भारत (Indo-china relation) ही नहीं पूरे विश्व मे अपनी ख्याति जमा चुका है. खासतौर पर भारत के मध्य प्रदेश से इस खेल में लगातार खिलाड़ी निकलकर सामने आ रहे हैं. यह प्रदेश के लिए एक गौरव की बात है.

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