जबलपुर। इंदौर में मंदिर में छुपी एक बावड़ी की छत गिरने पर हुए भीषण हादसे में 35 लोगों की मौत हो गई थी. इस हादसे के बाद सरकार ने प्रदेश की सभी बावड़ी और कुओं के सर्वे और सफाई का आदेश दिए. बावड़ी-कुओं के ऊपर या आसपास निर्माण को चिह्नित कर उन्हें सुरक्षित करने के आदेश के बाद पूरे प्रदेश में मशक्कत जारी है. इसी के तहत जबलपुर में भी बावड़ियों की साफ सफाई शुरू की गई. इस दौरान जबलपुर की सर्वोदय बस्ती में 300 साल पुरानी बावड़ी खोजी गई. इसे खोजने की बाद सफाई की गई. लेकिन ये फिर अनदेखी का शिकार होने लगी है.
मलबा हटाया तो दिखी बावड़ी : ये बावड़ी पूरी तरह से टूट-फूट चुकी है. जब इसके ऊपर का मलबा हटाया गया तो भीतर बेहद खूबसूरत निर्माण नजर आया. लंबे समय से यह निर्माण मिट्टी और मलबे में दबा हुआ था. इसलिए यह जस का तस निकल कर सामने आया. जबलपुर में भरपूर भूजल की उपलब्धता रही है, लेकिन इसके बाद भी यह बावड़ी लगभग 50 फीट गहरी है और इसमें नीचे उतरने के लिए सीढ़ियां हैं. दोनों ओर कपड़े बदलने के लिए कमरे बने हुए हैं. इसको देखकर लगता है कि किसी जमाने में यहां खूब हलचल रही होगी और आसपास के लोग इस बावड़ी का इस्तेमाल रोजमर्रा के काम में करते रहे होंगे.
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सफाई की लेकिन फिर अनदेखी : लेकिन दुर्भाग्य यह है कि बावड़ी के साफ होने के बाद भी इस ऐतिहासिक धरोहर को संवारा नहीं गया. आसपास के लोगों ने दोबारा इसमें से पूजा-पाठ और टोटके के सामान फेंकना शुरू कर दिया है. इसके साथ ही इसके नीचे बने कमरे अब शराबियों का अड्डा बन गए हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि बावड़ी को बचाना है तो उसे चारों तरफ से जाली लगाकर रखना होगा. बता दें कि जबलपुर में ऐसी तकरीबन 50 से ज्यादा बावड़ियां हैं लेकिन इनमें से एक दर्जन बावड़ियां फिलहाल ठीक हालत में हैं. बाकी लोगों ने मिट्टी से पाटकर इनके ऊपर घर बना लिए हैं या इन्हें पूरी तरह से तोड़ दिया गया है. लेकिन अभी भी जो बावड़ियां ठीक-ठाक हैं उन्हें बचाकर रखना समाज की जिम्मेदारी है, क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि जिन का इतिहास समृद्ध रहा है उनका वर्तमान खुशहाल और भविष्य रोशन होता है.