इंदौर। कोरोना महामारी के चलते जिंदगी बचाने की जद्दोजहद में जुटे हजारों मरीज अब इलाज के नाम पर निजी अस्पतालों में हो रही लूट की मार झेल रहे हैं. मध्य प्रदेश के कोरोना हॉटस्पॉट इंदौर में कई नामचीन अस्पताल मरीजों को ठगने के मामले में एक्सपोज हो रहे हैं.
गोकुलदास अस्पताल को सील किए जाने के बाद यहां फिर एप्पल हॉस्पिटल में मरीजों से लाखों रुपए वसूलने का मामला सामने आया है. इधर जिला प्रशासन ने स्पष्ट कर दिया है कि ओवर बिलिंग के तमाम मामलों में संबंधित अस्पतालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी.
आरोप है कि इंदौर के गोकुलदास अस्पताल और एप्पल हॉस्पिटल जैसे निजी और कारपोरेट अस्पताल इन दिनों कोरोना मरीजों के इलाज के नाम पर ओवर बिलिंग में जुटे हैं. यहां इलाज के नाम पर मरीज को भर्ती किया जाता है, गंभीर दशा कर तरह-तरह की वसूली शुरू हो जाती है. इन हालातों में मरीजों के मजबूर परिजन मरीज की जान बचाने के लिए अस्पताल प्रशासन के आर्थिक शोषण का शिकार होते रहते हैं.
बताया जा रहा है कि गोकुलदास अस्पताल के बाद एप्पल हॉस्पिटल के खिलाफ पीड़ित मरीजों के परिजनों की शिकायत के आधार पर कर्रवाई हो सकती है, स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन ने कार्रवाई के लिए कमर कस ली है.
ऐसे अस्पतालों को सील किए जाने के बाद उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किए जा रहे हैं. मरीजों की मजबूरी और परेशानियों के चलते राजनीतिक स्तर पर भी ये मामला गर्मा रहा है. शहर के एप्पल हॉस्पिटल में यूनिवर्सल प्रोडक्शन पीपीई किट और डॉक्टरों की विजिट के नाम पर हजारों रुपए की ओवर बिलिंग का मामला उजागर होते ही कांग्रेस ने इस मामले में जिला प्रशासन की कार्रवाई पर सवालिया निशान खड़े किए हैं.
इसके अलावा मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस इस स्थिति को सरकार की लापरवाही मानकर विरोध पर उतारू है. हालांकि अब जिला प्रशासन ने स्पष्ट कर दिया है कि ओवर बिलिंग की शिकायत मिलते ही संबंधित अस्पताल के खिलाफ जांच के बाद कठोर कार्रवाई की जाएगी.
ऐसे होती है ओवर बिलिंग और वसूली-
निजी अस्पतालों में कोरोना मरीजों को लंबे समय तक भर्ती रखा जाता है. हाल ही में जो शिकायत जिला प्रशासन को मिली उसके अनुसार एप्पल हॉस्पिटल में एक मरीज को 22 दिन तक भर्ती रखे जाने के बाद उसके परिजनों को 6 लाख रुपए का बिल थमा दिया गया. जिसमें 1 लाख रुपए की दवाइयां अलग से मंगवाई गई थीं. इतना ही नहीं पीपीई किट, आइसोलेशन चार्ज और यूनिवर्सल प्रोटेक्शन के नाम पर प्रतिदिन 9000 रुपए के हिसाब से राशि वसूली जा रही थी.
मेडिक्लेम और हेल्थ इंश्योरेंस स्वीकार नहीं-
इंदौर में मार्च, अप्रैल और मई के महीनों में जब संक्रमण तेजी से फैला तो जिन मरीजों के पास अपनी मेडिक्लेम पॉलिसी हेल्थ इंश्योरेंस के प्रमाण पत्र थे, उन्हें भी अस्पतालों द्वारा की जाने वाली वसूली की जिद के आगे झुकना पड़ा. ऐसे में मरीजों के परिजनों ने अपने मरीज की जान बचाने और अस्पताल में एडमिट कराने की मजबूरी के चलते नकद रूप में अपना इलाज कराना पड़ा. हालांकि बाद में इस मामले ने तूल पकड़ा तो इंदौर जिला प्रशासन ने हस्तक्षेप कर कोरोना के इलाज में मेडिकल पॉलिसी और मेडिक्लेम से भी इलाज को मंजूरी दी, लेकिन अधिकांश अस्पताल ऐसे थे, जिन्होंने मेडिक्लेम होने के बावजूद भी मरीजों से भारी भरकम वसूली की.