इंदौर। कोरोना महामारी के भारत में दस्तक देने के बाद से ही अधिकांश लोगों ने संक्रमण के डर के कारण बाहर से खाना मंगाना बंद कर दिया था. जिसके बाद देश में होटल-रेस्टोरेंट कर्मचारियों को बेरोजगारी से जूजना पड़ा था. संक्रमण के इस दौर में घरेलू कामकाजी महिलाएं (मेड) जो दूसरों के घरों में जाकर काम करती थी उन पर भी कोरोना काल में रोजगार का गंभीर संकट पैदा हुआ है. लिहाजा एक साल से अधिक समय से काम न मिलने के कारण इन महिलाओं की हालत दयनीय बनी हुई है.
- कमाई बंद! एक साल से कैसे चल रहा घर
देशभर से साथ ही कोरोना संक्रमण की पहली और दूसरी लहर में मध्य प्रदेश के शहरी इलाकों में काम करने वाली घरेलु कामकाजी महिलाओं की स्थिति कुछ ठीक नहीं हैं. संक्रमण के खतरे के मद्देनजर लोगों ने इन्हें अपने घरों में काम करने के लिए बुलाना बंद कर दिया था और अब करीब डेढ़ साल से बाद भी इनकी जिंदगी पटरी पर नहीं उतरी है. इंदौर शहर में झुग्गी झोपड़ियों और अन्य स्लम इलाकों में रहने वाली महिलाएं शहर के पॉश इलाकों और मध्यमवर्गीय परिवारों में उनके घर का काम करने जाती थी. इन महिलाओं में से अधिकांश अपने परिवार की आजीविका इस काम से मिलने वाले पैसों से चलाती थी, लेकिन कोरोना महामारी से उन महिलाओं से उनका रोजगार छिन गया है और दो वक्त की रोटी के लिए महिलाओं को जूझना पड़ रहा है.
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- 25 हजार के कमाई शून्य पर आई
इंदौर की रहने वाली ज्योति लॉकडाउन से पहले दूसरों के घरों में काम करके अपना गुजारा करती थी, लेकिन लॉकडाउन ने ज्योति से उसका काम छीन लिया है. ज्योति का कहना है कि वह कोरोना महामारी से पहले शहर के 8-10 घरों में खाना बनाने का काम करती थी, लेकिन जब से कोरोना महामारी ने शहर में दस्तक दी है तो उन लोगों ने घर पर खाना बनाने आने के लिए उसे मना कर दिया है जिसके कारण काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. ज्योति ने आगे बताया कि वह 8 से 10 घरों में खाना बनाकर करीब 25000 रुपए महीना कमा लेती थी उससे ही परिवार में उसके 5 बच्चे उसकी बूढ़ी मां का गुजर-बसर होता था. लेकिन कोरोना महामारी के कारण अब वह सब्जी बेचने का काम कर रही है.
- कुछ ऐसी ही है सुनीता की कहानी
कोरोना महामारी से पहले इंदौर के कई घरों में सुनीता झाड़ू पोछा का काम करती थी, लेकिन जब से कोरोना महामारी आई है तब से वह काम पर नहीं जा पा रही हैं क्योंकि उसे काम पर आने से मना कर दिया गया. सुनीता के घर में 4 बच्चे मौजूद है और उनकी देखरेख का जिम्मा पति-पत्नी दोनों पर है. काम बंद होने का बाद सुनीता और उसके पति ने सब्जी का ठेला लगाया, लेकिन प्रशासन की विभिन्न गाइडलाइन के कारण वह काम भी ठीक तरह से नहीं हो पा रहा है.
- शहर की करीब 35% महिलाएं करती हैं मेड का काम
जानकारी के मुताबिक, इंदौर शहर में करीब 35% महिलाएं विभिन्न मल्टी कॉलोनी और सोसाइटियों में घरेलू काम के लिए जाती हैं. यह महिलाएं अपने परिवार को आर्थिक रूप से मजबूत करती थी, लेकिन कोरोना के कारण इन महिलाओं के पास काम नहीं है और इन्हें इंदौर पूरी तरह अनलॉक होने का इंतेजार है.