इंदौर। जिले से 55 किमी दूर गौतमपुरा में दीपावली के अगले दिन शाम को हिगोंट युद्ध का आयोजन किया जाता है. इस परंपरागत युध्द में न किसी की हार होती हैं और न किसी की जीत, ये युध्द तो बस परंपरा और भाईचारे के नाम पर लड़ा जाता है. तुर्रा यानी गौतमपुरा और कलगी मतलब रूणजी नाम के दो दल, पुर्वजों से मिली इस परंपरा को आज भी जिंदा रखे हुए हैं.
दीपावली के दूसरे दिन यहां खेला जाता है हिंगोट युद्ध , जानें कैसे होती है इसकी तैयारी
इंदौर से 55 किमी दूर गौतमपुरा में दीपाली के दूसरे दिन पारंपरिक हिंगोट युद्ध खेला जाता है. नवरात्रि से ही योद्धा हिंगोट बनाने की तैयारियां शुरु कर देते हैं.
हिंगोट युद्ध खेला जाता है दीवाली के दूसरे दिन
इंदौर। जिले से 55 किमी दूर गौतमपुरा में दीपावली के अगले दिन शाम को हिगोंट युद्ध का आयोजन किया जाता है. इस परंपरागत युध्द में न किसी की हार होती हैं और न किसी की जीत, ये युध्द तो बस परंपरा और भाईचारे के नाम पर लड़ा जाता है. तुर्रा यानी गौतमपुरा और कलगी मतलब रूणजी नाम के दो दल, पुर्वजों से मिली इस परंपरा को आज भी जिंदा रखे हुए हैं.
Intro:इंदौर से 55 किमी दूर गौतमपुरा के जाबाज योध्दा दीपावली के अगले दिन पडवा की शाम को आयोजित अति प्राचीन पंरपरा हिगोंट (अग्निबाण) युध्द की तैयारी मे मषगुल हो गऐ। इस परंपारगत युध्द मे न किसी की हार होती हे और न कीसी की जीत बस ये युध्द भाई चारे का युध्द होता हे जहंा तुर्रा यानी गौतमपुरा और कलगी मतलब रूणजी नाम के दो दल अपने पुरवजो द्वारा दि गई इस पारंपरीक धरोहर को जिवित रखने के लिए 1 माह पुर्व नवरात्री से ही हिंगोट बनाने की प्रक्रीया मे जुट जाते हे और दीपावली के अगले दिन पडवा को अपनी इस अद्वितीय परंपरा को जिवित रखते है। सदियों से चली आरही यह परंपरा पूरे देश मे सिर्फ गौतमपुरा में ही खेली जाती है , इस युद्ध बनाम खेल में कई लोग चोटिल भी होते है परन्तु भाई चारे की तरह इसे सदियों से खेला जाता है। पीढ़ी दर पीढ़ी इस खेल में हर वर्ष नए यौद्धा शामिल होते जाते है और अपने पूर्वजों की दी गई इस परंपरा को जीवित रखते है। Body:क्या हे हिंगोट।
हिंगोट हिंगोरिया नामक पेड पर पेदा होता है। जिसे यहा के नागरिक जंगल मे पहुचकर पेड से तोडकर लाते है नीबु आकारनुमा फल जो उपर से नारियल समान कठोर व अंदर खोखला गुदे से भरा हुवा जिसे उपर से साफ कर एक छोर पर बारिक व दुसरे पर बडा छेद कर दो दिन धुप मे रखने के बाद स्ंवय योध्दा द्वारा तैयार किया गया बारूद भरकर बडे छेद को पीली मिटटी से बंद कर दुसरे बारिक छेद पर बारूद की टीपकी लगाने के बाद निषाना शीधा लगे इस लिए हिंगोट के उपर आठ इंची बास की किमची बांधदी जाती है इन सभी कार्य मे यौध्दा अभी जुटे हुवे है। हिंगोट युध्द के दिन तुर्रा व कंलगी दल के यौध्दा सिर पर साफा, कंधे पर हिंगोट से भरे झोले हाथ मे जलती लकडी लेकर दोपहर दो बजे बाद हिंगोट युध्द मैदान की और नाचते गाते निकल पडते है। मैदान के समीप भगवान देवनारायण मंन्दिर मे दर्षन के बाद मैदान मे आमने सामने खडे हो जाते है शाम पंाच बजे बाद संकेत पाते युध्द आंरभ कर देते है करीब दो घंटे तक चलने वाले इस युध्द मे सामने वाले यौध्दा द्वारा फेका गये हिंगोट की चपेट मे आये यौध्दा का झोला जलता है कई यौध्दा घायल भी होते वही पथभ्रष्ट हिंगोट दिषाहीन होकर दर्षकांे मे घुस ंजाता है तो दर्षक भी चोटिले हो जाते है वही रात्रि मे हिंगोट से निकलने वाली अग्नि रंेखाये आसमान मे खीच जाती है जो मनोहरी दृष्य पैदा करती है।
Conclusion:प्रषासन की सख्ती के कारण सीमीत मात्रा मे तैयार हो रहे हे हिंगोट*
गोरतलब हे की पिछले 8 वर्षो से प्रषासन की सक्ती के कारण हिंगोट युध्द मे उतरने वाले योध्दा सीमीत मात्रा मे हिंगोट तैयार कर रहे हे इस बार भी हिंगोट तैयार करने वाले योध्दा भी केवल युध्द मे लडने तक के ही हिंगोट तैयार कर रहे है। उल्लेखनीय यह हे पहले प्रषासन की सक्ती नही होने तक गली मोहल्लो व घर घर मे भी हिंगोट तैयार करते लोग देखे जा सक्ते थे। परंतु अब केवल योध्दा ही सीमीत मात्रा मे हिंगोट तैयार कर रहै है। वही यदि इसके इतिहास की बात करें तो सिर्फ यही मालूम होगा कि यह परंपरा गौतमपुरा वासियों को पूर्वजों द्वारा दी गई है वही यहां परंपरा क्यों और किस लिए आयोजित की गई इसके बारे में भी सारे लोग अनभिज्ञ है
बाईट- सुनील तुर्रा दल का योद्धा।। mp_ind_depalpur_01_hingot_youdh_ki_teyari_pkg_06_10064
बाईट - धीरज कलंगी दल का योद्धा। mp_ind_depalpur_01_hingot_youdh_ki_teyari_pkg_07_10064
फाइल शार्ट - mp_ind_depalpur_01_hingot_youdh_ki_teyari_pkg_05_10064
फाइल शार्ट- mp_ind_depalpur_01_hingot_youdh_ki_teyari_pkg_04_10064
हिंगोट हिंगोरिया नामक पेड पर पेदा होता है। जिसे यहा के नागरिक जंगल मे पहुचकर पेड से तोडकर लाते है नीबु आकारनुमा फल जो उपर से नारियल समान कठोर व अंदर खोखला गुदे से भरा हुवा जिसे उपर से साफ कर एक छोर पर बारिक व दुसरे पर बडा छेद कर दो दिन धुप मे रखने के बाद स्ंवय योध्दा द्वारा तैयार किया गया बारूद भरकर बडे छेद को पीली मिटटी से बंद कर दुसरे बारिक छेद पर बारूद की टीपकी लगाने के बाद निषाना शीधा लगे इस लिए हिंगोट के उपर आठ इंची बास की किमची बांधदी जाती है इन सभी कार्य मे यौध्दा अभी जुटे हुवे है। हिंगोट युध्द के दिन तुर्रा व कंलगी दल के यौध्दा सिर पर साफा, कंधे पर हिंगोट से भरे झोले हाथ मे जलती लकडी लेकर दोपहर दो बजे बाद हिंगोट युध्द मैदान की और नाचते गाते निकल पडते है। मैदान के समीप भगवान देवनारायण मंन्दिर मे दर्षन के बाद मैदान मे आमने सामने खडे हो जाते है शाम पंाच बजे बाद संकेत पाते युध्द आंरभ कर देते है करीब दो घंटे तक चलने वाले इस युध्द मे सामने वाले यौध्दा द्वारा फेका गये हिंगोट की चपेट मे आये यौध्दा का झोला जलता है कई यौध्दा घायल भी होते वही पथभ्रष्ट हिंगोट दिषाहीन होकर दर्षकांे मे घुस ंजाता है तो दर्षक भी चोटिले हो जाते है वही रात्रि मे हिंगोट से निकलने वाली अग्नि रंेखाये आसमान मे खीच जाती है जो मनोहरी दृष्य पैदा करती है।
Conclusion:प्रषासन की सख्ती के कारण सीमीत मात्रा मे तैयार हो रहे हे हिंगोट*
गोरतलब हे की पिछले 8 वर्षो से प्रषासन की सक्ती के कारण हिंगोट युध्द मे उतरने वाले योध्दा सीमीत मात्रा मे हिंगोट तैयार कर रहे हे इस बार भी हिंगोट तैयार करने वाले योध्दा भी केवल युध्द मे लडने तक के ही हिंगोट तैयार कर रहे है। उल्लेखनीय यह हे पहले प्रषासन की सक्ती नही होने तक गली मोहल्लो व घर घर मे भी हिंगोट तैयार करते लोग देखे जा सक्ते थे। परंतु अब केवल योध्दा ही सीमीत मात्रा मे हिंगोट तैयार कर रहै है। वही यदि इसके इतिहास की बात करें तो सिर्फ यही मालूम होगा कि यह परंपरा गौतमपुरा वासियों को पूर्वजों द्वारा दी गई है वही यहां परंपरा क्यों और किस लिए आयोजित की गई इसके बारे में भी सारे लोग अनभिज्ञ है
बाईट- सुनील तुर्रा दल का योद्धा।। mp_ind_depalpur_01_hingot_youdh_ki_teyari_pkg_06_10064
बाईट - धीरज कलंगी दल का योद्धा। mp_ind_depalpur_01_hingot_youdh_ki_teyari_pkg_07_10064
फाइल शार्ट - mp_ind_depalpur_01_hingot_youdh_ki_teyari_pkg_05_10064
फाइल शार्ट- mp_ind_depalpur_01_hingot_youdh_ki_teyari_pkg_04_10064
Last Updated : Oct 23, 2019, 3:34 PM IST