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इंदौर में तेजी से बढ़ रहे हैं बच्चियों के लापता होने के मामले, पुलिस चला रहा रही है कैंपेन - Indore DIG Hari Narayan Chari Mishra

देश सहित इंदौर में नाबालिग बच्चों से जुड़े किडनैपिंग के मामले तेजी से सामने आ रहे हैं. हालांकि पुलिस इन्हें रोकने के लिए कई प्रकार के दावे कर रही हैं लेकिन इंदौर पुलिस इन मामलों को खत्म नहीं कर पाई है. जानिए लापता होते बच्चों से जुड़े वो तमाम पहलू जो आपको जानना जरुरी है ...

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Published : Dec 6, 2020, 3:03 PM IST

इंदौर। देशभर में बच्चों के अपहरण के मामले लोगों को अब शायद चौकाते नहीं है. लेकिन किडनैपिंग के अधिकतर मामले नाबालिग बच्चों से जुड़े हैं. इसमें 14 साल से लेकर 18 साल की नाबालिक लड़कियां भी शामिल हैं. अक्कसर इन्हे फिरौती या फिर जिस्मफरोशी के लिए किडनैप किया जाता है. बात प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर की करे तो इंदौर में भी नाबालिगों के अपहरण के मामले चौकाने वाले हैं. हालांकि इंदौर पुलिस इन अपराधों को रोकने के लिए कई तरह के विशेष अभियान चलाने के दावे करती है. इसके बाद भी पुलिस अपहरण को पूरी तरह से रोक पाने में नाकाम साबित हो रही है. इंदौर शहर में नाबालिग बालिकाओं से संबंधित अपराध के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं. इन्हें रोकने के लिए इंदौर पुलिस डायल 1098 सहित कई तरह की डेस्क संचालित कर रही है, जिसके जरिए इन अपहरण की घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सके. अपहरण से जुड़े पिछले पांच सालों का रिकॉर्ड देखा जाए तो इंदौर पुलिस को कुछ सफलता जरुर हांथ लगी हैं मगर ये नाकाफी हैं.

बच्चियों के लापता होने के मामले

पुलिस करती है फौरी कार्रवाई

इंदौर में लगातार नाबालिग लड़कियों की गुमशुदगी के प्रकरणों में इजाफा हो रहा है. इंदौर पुलिस ने गुमशुदगी और नाबालिग बालिकओं की जांच पड़ताल के लिए चाइल्ड लाइन और अन्य तरह की विशेष सेल का गठन भी किया है. पुलिस के मुताबिक रोजाना 15 से 18 साल की लड़कियों की गुमशुदगी की सूचना पुलिस के पास आती है. चाइल्ड लाइफ में जो भी शिकायत करना चाहता है वह 1091 नंबर के जरिए मामले दर्ज करवाता है और फिर उस पूरे मामले में चाइल्ड लाइन अपनी टीम गठित कर गुमशुदा बालिका की तलाश में जुट जाती है. इसके लिए पुलिस संयुक्त कार्रवाई करती है. वहीं चाइल्ड लाइन के जरिए पूरे देश में फैले अधिकारियों को भी सूचित किया जाता है और फिर नाबालिगों को ढूंढने का प्रयास शुरू होता है.

अपहरण के मामलों में नाबालिग के केसेस ज्यादा

चाइल्ड लाइन कोऑर्डिनेटर राहुल गोंडाने ने बताया कि चाइल्ड लाइन में तकरीबन 5 सालों में 150 से अधिक नाबालिग लड़कियां हैं. वहीं 300 से 400 शिकायतें पिछले 5 सालों में इंदौर चाइल्ड लाइन के पास पहुंची हैं. जिनमें से 300 युवतियों को चाईल्ड लाइन की टीम ने ढूंढकर घर पहुंचाया है. 120 नाबालिक लड़कियां अभी भी मिसिंग हैं, जिन को ढूंढने के लिए चाइल्ड लाइन लगातार प्रयास कर रही है. चाइल्ड लाइन कोऑर्डिनेटर ने कहा कि 15 से 18 साल की जो लड़कियां अपने घर से बिना बताए कहीं चली जाती हैं उनमें ज्यादातर मामले प्रेम प्रसंग से संबंधित होते हैं. वही चाइल्डलाइन ने भी अलग अलग तरह से एक सर्कल बनाया हुआ है.

बालिकाओं के घर से चले जाने के पीछे छिपे रहते हैं कई कारण

  • 1 से 5 पांच एज ग्रुप के तकरीबन 15 बच्चियां गायब हुई हैं वहीं छह साल से 10 साल के एज ग्रुप में 158 लड़कियां गायब हैं.
  • 11 साल से लेकर 15 साल के एज ग्रुप की बात की जाए तो उसमें तकरीबन 135 लड़कियां लापता हुई हैं.
  • 16 साल से 18 साल के एज ग्रुप में 85 लड़कियां गायब गायब हुई हैं.
  • सोशल मीडिया का गलत उपयोग भी लड़कियों के गायब होने की घटनाओं में बढ़ोतरी का जिम्मेदार है.

इन खास एज ग्रुप में गायब होने के कारण भी अलग-अलग हैं.

  • जहां 16 साल से 18 साल की एज ग्रुप की लड़कियां प्रेम प्रसंग के चलते अपने घर से गायब हो जाती हैं तो वहीं...
  • 1 साल से 5 साल के बच्चे अपनी विभिन्न परेशानियों के चलते घर से गायब होते हैं.
  • 6 साल से 15 साल की बच्चियां माता-पिता की डांट या फिर उनके साथ अच्छा व्यवहार के कारण गायब होती हैं.
  • एक बड़ी तादाद जानबूझकर घर छोड़ने वाले बच्चों की है जो घरेलू हिंसा का शिकार होते हैं.
    childline office
    चाइल्ड लाइन इंदौर

चाइल्ड लाइन की टीम ऐसी शिकायतें मिलने पर तत्काल प्रभाव से उन्हें खोजने में जुट जाती है. अधिकतर मामलों में 2 या 3 दिन में पुलिस लापता हुई बच्चियों को खोज लेती है. वहीं कई मामलों में पुलिस के साथ मिलकर चाइल्डलाइन की टीम गायब हुई बच्ची को दो से तीन महीनों तक भी नहीं ढूंढ पाती.

एनजीओ भी करती है पुलिस की मदद

इंदौर में नाबालिग बालिकाओं के लापता होने के मामले में इंदौर डीआईजी हरि नारयण चारि मिश्र ने कहा कि निश्चित तौर पर इंदौर शहर में नाबालिग बालिकाओं के लापता के मामलों में इजाफा हुआ है. लेकिन इंदौर पुलिस ने अपराधों को कम करने के लिए एक अभियान भी चलाया है. इसमें एनजीओ की मदद भी ली जा रही है. इनकी मदद से तकरीबन 200 से अधिक लापता हुए बच्चों को पुलिस ने ढूंढकर उनके घरों तक पहुंचाया है. गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज होने के बाद सीएसपी स्तर के अधिकारी लगातार जांच पड़ताल में जुटे रहते हैं वही सीसीटीएस के माध्यम से लापता हुए बच्चों की तलाश की जाती है. लापता बच्चों को किसी कारण से उनके परिजनों को सुपुर्द नहीं किया जाता तो उन्हे एक सुरक्षित स्थान या एनजीओ या किसी संस्थान के पास रखा जाता है. एक साल में पुलिस ने 500 से अधिक बच्चों को ढूंढकर उनके घरों तक पहुंचाया है.

संचार साधनों ने बढ़ाई अपहरण की घटना

इंदौर डीआईजी का यह भी कहना है कि संचार साधनों के बढ़ जाने के कारण इस तरह की घटनाएं तेजी से सामने आ रही हैं. आसानी से कोई भी एक दूसरे के संपर्क में आ जाता है जिसके कारण इस तरह की घटनाओं में इजाफा हो रहा है. इंदौर में गुमशुदगी के जो मामले हैं उनमें लगातार इजाफा हो रहा है.

प्रेम प्रसंग के चलते युवती चली जाती घरों से

मध्यप्रदेश हाई कोर्ट के इंदौर खंडपीठ के एडवोकेट गोविंद राय पुरोहित का कहना है कि गुमशुदगी और लापता होने के मामले में लगातार इजाफा हो रहा है. अधिकतर मामलों में जो बच्ची लापता होती है उनकी उम्र 12, 13 या 18 साल से कम होती है और इन सभी मामलों में अधिकतर मामले प्रेम प्रसंग से संबंधित जुड़े रहते हैं. जिसमें लड़कियां किसी लड़के के जाल में फंस जाती है और बहकावे में आकर युवक के साथ चली जाती हैं. दूसरी बात यह भी है कि पुलिस किसी भी गुमशुदगी की रिर्पोट 24 घंटे से पहले नहीं लिखती है. जिसके चलते लापता हुई लड़की को तलाश करना और भी मुश्किल हो जाता है.

किडनैपिंक में है कड़ी सजा का प्रावधान

गोविंद राय पुरोहित ने कहा कि पुलिस काफी जद्दोजहद करने के बाद जब गुमशुदा बच्ची तक नहीं पहुंचती तो इस पूरे मामले में पुलिस कई धाराओं में मामला दर्ज करती है. इसमें धारा 360 व 361 दोनों ही अहम हैं. दोनों ही धारा अपरहण से संबंधित हैं और सजा का प्रावधान है. वहीं यदि कोर्ट की बात करें तो कोर्ट के सामने भी तकरीबन एक साल में 200 से 300 के गुमशुदगी के संबंधित मामले सामने आते हैं. जहां पर पीड़ित पक्ष कोर्ट के समक्ष एक याचिका प्रस्तुत करते हैं और गुहार लगाते हैं कि कोर्ट इस पूरे मामले में पुलिस व संबंधित विभागों को गायब हुई लड़की की तलाश के लिए विभिन्न तरह के दिशा निर्देश जारी करें. फिलहाल जिस तरह से इंदौर में लापता बालिकाओं के मामले सामने आ रहे हैं वह काफी चौकाने वाले हैंं. इंदौर पुलिस एक साल में 500 बच्चों को भी रिकवर कर चुकी है जो बताता है कि यहां बच्चों की किडनैपिंग एक धंधे के तौर पर फल फूल रहा है. पुलिस किस तरह इस धंधे पर रोक लगाती है देखने लायक होगा.

इंदौर। देशभर में बच्चों के अपहरण के मामले लोगों को अब शायद चौकाते नहीं है. लेकिन किडनैपिंग के अधिकतर मामले नाबालिग बच्चों से जुड़े हैं. इसमें 14 साल से लेकर 18 साल की नाबालिक लड़कियां भी शामिल हैं. अक्कसर इन्हे फिरौती या फिर जिस्मफरोशी के लिए किडनैप किया जाता है. बात प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर की करे तो इंदौर में भी नाबालिगों के अपहरण के मामले चौकाने वाले हैं. हालांकि इंदौर पुलिस इन अपराधों को रोकने के लिए कई तरह के विशेष अभियान चलाने के दावे करती है. इसके बाद भी पुलिस अपहरण को पूरी तरह से रोक पाने में नाकाम साबित हो रही है. इंदौर शहर में नाबालिग बालिकाओं से संबंधित अपराध के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं. इन्हें रोकने के लिए इंदौर पुलिस डायल 1098 सहित कई तरह की डेस्क संचालित कर रही है, जिसके जरिए इन अपहरण की घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सके. अपहरण से जुड़े पिछले पांच सालों का रिकॉर्ड देखा जाए तो इंदौर पुलिस को कुछ सफलता जरुर हांथ लगी हैं मगर ये नाकाफी हैं.

बच्चियों के लापता होने के मामले

पुलिस करती है फौरी कार्रवाई

इंदौर में लगातार नाबालिग लड़कियों की गुमशुदगी के प्रकरणों में इजाफा हो रहा है. इंदौर पुलिस ने गुमशुदगी और नाबालिग बालिकओं की जांच पड़ताल के लिए चाइल्ड लाइन और अन्य तरह की विशेष सेल का गठन भी किया है. पुलिस के मुताबिक रोजाना 15 से 18 साल की लड़कियों की गुमशुदगी की सूचना पुलिस के पास आती है. चाइल्ड लाइफ में जो भी शिकायत करना चाहता है वह 1091 नंबर के जरिए मामले दर्ज करवाता है और फिर उस पूरे मामले में चाइल्ड लाइन अपनी टीम गठित कर गुमशुदा बालिका की तलाश में जुट जाती है. इसके लिए पुलिस संयुक्त कार्रवाई करती है. वहीं चाइल्ड लाइन के जरिए पूरे देश में फैले अधिकारियों को भी सूचित किया जाता है और फिर नाबालिगों को ढूंढने का प्रयास शुरू होता है.

अपहरण के मामलों में नाबालिग के केसेस ज्यादा

चाइल्ड लाइन कोऑर्डिनेटर राहुल गोंडाने ने बताया कि चाइल्ड लाइन में तकरीबन 5 सालों में 150 से अधिक नाबालिग लड़कियां हैं. वहीं 300 से 400 शिकायतें पिछले 5 सालों में इंदौर चाइल्ड लाइन के पास पहुंची हैं. जिनमें से 300 युवतियों को चाईल्ड लाइन की टीम ने ढूंढकर घर पहुंचाया है. 120 नाबालिक लड़कियां अभी भी मिसिंग हैं, जिन को ढूंढने के लिए चाइल्ड लाइन लगातार प्रयास कर रही है. चाइल्ड लाइन कोऑर्डिनेटर ने कहा कि 15 से 18 साल की जो लड़कियां अपने घर से बिना बताए कहीं चली जाती हैं उनमें ज्यादातर मामले प्रेम प्रसंग से संबंधित होते हैं. वही चाइल्डलाइन ने भी अलग अलग तरह से एक सर्कल बनाया हुआ है.

बालिकाओं के घर से चले जाने के पीछे छिपे रहते हैं कई कारण

  • 1 से 5 पांच एज ग्रुप के तकरीबन 15 बच्चियां गायब हुई हैं वहीं छह साल से 10 साल के एज ग्रुप में 158 लड़कियां गायब हैं.
  • 11 साल से लेकर 15 साल के एज ग्रुप की बात की जाए तो उसमें तकरीबन 135 लड़कियां लापता हुई हैं.
  • 16 साल से 18 साल के एज ग्रुप में 85 लड़कियां गायब गायब हुई हैं.
  • सोशल मीडिया का गलत उपयोग भी लड़कियों के गायब होने की घटनाओं में बढ़ोतरी का जिम्मेदार है.

इन खास एज ग्रुप में गायब होने के कारण भी अलग-अलग हैं.

  • जहां 16 साल से 18 साल की एज ग्रुप की लड़कियां प्रेम प्रसंग के चलते अपने घर से गायब हो जाती हैं तो वहीं...
  • 1 साल से 5 साल के बच्चे अपनी विभिन्न परेशानियों के चलते घर से गायब होते हैं.
  • 6 साल से 15 साल की बच्चियां माता-पिता की डांट या फिर उनके साथ अच्छा व्यवहार के कारण गायब होती हैं.
  • एक बड़ी तादाद जानबूझकर घर छोड़ने वाले बच्चों की है जो घरेलू हिंसा का शिकार होते हैं.
    childline office
    चाइल्ड लाइन इंदौर

चाइल्ड लाइन की टीम ऐसी शिकायतें मिलने पर तत्काल प्रभाव से उन्हें खोजने में जुट जाती है. अधिकतर मामलों में 2 या 3 दिन में पुलिस लापता हुई बच्चियों को खोज लेती है. वहीं कई मामलों में पुलिस के साथ मिलकर चाइल्डलाइन की टीम गायब हुई बच्ची को दो से तीन महीनों तक भी नहीं ढूंढ पाती.

एनजीओ भी करती है पुलिस की मदद

इंदौर में नाबालिग बालिकाओं के लापता होने के मामले में इंदौर डीआईजी हरि नारयण चारि मिश्र ने कहा कि निश्चित तौर पर इंदौर शहर में नाबालिग बालिकाओं के लापता के मामलों में इजाफा हुआ है. लेकिन इंदौर पुलिस ने अपराधों को कम करने के लिए एक अभियान भी चलाया है. इसमें एनजीओ की मदद भी ली जा रही है. इनकी मदद से तकरीबन 200 से अधिक लापता हुए बच्चों को पुलिस ने ढूंढकर उनके घरों तक पहुंचाया है. गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज होने के बाद सीएसपी स्तर के अधिकारी लगातार जांच पड़ताल में जुटे रहते हैं वही सीसीटीएस के माध्यम से लापता हुए बच्चों की तलाश की जाती है. लापता बच्चों को किसी कारण से उनके परिजनों को सुपुर्द नहीं किया जाता तो उन्हे एक सुरक्षित स्थान या एनजीओ या किसी संस्थान के पास रखा जाता है. एक साल में पुलिस ने 500 से अधिक बच्चों को ढूंढकर उनके घरों तक पहुंचाया है.

संचार साधनों ने बढ़ाई अपहरण की घटना

इंदौर डीआईजी का यह भी कहना है कि संचार साधनों के बढ़ जाने के कारण इस तरह की घटनाएं तेजी से सामने आ रही हैं. आसानी से कोई भी एक दूसरे के संपर्क में आ जाता है जिसके कारण इस तरह की घटनाओं में इजाफा हो रहा है. इंदौर में गुमशुदगी के जो मामले हैं उनमें लगातार इजाफा हो रहा है.

प्रेम प्रसंग के चलते युवती चली जाती घरों से

मध्यप्रदेश हाई कोर्ट के इंदौर खंडपीठ के एडवोकेट गोविंद राय पुरोहित का कहना है कि गुमशुदगी और लापता होने के मामले में लगातार इजाफा हो रहा है. अधिकतर मामलों में जो बच्ची लापता होती है उनकी उम्र 12, 13 या 18 साल से कम होती है और इन सभी मामलों में अधिकतर मामले प्रेम प्रसंग से संबंधित जुड़े रहते हैं. जिसमें लड़कियां किसी लड़के के जाल में फंस जाती है और बहकावे में आकर युवक के साथ चली जाती हैं. दूसरी बात यह भी है कि पुलिस किसी भी गुमशुदगी की रिर्पोट 24 घंटे से पहले नहीं लिखती है. जिसके चलते लापता हुई लड़की को तलाश करना और भी मुश्किल हो जाता है.

किडनैपिंक में है कड़ी सजा का प्रावधान

गोविंद राय पुरोहित ने कहा कि पुलिस काफी जद्दोजहद करने के बाद जब गुमशुदा बच्ची तक नहीं पहुंचती तो इस पूरे मामले में पुलिस कई धाराओं में मामला दर्ज करती है. इसमें धारा 360 व 361 दोनों ही अहम हैं. दोनों ही धारा अपरहण से संबंधित हैं और सजा का प्रावधान है. वहीं यदि कोर्ट की बात करें तो कोर्ट के सामने भी तकरीबन एक साल में 200 से 300 के गुमशुदगी के संबंधित मामले सामने आते हैं. जहां पर पीड़ित पक्ष कोर्ट के समक्ष एक याचिका प्रस्तुत करते हैं और गुहार लगाते हैं कि कोर्ट इस पूरे मामले में पुलिस व संबंधित विभागों को गायब हुई लड़की की तलाश के लिए विभिन्न तरह के दिशा निर्देश जारी करें. फिलहाल जिस तरह से इंदौर में लापता बालिकाओं के मामले सामने आ रहे हैं वह काफी चौकाने वाले हैंं. इंदौर पुलिस एक साल में 500 बच्चों को भी रिकवर कर चुकी है जो बताता है कि यहां बच्चों की किडनैपिंग एक धंधे के तौर पर फल फूल रहा है. पुलिस किस तरह इस धंधे पर रोक लगाती है देखने लायक होगा.

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