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यहां शिव को चढ़ता है सिंदूर, हर कष्ट चुटकी में हो जाते हैं दूर - होशंगाबाद न्यूज

होशंगाबाद से करीब 36 किलोमीटर की दूरी पर सतपुड़ा की सुरम्य वादियों के बीचों बीच एक एक अनोखा प्राचीन शिव मंदिर स्थित है, जिन्हें तिलक सिंदूर महादेव के नाम से पहचाना जाता है. यहां मंदिर में पंडित नहीं आदिवासी ही शिव का पूजन करते हैं.

Tilak Sindoor Mahadev Temple
तिलक सिंदूर महादेव मंदिर
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Published : Feb 20, 2020, 10:13 AM IST

Updated : Feb 20, 2020, 11:44 AM IST

होशंगाबाद। शिव को विश्व के अनेकों रूपों में पूजा जाता है, शिव के विभिन्न रूपों और ज्योतिलिंगो को विभिन्न नामों से संबोधित किया जाता है. ऐसा ही होशंगाबाद जिले में भी एक अनोखा प्राचीन शिव मंदिर स्थित है, जिन्हें तिलक सिंदूर के नाम से पहचाना जाता है. होशंगाबाद से करीब 36 किलोमीटर की दूरी पर सतपुड़ा की सुरम्य वादियों के बीचों बीच बसा यह भोलेनाथ का प्रसिद्ध धाम तिलक सिंदूर महादेव है.

देखिए शिव का तिलक सिंदूर महादेव का मंदिर

कहने को तो सिंदूर शिव के ही अवतार हनुमान जी को अर्पित किया जाता है, लेकिन होशंगाबाद के इटारसी में महादेव के इस मंदिर में भगवान शिव की आराधना और अभिषेक सिंदूर से किया जाता है. इस आलोकित मंदिर में पंडित नहीं आदिवासी ही शिव का पूजन करते हैं. सिंदूर को लेकर यहां के आदिवासियों में कई मान्यता और दन्तकथा हैं.

Tilak Sindoor Mahadev Temple
तिलक सिंदूर महादेव मंदिर

इनमें से एक कथा है कि प्राचीन समय में यहां सिंदूर के पेड़ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे, जो गोंडवाना क्षेत्र कहा जाता था. यहां के राजा दलवत सिंह उईके ने सतपुड़ा के जंगल से लाकर सिंदूर से भगवान शिव की आराधना की थी और इसे शिवरात्रि के बाद आने वाली होली से भी जोड़कर मनाने की मान्यता है. इसीलिए यहां भगवान को सिंदूर से अभिषेक किया जाता है.

भस्मासुर से बचने के लिए कंदरा में भगवान शिव ने ली थी शरण

यहां भगवान के विराजमान होने को लेकर मान्यता है कि भगवान शिव भस्मासुर को अपने दिए हुए वरदान के चलते ही शरण लेने के लिए सतपुड़ा के दुर्गम जंगल की कंदरा में ठहरे थे. भस्मासुर भगवान शिव को भस्म करना चाहता था, इसी के चलते भगवान यहां विराजित हुए थे और यही से पचमढ़ी पहुंचे थे.

Shivalinga at Tilak Sindoor Mahadev Temple
तिलक सिंदूर महादेव मंदिर में शिवलिंग

आज भी यहां आदिवासी भोंमका करते हैं पूजा

आज भी यहां पर प्रथम पूजा का अधिकार आदिवासी समाज के प्रधान भौमका के परिवार को है. यहां आज भी ब्राह्मण समाज का पंडित भगवान का अभिषेक पूजा कराने के लिए नहीं पहुंचता है. आदिवासी समुदाय भगवान भोलेनाथ को बड़े देव के नाम से पूजते हैं.

तांत्रिक पहुंचते हैं तिलक सिंदूर

कहा जाता है कि तांत्रिक क्रिया करने वाले साधक यहां बड़ी संख्या में पहुंचते हैं. यहां पर मंदिर के तालाब के उस पार 15 आदिवासी गांवों का श्मशान भी है. जहां विशेष पर्वों पर तांत्रिक क्रियाएं भी की जाती हैं. भक्तों के बीच भी इस प्राचीन तिलक सिंदूर महादेव का अपना एक अलग ही महत्व है.

होशंगाबाद। शिव को विश्व के अनेकों रूपों में पूजा जाता है, शिव के विभिन्न रूपों और ज्योतिलिंगो को विभिन्न नामों से संबोधित किया जाता है. ऐसा ही होशंगाबाद जिले में भी एक अनोखा प्राचीन शिव मंदिर स्थित है, जिन्हें तिलक सिंदूर के नाम से पहचाना जाता है. होशंगाबाद से करीब 36 किलोमीटर की दूरी पर सतपुड़ा की सुरम्य वादियों के बीचों बीच बसा यह भोलेनाथ का प्रसिद्ध धाम तिलक सिंदूर महादेव है.

देखिए शिव का तिलक सिंदूर महादेव का मंदिर

कहने को तो सिंदूर शिव के ही अवतार हनुमान जी को अर्पित किया जाता है, लेकिन होशंगाबाद के इटारसी में महादेव के इस मंदिर में भगवान शिव की आराधना और अभिषेक सिंदूर से किया जाता है. इस आलोकित मंदिर में पंडित नहीं आदिवासी ही शिव का पूजन करते हैं. सिंदूर को लेकर यहां के आदिवासियों में कई मान्यता और दन्तकथा हैं.

Tilak Sindoor Mahadev Temple
तिलक सिंदूर महादेव मंदिर

इनमें से एक कथा है कि प्राचीन समय में यहां सिंदूर के पेड़ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे, जो गोंडवाना क्षेत्र कहा जाता था. यहां के राजा दलवत सिंह उईके ने सतपुड़ा के जंगल से लाकर सिंदूर से भगवान शिव की आराधना की थी और इसे शिवरात्रि के बाद आने वाली होली से भी जोड़कर मनाने की मान्यता है. इसीलिए यहां भगवान को सिंदूर से अभिषेक किया जाता है.

भस्मासुर से बचने के लिए कंदरा में भगवान शिव ने ली थी शरण

यहां भगवान के विराजमान होने को लेकर मान्यता है कि भगवान शिव भस्मासुर को अपने दिए हुए वरदान के चलते ही शरण लेने के लिए सतपुड़ा के दुर्गम जंगल की कंदरा में ठहरे थे. भस्मासुर भगवान शिव को भस्म करना चाहता था, इसी के चलते भगवान यहां विराजित हुए थे और यही से पचमढ़ी पहुंचे थे.

Shivalinga at Tilak Sindoor Mahadev Temple
तिलक सिंदूर महादेव मंदिर में शिवलिंग

आज भी यहां आदिवासी भोंमका करते हैं पूजा

आज भी यहां पर प्रथम पूजा का अधिकार आदिवासी समाज के प्रधान भौमका के परिवार को है. यहां आज भी ब्राह्मण समाज का पंडित भगवान का अभिषेक पूजा कराने के लिए नहीं पहुंचता है. आदिवासी समुदाय भगवान भोलेनाथ को बड़े देव के नाम से पूजते हैं.

तांत्रिक पहुंचते हैं तिलक सिंदूर

कहा जाता है कि तांत्रिक क्रिया करने वाले साधक यहां बड़ी संख्या में पहुंचते हैं. यहां पर मंदिर के तालाब के उस पार 15 आदिवासी गांवों का श्मशान भी है. जहां विशेष पर्वों पर तांत्रिक क्रियाएं भी की जाती हैं. भक्तों के बीच भी इस प्राचीन तिलक सिंदूर महादेव का अपना एक अलग ही महत्व है.

Last Updated : Feb 20, 2020, 11:44 AM IST
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