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माँ नर्मदा का अनोखा भक्त, लाठी के सहारे परिक्रमा कर रहे नेत्रहीन नीलेश, 22 दिन की यात्रा पूरी - importance of Narmada parikrama

हिंदू धर्म में मां नर्मदा की परिक्रमा का बड़ा महत्व है, कहते हैं जिसने अपनी जिंदगी में एक बार नर्मदा परिक्रमा कर ली, उसने सब कुछ हासिल कर लिया. इसी को सिद्ध कर दिखाया है इंदौर के मूसाखेड़ी निवासी नीलेश धनगर ने, नीलेश धनगर जन्म से ही नेत्रहीन हैं, इसके बावजूद वह एक डंडे के सहारे नर्मदा परिक्रमा के लिए निकल पड़े हैं. इससे पहले वह इंदौर से देवास, उज्जैन, ओंकारेश्वर व खंडवा की यात्रा कर चुके हैं.

Blind Nilesh doing Maa Narmada parikrama
नर्मदा परिक्रमा कर रहे नेत्रहीन नीलेश
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Published : Jan 27, 2023, 12:13 PM IST

Updated : Jan 27, 2023, 12:41 PM IST

नर्मदा परिक्रमा कर रहे नेत्रहीन नीलेश

मंडला। नर्मदा परिक्रमा पथ पर एक से बढ़कर एक तपस्वी, संत, महात्मा और गृहस्थ परिक्रमा करते हुए आगे बढ़ रहे हैं (Nilesh doing Maa Narmada parikrama). उन्हीं में से एक हैं नीलेश धनगर. 37 वर्षीय परिक्रमावासी नीलेश धनगर इंदौर के मूसाखेड़ी निवासी हैं और जन्म से ही नेत्रहीन है. बावजूद इसके उन्होंने नर्मदा परिक्रमा करने की ठानी. नेत्र हीनता उनके जज्बें के आगे आडे़ नहीं आ पाई और अकेले ही नर्मदा परिक्रमा का सफर तय किया. माँ नर्मदा की इस परिक्रमा में उनके संगी साथी उनकी लाठी हैं, जो उन्हें कच्चे-पक्के रास्तों पर चलने में मदद कर रहे हैं. नीलेश धनगर ने माँ नर्मदा के बुधनी तट से परिक्रमा शुरू की है, ये अब तक 22 दिन की यात्रा पूरी कर चुके हैं.

पढ़े लिखे हैं नीलेश: परिक्रमावासी नीलेश ने बताया कि ''उन्होंने राजनीति विज्ञान से एमए की पढ़ाई की है, इसके साथ कम्प्यूटर कोर्स भी किया है. टाकिंग साफ्टवेयर की मदद से वह मोबाइल भी चलाते हैं. नीलेश के परिवार में सात सदस्य हैं. इन्होंने बताया कि मन में नर्मदा की परिक्रमा करने की इच्छा थी, लेकिन नेत्रहीनता के कारण साहस नहीं जुटा पा रहे थे, वे सोच रहे थे कि यात्रा कैसे कर पाएंगे. इसलिए पहले इंदौर से देवास, उज्जैन, ओंकारेश्वर व खंडवा की यात्रा की, जब यह यात्राएं सफलता से पूरी हो गईं तो उनका उत्साह बढ़ गया और उन्होंने नर्मदा परिक्रमा करने की ठान ली. जिसके बाद 2 जनवरी 2023 को बुधनी घाट से नर्मदा परिक्रमा शुरू की''.

नर्मदा परिक्रमा में निकले रासेश्वरी के नन्हें कदम, विदिशा में चरण तीर्थ धाम पर आयोजित होगा संक्रांति का अखाड़ा

नर्मदा परिक्रमा के लिये प्रेरित करना है लक्ष्य: नीलेश का कहना है कि ''माँ नर्मदा हर संकट को हरने वाली हैं, इनकी कृपा का अनुभव करना हो तो एक बार परिक्रमा करके देख लेना चाहिए. मेरी परिक्रमा का उद्देश्य माँ नर्मदा की कृपा पाना तो है ही, इसके साथ ही लोगों की परिक्रमा के प्रति प्रेरित करना भी है''. उन्होंने कहां कि ''जब मुझ जैसा नेत्रहीन भक्त माई की परिक्रमा कर सकता है, तो सामान्य व्यक्ति बड़ी ही आसानी से माँ नर्मदा की परिक्रमा कर सकता है. नर्मदा भक्तों को पेड़ पौधे नहीं काटना चाहिए, यदि काटने की आवश्यकता पड़ भी जाए तो एक पेड़ के बदले कम से कम 4 पेड़ लगाना चाहिए''.

माँ नर्मदा स्वयं ही करती हैं सहायता: बरेला मनेरी होते हुए परिक्रमावासी नीलेश मंडला ने जिले की सीमा में प्रवेश किया. जहां दंडी महाराज आश्रम ग्राम भलवारा में अल्प प्रवास करते हुए दोपहर का भोजन ग्रहण किया और आगे बढ़े. नीलेश महाराज ने बताया कि नर्मदा जी की जैसी महिमा वह अन्य परिक्रमावासियों से सुनते थे कि मां नर्मदा अपने भक्त को कोई कष्ट नहीं होने देतीं और मदद करती हैं, यह अब अनुभव हो रहा है. नेत्रहीन होने से वह भोजन नहीं बना पाते लेकिन अब तक एक भी दिन ऐसा नहीं गया, जब उन्हें भूखा सोने की नौबत आई हो. यात्रा में हर जगह उन्हें भोजन-प्रसादी मिल जाती है, नर्मदा भक्त रूकने की व्यवस्था भी कर देते हैं, रास्ता भी बता देते हैं.

नर्मदा परिक्रमा कर रहे नेत्रहीन नीलेश

मंडला। नर्मदा परिक्रमा पथ पर एक से बढ़कर एक तपस्वी, संत, महात्मा और गृहस्थ परिक्रमा करते हुए आगे बढ़ रहे हैं (Nilesh doing Maa Narmada parikrama). उन्हीं में से एक हैं नीलेश धनगर. 37 वर्षीय परिक्रमावासी नीलेश धनगर इंदौर के मूसाखेड़ी निवासी हैं और जन्म से ही नेत्रहीन है. बावजूद इसके उन्होंने नर्मदा परिक्रमा करने की ठानी. नेत्र हीनता उनके जज्बें के आगे आडे़ नहीं आ पाई और अकेले ही नर्मदा परिक्रमा का सफर तय किया. माँ नर्मदा की इस परिक्रमा में उनके संगी साथी उनकी लाठी हैं, जो उन्हें कच्चे-पक्के रास्तों पर चलने में मदद कर रहे हैं. नीलेश धनगर ने माँ नर्मदा के बुधनी तट से परिक्रमा शुरू की है, ये अब तक 22 दिन की यात्रा पूरी कर चुके हैं.

पढ़े लिखे हैं नीलेश: परिक्रमावासी नीलेश ने बताया कि ''उन्होंने राजनीति विज्ञान से एमए की पढ़ाई की है, इसके साथ कम्प्यूटर कोर्स भी किया है. टाकिंग साफ्टवेयर की मदद से वह मोबाइल भी चलाते हैं. नीलेश के परिवार में सात सदस्य हैं. इन्होंने बताया कि मन में नर्मदा की परिक्रमा करने की इच्छा थी, लेकिन नेत्रहीनता के कारण साहस नहीं जुटा पा रहे थे, वे सोच रहे थे कि यात्रा कैसे कर पाएंगे. इसलिए पहले इंदौर से देवास, उज्जैन, ओंकारेश्वर व खंडवा की यात्रा की, जब यह यात्राएं सफलता से पूरी हो गईं तो उनका उत्साह बढ़ गया और उन्होंने नर्मदा परिक्रमा करने की ठान ली. जिसके बाद 2 जनवरी 2023 को बुधनी घाट से नर्मदा परिक्रमा शुरू की''.

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नर्मदा परिक्रमा के लिये प्रेरित करना है लक्ष्य: नीलेश का कहना है कि ''माँ नर्मदा हर संकट को हरने वाली हैं, इनकी कृपा का अनुभव करना हो तो एक बार परिक्रमा करके देख लेना चाहिए. मेरी परिक्रमा का उद्देश्य माँ नर्मदा की कृपा पाना तो है ही, इसके साथ ही लोगों की परिक्रमा के प्रति प्रेरित करना भी है''. उन्होंने कहां कि ''जब मुझ जैसा नेत्रहीन भक्त माई की परिक्रमा कर सकता है, तो सामान्य व्यक्ति बड़ी ही आसानी से माँ नर्मदा की परिक्रमा कर सकता है. नर्मदा भक्तों को पेड़ पौधे नहीं काटना चाहिए, यदि काटने की आवश्यकता पड़ भी जाए तो एक पेड़ के बदले कम से कम 4 पेड़ लगाना चाहिए''.

माँ नर्मदा स्वयं ही करती हैं सहायता: बरेला मनेरी होते हुए परिक्रमावासी नीलेश मंडला ने जिले की सीमा में प्रवेश किया. जहां दंडी महाराज आश्रम ग्राम भलवारा में अल्प प्रवास करते हुए दोपहर का भोजन ग्रहण किया और आगे बढ़े. नीलेश महाराज ने बताया कि नर्मदा जी की जैसी महिमा वह अन्य परिक्रमावासियों से सुनते थे कि मां नर्मदा अपने भक्त को कोई कष्ट नहीं होने देतीं और मदद करती हैं, यह अब अनुभव हो रहा है. नेत्रहीन होने से वह भोजन नहीं बना पाते लेकिन अब तक एक भी दिन ऐसा नहीं गया, जब उन्हें भूखा सोने की नौबत आई हो. यात्रा में हर जगह उन्हें भोजन-प्रसादी मिल जाती है, नर्मदा भक्त रूकने की व्यवस्था भी कर देते हैं, रास्ता भी बता देते हैं.

Last Updated : Jan 27, 2023, 12:41 PM IST
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