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भोलेनाथ का अनोखा मंदिर, यहां सिंदूर से होता है अभिषेक - mp news

भगवान भोलेनाथ का एक अनोखा मंदिर है, यहां श्रद्धालु भगवान भोलेनाथ पर सिंदूर चढ़ाते है, इसलिए ये मंदिर तिलक सिंदूर नाम से प्रसिद्ध है.

भगवान भोलेनाथ का यहां होता है सिंदूर से अभिषेक
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Published : Jul 22, 2019, 7:30 PM IST

होशंगाबाद। इटारसी शहर से 15 किलोमीटर दूर भगवान भोलेनाथ का प्रसिद्ध शिवालय तिलक सिंदूर है. इसका पौराणिक और धार्मिक महत्व है. यह एकमात्र शिवलिंग है यहां पर भोलेनाथ का सिंदूर चढ़ाया जाता है इसलिए ये मंदिर तिलकसिंदूर मंदिर के नाम से मशहूर है.

भगवान भोलेनाथ का यहां होता है सिंदूर से अभिषेक

दरअसल इस मंदिर का संबंध गौड़ जनजाति से है और आदिवासी पूजा अर्चना के दौरान सिंदूर का उपयोग करते हैं. बताया जाता हैं कि सतपुड़ा की पहाड़ियों पर पचमढ़ी से टिमरनी के बीच गौंड़ राजाओं का राज्य था. इन राजाओं ने ही तिलक सिंदूर में शिवालय की स्थापना की थी. तिलक सिंदूर में साधना कर रहे लाल बाबा ने बताया कि तिलकसिंदूर में पहाड़ी पर शिवालय है और सामने हंसगंगा नदी है. हंसगंगा नदी के पार श्मशान है. इस श्मशान में आसपास बसे करीब 15 गांवों के लोग दाह संस्कार करते हैं. शिवालय के आसपास श्मशान होना एक खास महत्व रखता है.

सावन मास में यहां भक्तों का ताता लगा रहता है. यहां पर दूर- दूर से भगवान भोलेनाथ के दर्शन करने आते हैं और उनकी मनोकामना पूरी होती है. यहां पर फिल्म कलाकार गोविंदा से लेकर कई राजनेता बीच संवाद भोलेनाथ तो हाजिरी लगाने आते हैं.

यह है मान्यता
मान्यता है कि मंदिर के पास की गुफा से एक सुरंग पचमढ़ी के निकट जम्बूद्वीप गुफा तक जाती है. भस्मासुर के स्पर्श से बचने के लिए भगवान शंकर यहां से भागे थे और पचमढ़ी के पास निकले थे. यहां पहुंचने वाले लोग इस गुफा के दर्शन भी करते हैं.

होशंगाबाद। इटारसी शहर से 15 किलोमीटर दूर भगवान भोलेनाथ का प्रसिद्ध शिवालय तिलक सिंदूर है. इसका पौराणिक और धार्मिक महत्व है. यह एकमात्र शिवलिंग है यहां पर भोलेनाथ का सिंदूर चढ़ाया जाता है इसलिए ये मंदिर तिलकसिंदूर मंदिर के नाम से मशहूर है.

भगवान भोलेनाथ का यहां होता है सिंदूर से अभिषेक

दरअसल इस मंदिर का संबंध गौड़ जनजाति से है और आदिवासी पूजा अर्चना के दौरान सिंदूर का उपयोग करते हैं. बताया जाता हैं कि सतपुड़ा की पहाड़ियों पर पचमढ़ी से टिमरनी के बीच गौंड़ राजाओं का राज्य था. इन राजाओं ने ही तिलक सिंदूर में शिवालय की स्थापना की थी. तिलक सिंदूर में साधना कर रहे लाल बाबा ने बताया कि तिलकसिंदूर में पहाड़ी पर शिवालय है और सामने हंसगंगा नदी है. हंसगंगा नदी के पार श्मशान है. इस श्मशान में आसपास बसे करीब 15 गांवों के लोग दाह संस्कार करते हैं. शिवालय के आसपास श्मशान होना एक खास महत्व रखता है.

सावन मास में यहां भक्तों का ताता लगा रहता है. यहां पर दूर- दूर से भगवान भोलेनाथ के दर्शन करने आते हैं और उनकी मनोकामना पूरी होती है. यहां पर फिल्म कलाकार गोविंदा से लेकर कई राजनेता बीच संवाद भोलेनाथ तो हाजिरी लगाने आते हैं.

यह है मान्यता
मान्यता है कि मंदिर के पास की गुफा से एक सुरंग पचमढ़ी के निकट जम्बूद्वीप गुफा तक जाती है. भस्मासुर के स्पर्श से बचने के लिए भगवान शंकर यहां से भागे थे और पचमढ़ी के पास निकले थे. यहां पहुंचने वाले लोग इस गुफा के दर्शन भी करते हैं.

Intro:होशंगाबाद। इटारसी शहर से 15 किलोमीटर दूर भगवान भोलेनाथ का प्रसिद्ध शिवालय तिलक सिंदूर है। इसका पौराणिक और धार्मिक महत्व है। यह एकमात्र शिवलिंग है जहाँ पर भोलेनाथ का सिंदूर चढाय़ा जाता है इसलिए इनको तिलकसिंदूर कहते हैं। दरअसल इस मंदिर का संबंध गौड़ जनजाति से है और आदिवासी पूजा अर्चना के दौरान सिंदूर का उपयोग करते हैं। तिलक सिंदूर आदिवासियों का धार्मिक है यह इस बात को साबित करता है। बताया जाता हैं कि
सतपुड़ा की पहाडिय़ों पर पचमढ़ी से टिमरनी के बीच गौंड़ राजाओं का राज्य था। इन राजाओं ने ही तिलक सिंदूर में शिवालय की स्थापना की थी। गौंड़ जनजाति बड़े देव को मानते हैं इसलिए तिलकसिंदूर में भगवान शिव को बड़े देव का कहा जाता है। तिलक सिंदूर में साधना कर रहे लाल बाबा ने बताया कि तिलकसिंदूर में पहाड़ी पर शिवालय है और सामने हंसगंगा नदी है। हंसगंगा नदी के पार श्मशान है। इस श्मशान में आसपास बसे करीब 15 गांवों के लोग दाह संस्कार करते हैं। शिवालय के आसपास श्मशान होना एक खास महत्व रखता है।
सावन मास में यहां भक्तों का ताता लगा रहता है। यहां पर दूर-दूर से भगवान भोलेनाथ के दर्शन करने लोग आते हैं और उनकी मनोकामना की पूरी होती है। यहां पर फिल्म कलाकार गोविंदा से लेकर कई राजनेता बीच संवाद भोलेनाथ तो हाजिरी लगाने आते।
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लालबाबा तिलक सिंदूर मंदिरBody:दरअसल इस मंदिर का संबंध गौड़ जनजाति से है और आदिवासी पूजा अर्चना के दौरान सिंदूर का उपयोग करते हैं। तिलक सिंदूर आदिवासियों का धार्मिक है यह इस बात को साबित करता है। बताया जाता हैं कि
सतपुड़ा की पहाडिय़ों पर पचमढ़ी से टिमरनी के बीच गौंड़ राजाओं का राज्य था। इन राजाओं ने ही तिलक सिंदूर में शिवालय की स्थापना की थी। गौंड़ जनजाति बड़े देव को मानते हैं इसलिए तिलकसिंदूर में भगवान शिव को बड़े देव का कहा जाता है। तिलक सिंदूर में साधना कर रहे लाल बाबा ने बताया कि तिलकसिंदूर में पहाड़ी पर शिवालय है और सामने हंसगंगा नदी है। हंसगंगा नदी के पार श्मशान है। इस श्मशान में आसपास बसे करीब 15 गांवों के लोग दाह संस्कार करते हैं। शिवालय के आसपास श्मशान होना एक खास महत्व रखता है।
सावन मास में यहां भक्तों का ताता लगा रहता है। यहां पर दूर-दूर से भगवान भोलेनाथ के दर्शन करने लोग आते हैं और उनकी मनोकामना की पूरी होती है। यहां पर फिल्म कलाकार गोविंदा से लेकर कई राजनेता बीच संवाद भोलेनाथ तो हाजिरी लगाने आते।
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लालबाबा तिलक सिंदूर मंदिरConclusion:यह है मान्यता
मान्यता है कि मंदिर के पास की गुफा से एक सुरंग पचमढ़ी के निकट जम्बूद्वीप गुफा तक जाती है। भस्मासुर के स्पर्श से बचने के लिए भगवान शंकर यहां से भागे थे और पचमढ़ी के पास निकले थे। यहां पहुंचने वाले लोग इस गुफा के दर्शन भी करते हैं।
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