ग्वालियर। जब पूरा देश कोरोना से लड़ रहा है, तब मध्यप्रदेश कोरोना के साथ ही टिड्डी दल के आतंक से भी लड़ रहा है, पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान से राजस्थान के रास्ते मध्यप्रदेश में दाखिल हुआ टिड्डी दल आजकल आतंक का पर्याय बन गया है. इस आतंक के खात्मे के लिए अलग टीम बनाई गई है, जबकि ग्रामीणों को भी पारंपरिक तरीके से टिड्डी दल को भगाने की समझाइश दी जा रही है. लॉकडाउन में हो रहे नुकसान के बीच अब टिड्डी दल किसानों की कमर तोड़ रहा है. राजमाता विजयाराजे कृषि विश्वविद्यालय में संचार विस्तार सेवाएं के डायरेक्टर एसएन उपाध्याय ने ईटीवी भारत से बात की.
सवाल- टिड्डी दल की शुरूआत कहां से हुई है?
जवाब- टिड्डी की उत्पत्ति पूर्वी अफ्रीकन और पूर्वी अरेबियन देशों से हुई है. इन देशों में पिछले साल ज्यादा बारिश होने और वनस्पति होने से टिड्डियों का प्रजनन हुआ और उनके अंडों से लाखों-करोड़ों टिड्डी निकले और व्यस्क होकर बड़ी संख्या में इकठ्ठा होकर ये दल दूसरे देशों पर हमला करने के लिए निकल पड़े. इस तरह ये दल पाकिस्तान के रास्ते भारत में दाखिल हुआ और राजस्थान मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में टिड्डी दलों ने आतंक मचाया. इनका दल काफी बड़ा होता है, ये सैकड़ों स्क्वायर किलोमीटर में चलते हैं, लिहाजा इस तरह के 8-10 दल भारत में प्रवेश कर गए हैं. मध्यप्रदेश में ये अच्छी बात है कि फसलों की कटाई हो चुकी है, बस उन्हीं किसानों को नुकसान हुआ, जिसने जायज फसल लगाई है, जैसे (हरे मूंग, बगीचों की खेती, संतरा, सीताफल) इन फसलों की पत्तियां टिड्डी दल पलक झपकते ही चट कर जाते हैं.
सवाल- मध्यप्रदेश के 27 कृषि विज्ञान केंद्रों के वैज्ञानिकों को क्या निर्देश दिए गए?
जवाब- 27 कृषि विज्ञान केंद्र से जुड़े कई किसान हैं, जिनकी संख्या 13-14 लाख है. इन सभी किसानों को मैसेज, व्हॉटसएप किए गए हैं, साथ ही उन्हें अलर्ट किया गया है. जहां टिड्डी दल पहुंचता है, वहां सुविधाएं उपलब्ध होने पर उसका इस्तेमाल किया जा रहा है, (हूटर, फायर ब्रिगेड, बुलेट की आवाज) जहां सुविधाएं नहीं है, वहां किसानों को उनकी सीमा पर थाली, ड्रम, बैंड बजाकर उसकी आवाज से टिड्डी दल को भगाते हैं.
सवाल- भारत में टिड्डी दल कितने साल बाद पहुंचा है?
जवाब- भारत में ये दल करीब 27 साल बाद आया है, ये 1993 में भारत आया था.
सवाल- अब किसानों के लिए क्या समस्याएं रहेंगी.
जवाब- विदेशों से आने वाले झुंड में ज्यादातर मादा हैं. वो अपने अंडे वहीं दे देती हैं, लेकिन इनकी खासियत ये है कि रेतीली भूमि पर पेंसिल नुमा 2-3 इंच गहरा छेद बनाती हैं, फिर उसमें मादा टिड्डी अंडा देती है. ये छेद ऊपर से दिखता भी नहीं है, इन अंडों को फूटने में तीन से चार हफ्ते लगते हैं, तब तक मानसून आ जाता है. जैसे ही बारिश होगी नमी आएगी और इन अंडों की फूटने की अवस्था हो जाएगी. उसमें शिशु निकलेंगे, जिसे निम्प कहते हैं. वे खड़ी फसलों की पत्तियां खा जाते हैं. इससे नुकसान हो सकता है, लेकिन जब मादा टिड्डी गर्मियों में अंडे देती है तो उसको उसी समय नष्ट कर दें.
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