ग्वालियर। हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने प्रदेश सरकार और उसके अधिकारियों के प्रति नाराजगी जाहिर की है. हाईकोर्ट ने यह नाराजगी शहर से बहने वाली स्वर्णरेखा नदी के रख-रखाव को लेकर जताई है, जो वर्तमान में नाले में तब्दील हो चुकी है. हाईकोर्ट ने कहा है कि एक सप्ताह के भीतर न्याय मित्र और सरकार इस बारे में अपनी रिपोर्ट पेश करें और बताएं कि वह स्वर्णरेखा नदी को पुनर्जीवित करने के लिए क्या कदम उठा रहे हैं.
हाई कोर्ट ने जताई चिंता: हाई कोर्ट ने चिंता जताई की शहरों की समृद्धि नदियों से जुड़ी रहती है, लेकिन ग्वालियर में स्वर्ण रेखा नदी को लगभग भुला दिया गया है, जिससे यह नाले में तब्दील हो चुकी है. दरअसल, अधिवक्ता विश्वजीत रतौनिया ने ग्वालियर में बढ़ती पेयजल की समस्या और गिरते भूजल स्तर को लेकर एक जनहित याचिका हाईकोर्ट में दायर की है, जिसमें कहा गया है कि सरकार की अनदेखी के चलते शहर की स्वर्णरेखा नदी बदहाल स्थिति में पहुंच चुकी है.
स्वर्णरेखा नदी पर इतने हुए खर्च: गौरतलब है कि नदी में पानी भरने के लिए पिछले दो दशक में करीब 100 करोड़ से ज्यादा रुपए खर्च किए जा चुके हैं. इससे स्वर्णरेखा को पक्का कर दिया गया, लेकिन इसमें गिरने वाले सीवर के पानी को नहीं रोका जा सका है. इसके साथ ही ग्वालियर का भूजल स्तर तेजी से नीचे तक चला गया. वाटर रिस्ट्रक्चरिंग योजना के तहत 42 करोड़ का टेंडर हुआ था. इसके बाद 8 करोड़ रुपए निर्माण के लिए अतिरिक्त खर्च किए गए. 2013 में जल संसाधन विभाग ने परियोजना को नगर निगम में हस्तांतरण कर दिया, लेकिन इसके बाद भी इसकी सूरत नहीं बदली.
कोर्ट ने काशी और साबरमती नदी का दिया हवाला: हाई कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि "अधिकारी अपनी आदत को सुधारें अन्यथा कोर्ट को उन्हें सुधारना भी आता है. हाई कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि जिस शहर में नदी बहती है वहां समृद्धि आती है, लेकिन ग्वालियर में नदी को ही खत्म कर दिया गया." कोर्ट ने एक सप्ताह के भीतर न्याय मित्र और सरकार से जवाब मांगा है. अब इस मामले पर एक मई को सुनवाई होगी. कोर्ट ने काशी विश्वनाथ और साबरमती नदी का भी हवाला दिया कि कैसे सरकारी प्रयासों से नदियों को पुनर्जीवित और साफ किया गया.