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कांग्रेस की सत्ता वापसी में अहम भूमिका निभाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया का कम हो रहा है ग्लैमर ! - ग्वालियर

कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया की लोकप्रियता बढ़ रही है जबकी उनके वोटों में लगातार कमी आती जा रही है. कांग्रेस की सत्ता वापसी में जहां उनकी अहम भूमिका मानी जा रही है वहीं उनके ही लोकसभा क्षेत्र में जनता का उनसे मोहभंग होता नजर आ रहा है.

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Published : Feb 14, 2019, 12:41 PM IST

ग्वालियर। कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया स्टार प्रचारक हैं. विधानसभा चुनाव में ग्वालियर-चंबल अंचल में कांग्रेस की 33 साल पुरानी सफलता को दोहराने में सिंधिया का अहम रोल माना जा रहा है, लेकिन उनके ही लोकसभा क्षेत्र में जनता का उनसे मोहभंग होता नजर आ रहा है.

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बीजेपी प्रवक्ता आशीष अग्रवाल
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भले ही सिंधिया लोकप्रियता के लिहाज से कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ रहे हैं, लेकिन वोटों का गणित कहता है कि अपने लोकसभा क्षेत्र में उनका जादू कम हो रहा है. आखिर इतनी कामयाबी के बाद भला सिंधिया का ग्लैमर कैसे कम हो रहा है, देखिए ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट.


ज्योतिरादित्य सिंधिया का परिचय


ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के कद्दावर नेता माधवराव सिंधिया के बेटे हैं. उन्होंने 1993 में हावर्ड यूनिवर्सिटी से इकोनॉमी की डिग्री हासिल की थी. इसके अलावा सिंधिया ने स्टेनफोर्ड ग्रेजुएट स्कूल ऑफ बिजनेस से एमबीए की डिग्री भी हासिल की है. साल 2001 में उनके पिता की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी, जिसके बाद वह भारत लौट आए और राजनीति में सक्रिय हो गए.


राजनीतिक करियर की शुरुआत


साल 2002 में ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने पिता की गुना सीट से पहली बार चुनाव लड़कर लोकसभा पहुंचे. तब से अब तक सिंधिया गुना लोकसभा सीट से 4 बार जीत हासिल कर चुके हैं. लेकिन आंकड़े कुछ और ही कहते हैं. सिंधिया की लोकप्रियता बढ़ने के साथ-साथ उनके वोटों में कमी आती जा रही है.
2002 उपचुनाव - सिंधिया ने बीजेपी के देशराज यादव को 4 लाख 50 हजार वोटों से हराया था.
2009 लोकसभा चुनाव - सिंधिया ने बीजेपी के नरोत्तम मिश्रा को दो लाख 50 हजार वोटों से हराया था.
2014 लोकसभा चुनाव - सिंधिया ने बीजेपी के जयभान सिंह पवैया को एक लाख 20 हजार वोटों से हराया था.
2018 विधानसभा चुनाव - सिंधिया के लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस के 8 विधायकों को बीजेपी के 8 विधायकों से 16000 वोट कम मिले.
2018 विधानसभा उपचुनाव - कांग्रेस के 2017 और 18 उपचुनाव में जीती अटेर और कोलारस सीट को गंवा दिया है.

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बीजेपी प्रवक्ता आशीष अग्रवाल
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बीजेपी प्रवक्ता आशीष अग्रवाल कहते हैं कि अगर आंकड़ों पर गौर करें, तो बीते 10 सालों में ज्योतिरादित्य सिंधिया को मिलने वाले वोटों में कमी आती जा रही है. 2002 में 4 लाख 50 हजार वोटों से जीतने वाले सिंधिया को 2009 लोकसभा चुनाव में 2 लाख 50 हजार वोटों से जीत मिली थी. जीत तो मिली, लेकिन वोट का आंकड़ा घटता गया. यह आंकड़ा एक लाख 20 हजार पर आ गया.


2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को पटखनी देकर कांग्रेस सत्ता में वापस आई है. कांग्रेस की इस कामयाबी में ज्योतिरादित्य सिंधिया का अहम रोल माना गया. उपचुनाव में सिंधिया की मेहनत से जीती गई कोलारस के साथ भिंड और अटेर की सीट भी कांग्रेस के हाथ से खिसक गई. कोलारस के कांग्रेस प्रत्याशी ने सिंधिया के लिए सीट छोड़ने का दावा किया था, लेकिन कांग्रेस प्रत्याशी इस सीट को ही हार बैठे.


इन आंकड़ों के आधार पर बीजेपी ने दावा किया है कि सिंधिया का ग्लैमर खत्म हो गया है, लिहाजा 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में सिंधिया हार जाएंगे.

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विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने ग्वालियर चंबल अंचल में 34 सीटों में से 26 सीटों पर कब्जा जमाकर 33 साल पुराने रिकॉर्ड की बराबरी की है. कांग्रेसी मानते हैं कि भले ही बीजेपी को सिंधिया के लोकसभा क्षेत्र में औसत वोट के लिए आज से थोड़ी बढ़त मिली है, विधानसभा में प्रत्याशियों की व्यक्तिगत छवि से भी वोट थोड़े कम मिले हैं, लेकिन लोकसभा में मुद्दे अलग होंगे और सिंधिया खुद उम्मीदवार रहेंगे तो कांग्रेस के वोटों का आंकड़ा भी बढ़ेगा.


वहीं कांग्रेस प्रवक्ता आरपी सिंह का कहना है कि साल 2019 में सिंधिया के नेतृत्व में ग्वालियर चंबल अंचल में कांग्रेस और बेहतर प्रदर्शन करेगी. ग्वालियर चंबल अंचल में करारी हार के बाद बीजेपी वापसी के लिए बेचैन है, लिहाजा सिंधिया के लोकसभा क्षेत्र की विधानसभा क्षेत्रों में मिली बढ़त को आधार बनाकर बीजेपी मनोवैज्ञानिक लाभ लेने में जुटी है. इन्हीं आंकड़ों को आधार मानकर बीजेपी लोकसभा में बेहतर प्रदर्शन करने का दावा कर रही है.

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ग्वालियर। कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया स्टार प्रचारक हैं. विधानसभा चुनाव में ग्वालियर-चंबल अंचल में कांग्रेस की 33 साल पुरानी सफलता को दोहराने में सिंधिया का अहम रोल माना जा रहा है, लेकिन उनके ही लोकसभा क्षेत्र में जनता का उनसे मोहभंग होता नजर आ रहा है.

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बीजेपी प्रवक्ता आशीष अग्रवाल
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भले ही सिंधिया लोकप्रियता के लिहाज से कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ रहे हैं, लेकिन वोटों का गणित कहता है कि अपने लोकसभा क्षेत्र में उनका जादू कम हो रहा है. आखिर इतनी कामयाबी के बाद भला सिंधिया का ग्लैमर कैसे कम हो रहा है, देखिए ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट.


ज्योतिरादित्य सिंधिया का परिचय


ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के कद्दावर नेता माधवराव सिंधिया के बेटे हैं. उन्होंने 1993 में हावर्ड यूनिवर्सिटी से इकोनॉमी की डिग्री हासिल की थी. इसके अलावा सिंधिया ने स्टेनफोर्ड ग्रेजुएट स्कूल ऑफ बिजनेस से एमबीए की डिग्री भी हासिल की है. साल 2001 में उनके पिता की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी, जिसके बाद वह भारत लौट आए और राजनीति में सक्रिय हो गए.


राजनीतिक करियर की शुरुआत


साल 2002 में ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने पिता की गुना सीट से पहली बार चुनाव लड़कर लोकसभा पहुंचे. तब से अब तक सिंधिया गुना लोकसभा सीट से 4 बार जीत हासिल कर चुके हैं. लेकिन आंकड़े कुछ और ही कहते हैं. सिंधिया की लोकप्रियता बढ़ने के साथ-साथ उनके वोटों में कमी आती जा रही है.
2002 उपचुनाव - सिंधिया ने बीजेपी के देशराज यादव को 4 लाख 50 हजार वोटों से हराया था.
2009 लोकसभा चुनाव - सिंधिया ने बीजेपी के नरोत्तम मिश्रा को दो लाख 50 हजार वोटों से हराया था.
2014 लोकसभा चुनाव - सिंधिया ने बीजेपी के जयभान सिंह पवैया को एक लाख 20 हजार वोटों से हराया था.
2018 विधानसभा चुनाव - सिंधिया के लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस के 8 विधायकों को बीजेपी के 8 विधायकों से 16000 वोट कम मिले.
2018 विधानसभा उपचुनाव - कांग्रेस के 2017 और 18 उपचुनाव में जीती अटेर और कोलारस सीट को गंवा दिया है.

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बीजेपी प्रवक्ता आशीष अग्रवाल कहते हैं कि अगर आंकड़ों पर गौर करें, तो बीते 10 सालों में ज्योतिरादित्य सिंधिया को मिलने वाले वोटों में कमी आती जा रही है. 2002 में 4 लाख 50 हजार वोटों से जीतने वाले सिंधिया को 2009 लोकसभा चुनाव में 2 लाख 50 हजार वोटों से जीत मिली थी. जीत तो मिली, लेकिन वोट का आंकड़ा घटता गया. यह आंकड़ा एक लाख 20 हजार पर आ गया.


2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को पटखनी देकर कांग्रेस सत्ता में वापस आई है. कांग्रेस की इस कामयाबी में ज्योतिरादित्य सिंधिया का अहम रोल माना गया. उपचुनाव में सिंधिया की मेहनत से जीती गई कोलारस के साथ भिंड और अटेर की सीट भी कांग्रेस के हाथ से खिसक गई. कोलारस के कांग्रेस प्रत्याशी ने सिंधिया के लिए सीट छोड़ने का दावा किया था, लेकिन कांग्रेस प्रत्याशी इस सीट को ही हार बैठे.


इन आंकड़ों के आधार पर बीजेपी ने दावा किया है कि सिंधिया का ग्लैमर खत्म हो गया है, लिहाजा 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में सिंधिया हार जाएंगे.

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विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने ग्वालियर चंबल अंचल में 34 सीटों में से 26 सीटों पर कब्जा जमाकर 33 साल पुराने रिकॉर्ड की बराबरी की है. कांग्रेसी मानते हैं कि भले ही बीजेपी को सिंधिया के लोकसभा क्षेत्र में औसत वोट के लिए आज से थोड़ी बढ़त मिली है, विधानसभा में प्रत्याशियों की व्यक्तिगत छवि से भी वोट थोड़े कम मिले हैं, लेकिन लोकसभा में मुद्दे अलग होंगे और सिंधिया खुद उम्मीदवार रहेंगे तो कांग्रेस के वोटों का आंकड़ा भी बढ़ेगा.


वहीं कांग्रेस प्रवक्ता आरपी सिंह का कहना है कि साल 2019 में सिंधिया के नेतृत्व में ग्वालियर चंबल अंचल में कांग्रेस और बेहतर प्रदर्शन करेगी. ग्वालियर चंबल अंचल में करारी हार के बाद बीजेपी वापसी के लिए बेचैन है, लिहाजा सिंधिया के लोकसभा क्षेत्र की विधानसभा क्षेत्रों में मिली बढ़त को आधार बनाकर बीजेपी मनोवैज्ञानिक लाभ लेने में जुटी है. इन्हीं आंकड़ों को आधार मानकर बीजेपी लोकसभा में बेहतर प्रदर्शन करने का दावा कर रही है.

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Intro:ग्वालियर- भले ही ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के लिए स्टार प्रचारक है विधानसभा चुनाव में ग्वालियर चंबल अंचल में कांग्रेस की 33 साल पुरानी सफलता दौहराने में सिंधिया का अहम रोल माना जा रहा है सिंधिया अंचल ही नहीं प्रदेश में लोकप्रिय नेता के रूप में जाने जाए हैं लेकिन अपने लोकसभा क्षेत्र में सिंधिया का जादू लगातार कम होता जा रहा है भले ही सिंधिया लोकप्रियता के लिहाज से कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ रहे हैं लेकिन वोटों का गणित तो कहता है कि अपने लोकसभा क्षेत्र में उनका जादू उतर रहा है आखिर इतनी कामयाबी के बाद भला सिंधिया का ग्लैमर कैसे कम हो रहा है । देखिए ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट ..........


Body:ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के कद्दावर नेता माधवराव सिंधिया के बेटे हैं। उन्होंने साल 1993 में हावर्ड यूनिवर्सिटी से इकोनामी की डिग्री हासिल की थी। इसके अलावा सिंधिया ने स्टैनफोर्ड ग्रैजुएट स्कूल ऑफ बिजनेस से एमबीए की डिग्री भी हासिल की है । साल 2001 में एक दुर्घटना में पिता माधव सिंधिया की मृत्यु होने के बाद भारत लौट आए और राजनीति में सक्रिय हो गए। साल 2002 में पिता की सीट गुना से पहली बार चुनाव सिंधिया लोकसभा पहुंचे । तब से अब तक सिंधिया ने गुना लोकसभा सीट पर 4 बार विजय हासिल की है। लेकिन अब ज्योतिरादित्य सिंधिया गुना क्षेत्र में जादू लगातार कम हो रहा है। जरा आंकड़ों पर गौर करें तो इस तरीके के नतीजे सामने आ रहे हैं ..... 2002 उपचुनाव - सिंधिया ने बीजेपी के देशराज यादव को 4 लाख 50 हजार वोटों से हराया । 2009 लोकसभा चुनाव - सिंधिया ने बीजेपी के नरोत्तम मिश्रा को दो लाख 50 हजार वोटों से हराया । 2014 लोकसभा चुनाव - सिंधिया ने बीजेपी के जय भान सिंह पवैया को एक लाख 20 हजार वोटों से हराया । 2018 विधानसभा चुनाव - सिंधिया के लोक सभा क्षेत्र में कांग्रेस के 8 विधायकों को बीजेपी के 8 विधायकों से 16000 वोट कम मिले । 2018 विधानसभा उपचुनाव - कांग्रेस के 2017 और 18 उप चुनाव में जीती गई सीट अटेर और कोलारस सीट हुई गवा दी है ।


Conclusion:अगर आंकड़ों पर गौर करें तो बीते 10 साल के अरसे में ज्योतिरादित्य सिंधिया की लोकप्रियता गुना लोकसभा क्षेत्र में वोटों के लिए आज से कम हुई है। 2009 के लोकसभा चुनाव में ज्योतिराज सिंधिया ने बीजेपी के कद्दावर नेता नरोत्तम मिश्रा को ढाई लाख वोटों से शिकस्त दी। 2014 के लोकसभा चुनाव में सिंधिया ने बीजेपी के जय भान सिंह पवैया को हराया । लेकिन इस बार सिंधिया की जीत का आंकड़ा एक लाख 20 हजार आ गया। 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को पटखनी देकर कांग्रेस ने सरकार बनाई है । 15 साल में वनवास भोग गई। कांग्रेस को सत्ता तक पहुंचाने में ज्योतिरादित्य सिंधिया का अहम रोल माना गया। खुद सिंधिया के लोकसभा क्षेत्र की 8 में से 5 सीटों पर कांग्रेस की जीत दर्ज की है। लेकिन वोटों के लिहाज से 8 विधानसभा क्षेत्र के बीजेपी प्रत्याशियों को कुल 5 लाख 16 हजार 796 वोट मिले है । वहीं कांग्रेस के 8 प्रत्याशियों को कुल 5 00297 वोट मिले है वोटों के लिहाज से गुना लोकसभा में सिंधिया को 16499 वोटों से हार का सामना करना पड़ा है । साथ ही उपचुनाव में सिंधिया की मेहनत से जीती गई कोलारस के साथ ही भिंड की अटेर सीट भी कांग्रेस के हाथ से खिसक गई । कोलारस के कांग्रेसी प्रत्याशी ने जो नतीजों के पहले बाकायदा सिंधिया के लिए सीट छोड़ने का दावा किया था । लेकिन कांग्रेस प्रत्याशी इस सीट को हार बैठे। इन आंकड़ों के आधार पर बीजेपी ने दावा किया है कि सिंधिया का ग्लैमर खत्म हो गया है लिहाजा 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में सिंधिया पूरी तरह से हार जाएंगे । बाईट- आशीष अग्रवाल , बीजेपी प्रवक्ता बीओ - बोटो के आंकड़ों का आधार बनाकर बीजेपी सिंधिया को कमजोर होने का दावा कर रही है। लेकिन कांग्रेस सिंधिया को कामयाब नेता मानती है । विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने ग्वालियर चंबल अंचल में 34 सीटों में से 26 सीटों पर कब्जा जमाकर 33 साल पुराने रिकॉर्ड की बराबरी की है। कांग्रेसी मानते हैं कि भले ही बीजेपी को सिंधिया के लोकसभा में औसत वोट के लिए आज से थोड़ी बढ़त मिली है। विधानसभा में प्रत्याशियों की व्यक्तिगत छवि से भी वो थोड़े कम मिले हैं। लेकिन लोकसभा में मुद्दे अलग होंगे और सिंधिया खुद उम्मीदवार रहेंगे तो कांग्रेस के वोटों का आंकड़ा भी बढ़ेगा । कांग्रेसी नेताओं का दावा है कि साल 2019 में सिंधिया की आवाज में ग्वालियर चंबल अंचल में कांग्रेसी और बेहतर प्रदर्शन करेगी । बीओ - ग्वालियर चंबल अंचल में करारी हार के बाद बीजेपी वापसी के लिए बेचैन है लिहाजा सिंधिया के लोकसभा क्षेत्र की विधानसभा क्षेत्रों में मिली बढ़त को आधार बनाकर बीजेपी मनोवैज्ञानिक लाभ लेने में जुटी है । इन्ही आंकड़ों के आधार मानकर बीजेपी लोकसभा में बेहतर प्रदर्शन दोहराने का दावा कर रही है। हालांकि यह सही है कि बोटो के लिहाज से सिंधिया की लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस को 10 साल से घाटा हो रहा है लेकिन यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि सिंधिया का जादू चलता है या फिर बीजेपी का दावा सही होता है ।
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