धार। देश के दिल यानी मध्यप्रदेश से अयोध्या के राजा राम का गहरा नाता है. अपनी 14 साल की वनवास यात्रा के दौरान प्रभुराम मध्यप्रदेश से होकर गुजरे. इसके प्रमाण मध्यप्रदेश के अलग-अलग शहरों में भी मिलते हैं, जिनका जिक्र रामायण के अलावा दूसरे पौराणिक ग्रंथों में भी मिलता है.
एक तरफ जहां विदिशा में चरणों के निशान हैं, तो चित्रकूट के कण-कण में राम हैं. ओरछा में भगवान बाल रूप में विराजमान हैं, तो होशंगाबाद में भी उनके आने के कई प्रमाण हैं. धार की धरा पर भी राजाराम के चरण पड़े थे. यही वजह है कि मांडव में मौजूद भगवान राम की अद्भुत प्रतिमा आस्था का केंद्र है.
मध्यप्रदेश के खजानों में बेशकीमती मोती की तरह मौजूद मांडू में राजाराम चतुर्भुज अवतार में विराजे हैं. किवदंती है कि श्रीराम का ऐसा रूप इस मंदिर के अलावा विश्व में कहीं और देखने नहीं मिलता. माना जाता है कि यहां पहुंचने भर से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होने के अलवा मोक्ष की प्राप्ति भी होती है.
महंत रघुनाथ को सपने में दिए थे दर्शन
मंदिर के पुजारी बताते हैं कि श्री श्री 1008 महंत रघुनाथ जी महाराज को श्रीराम ने सपने में दर्शन दिए थे और बताया था कि मांडव की पूर्व दिशा में उनकी मूर्ति मौजूद है. इसके बाद मंहत रघुनाथ पुणे से धार पहुंचे और यहां की तत्कालीन महारानी शकुदाई पवार को स्वप्न से अवगत कराया. फिर जब उस रामजी के बताए स्थान पर खुदाई की गई, तो गुफा के अंदर एक चबूतरे पर राम की चतुर्भुजरुपी प्रतिमा रखी थी.
जंगल के बीच रुक गए थे हाथी
महारानी जब प्रतिमा की स्थापना के लिए धार रवाना हुईं, तो जंगल के बीचोंबीच इस स्थान पर हाथी रुक गए और आगे नहीं बढ़े. तभी रात में एक बार फिर श्रीराम ने महंत रघुनाथ जी महाराज को सपने में दर्शन दिए और कहा कि हम वनखंडी राम हैं और वन में मंगल करेंगे. जिसके बाद यहां चतुर्भुज रूपी राम की मांडू में स्थापना की गई.
रावण को इसी रूप में दिए थे दर्शन
ऐसा भी कहा जाता है कि रावण ने मृत्यु के पहले श्रीराम से नारायण रूप के दर्शन के लिए प्रार्थना की, जिसके बाद श्रीराम ने रावण को चतुर्भुज स्वरूप में दर्शन दिए. जिससे रावण के सभी कलंकों का नाश हुआ ओर उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई.
चतुर्भुज स्वरूप में विराजे श्रीराम के इस मंदिर के बारे में पुजारी तो सिर्फ यही कहते हैं कि
''देखी दुनिया सारी घूम आए चारों धाम, मांडव में चतुर्भुज अवतार में विराजे श्रीराम.
करी थी तपस्या महंत जी ने भारी, दर्शन देते थे जिनको अवध बिहारी''