छतरपुर। आपने कभी भगवान श्रीराम को किसी मंदिर में अकेले विराजे देखा है, शायद नहीं देखा होगा, अमूमन प्रभुराम अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ ही दिखते हैं, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे मंदिर से रूबरू करवा रहे हैं, जो छतरपुर की सबसे बड़ी पहाड़ी पर मौजूद होने के साथ- साथ अपनी अलग पहचान रखता है. कहा जाता है कि छतरपुर के अलावा विश्व में ऐसा दूसरा मंदिर नहीं है, जहां श्रीराम अकेले विराजमान हों. यही वजह है कि आजानुभुज के नाम से बिख्यात मंदिर हजारों सालों से लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है.
रामायण से जुड़ी है मंदिर की कहानी
मंदिर की कहानी सीधे तौर पर रामायण से जुड़ी हुई है. कहा जाता है कि खर और दूषण नाम के दो राक्षस अपने साथ हजारों राक्षसों की सेना लेकर चलते थे और ऋषि-मुनियों को मार कर खा जाते थे. भगवान श्रीराम ने यह देखते हुए उसी क्षण अपने दोनों हाथों को ऊपर कर प्रतिज्ञा की कि वह इन राक्षसों का वध जरूर करेंगे. राम के इसी अवतार को लोग आजानुभुज के नाम से जानते हैं.
खर और दूषण को किया था वध
किवदंती है कि अपने वनवास के दौरान जब भगवान श्रीराम यहां से गुजर रहे थे, तभी उन्होंने खर और दूषण नाम के दोनों राक्षसों का वध किया था. यही एक ऐसा क्षण था, जब श्रीराम अकेले हुए, यही वजह है कि मंदिर में भी श्रीराम अकेले ही विराजे हैं.
4 महंत कर चुके हैं प्रभु राम की सेवा
मंदिर की स्थापना सन 14 40 में हुई थी. इससे पहले महंत हरदेवदास जी को श्रीराम ने स्वप्न में दर्शन दिए थे और कहा था कि जिनका तुम भजन करते हो, वो इस पहाड़ी पर मौजूद हैं. जिसके बाद महंत हरदेवदासजी श्रीराम की मूर्ति को निकालकर लाए और यहां स्थापित कर दिया, तब से लेकर अब तक इस मंदिर में 14 महंत प्रभु राम की सेवा कर चुके हैं.
यहीं से शुरु होता है जलसा
पहाड़ी पर होने के बाद भी श्रीराम के दर्शन के लिए भक्त यहां पहुंचते हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं. हर साल भगवान श्रीराम के जन्मोत्सव पर होने वाला जलसा भी यहीं से शुरू होता है.