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इन ऐतिहासिक धरोहरों को ऑक्सीजन नहीं दे रहा पुरातत्व विभाग, जल्द मिट जायेगा अस्तित्व - बुराहानपुर की ऐतिहासिक धरोहरें

बुरहानपुर जिला ऐतिहासिक धरोहर के लिए जाना जाता है, जहां एक और मुमताज महल की यादों के लिए जाना गया है वहीं दूसरी ओर विश्व प्रसिद्ध कुंडी भंडारे को भी इसने अपनी आगोश में समा रखा है, केंद्रीय पुरातत्व विभाग और राज्य पुरातत्व विभाग वैसे तो शहर की ऐतिहासिक धरोहरों को संवारने व सहजने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करता है परंतु जब पर्यटक बड़ी मुश्किल से किसी तरह इन धरोहरों के निकट पर्यटक पहुंचता है, तो पुरातत्व विभाग द्वारा किए गए कार्य की पोल खुद-ब-खुद खुल जाती है.

बुरहानपुर
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Published : Jul 18, 2019, 2:32 PM IST

बुरहानपुर। कभी दक्षिण का द्वार कहा जाने वाला बुरहानपुर शहर अपनी खूबसूरत ऐतिहासिक धरोहरों के लिए देशभर में जाना जाता था. बुरहानपुर जहां मुमताज महल की खूबसूरत यादों को खुद में समेटे हुए है तो वहीं कुंडी भंडारे जैसी अद्भुत कला इसकी आगोश में समाए हुए हैं...कहने को तो केंद्रीय पुरातत्व विभाग और राज्य पुरातत्व विभाग शहर की ऐतिहासिक धरोहरों को संवारने और सहजने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करता है...लेकिन हकीकत ये है कि प्रशासन की अनदेखी के चलते बुरहानपुर की पहचान का अस्तित्व खतरें में है.

बुरहानपुर की ऐतिहासिक धरोहरों को सहेजने का काम नहीं कर पा रहा पुरातत्व विभाग

शहर में ऐसी कई धरोहर हैं जहां पहुंचना आम आदमी के बस की बात नहीं है...हकीकत ये है कि यहां तक पहुंचने के लिए सड़क तक नहीं है.... शहर से पांच किलोमीटर दूर स्थित आहुखाना के नाम से मशहूर इमारत जिसका निर्माण तीन-तीन मुगल शासकों ने करवाया था... पुरातत्व विभाग की अनदेखी के चलते जर्जर हो रही हैं...कुछ ऐसा ही हाल राजा जयसिंह की छतरी का भी है. जो अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है.

स्थानीय लोगों का कहना है कि पर्यटन विभाग की उदासीनता के चलते यह सभी ऐतिहासिक धरोहरों का अस्तित्व खतरे में है. बुरहानपुर की ऐतिहासिक इमारत अपना अस्तित्व खोने कि कगार पर हैं. ऐसे में पुरातत्व विभाग अगर इस ओर ध्यान नहीं दिया तो महज यह एक इतिहास बनकर ही रह जाएगी.

बुरहानपुर। कभी दक्षिण का द्वार कहा जाने वाला बुरहानपुर शहर अपनी खूबसूरत ऐतिहासिक धरोहरों के लिए देशभर में जाना जाता था. बुरहानपुर जहां मुमताज महल की खूबसूरत यादों को खुद में समेटे हुए है तो वहीं कुंडी भंडारे जैसी अद्भुत कला इसकी आगोश में समाए हुए हैं...कहने को तो केंद्रीय पुरातत्व विभाग और राज्य पुरातत्व विभाग शहर की ऐतिहासिक धरोहरों को संवारने और सहजने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करता है...लेकिन हकीकत ये है कि प्रशासन की अनदेखी के चलते बुरहानपुर की पहचान का अस्तित्व खतरें में है.

बुरहानपुर की ऐतिहासिक धरोहरों को सहेजने का काम नहीं कर पा रहा पुरातत्व विभाग

शहर में ऐसी कई धरोहर हैं जहां पहुंचना आम आदमी के बस की बात नहीं है...हकीकत ये है कि यहां तक पहुंचने के लिए सड़क तक नहीं है.... शहर से पांच किलोमीटर दूर स्थित आहुखाना के नाम से मशहूर इमारत जिसका निर्माण तीन-तीन मुगल शासकों ने करवाया था... पुरातत्व विभाग की अनदेखी के चलते जर्जर हो रही हैं...कुछ ऐसा ही हाल राजा जयसिंह की छतरी का भी है. जो अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है.

स्थानीय लोगों का कहना है कि पर्यटन विभाग की उदासीनता के चलते यह सभी ऐतिहासिक धरोहरों का अस्तित्व खतरे में है. बुरहानपुर की ऐतिहासिक इमारत अपना अस्तित्व खोने कि कगार पर हैं. ऐसे में पुरातत्व विभाग अगर इस ओर ध्यान नहीं दिया तो महज यह एक इतिहास बनकर ही रह जाएगी.

Intro:बुरहानपुर जिला ऐतिहासिक धरोहर के लिए जाना जाता है, जहां एक और मुमताज महल की यादों के लिए जाना गया है वहीं दूसरी ओर विश्व प्रसिद्ध कुंडी भंडारे को भी इसने अपनी आगोश में समा रखा है, केंद्रीय पुरातत्व विभाग और राज्य पुरातत्व विभाग वैसे तो शहर की ऐतिहासिक धरोहरों को संवारने व सहजने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करता है परंतु जब पर्यटक बड़ी मुश्किल से किसी तरह इन धरोहरों के निकट पर्यटक पहुंचता है, तो पुरातत्व विभाग द्वारा किए गए कार्य की पोल खुद-ब-खुद खुल जाती है।




Body:शहर में ऐसे अनेकों धरोहर है जहां तक पहुंच पाना आम आदमी के कदमों से अभी भी दूर है, ताजा मामला शहर से 5 कि.मी दूर ग्राम जयसिंहपुरा स्थित आहुखाना का है, जहां तीन मुगल बादशाहों ने अपने-अपने शासनकाल में इसका निर्माण कराया था, जिसमे अकबर के पुत्र दानियाल ने हिरन के शिकार के लिए बाउंड्री वाल का निर्माण कराया था, वही जहाँगीर ने आहुखाना की इमारत बनवाई थी, तो वही शाहजहां ने संगीत कक्ष बनवाया था, लेकिन अब यह ऐतिहासिक धरोहर पुरातत्व विभाग की अनदेखी के चलते जर्जर हो रही है, इतना ही नहीं इस इमारत का इतिहास लिखा शिलालेख पत्थर टूट चुका है, लेकिन विभाग ने अब तक इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया है, जिसके चलते पर्यटकों को जानकारी नहीं मिल पा रही है।


Conclusion:वही दूसरा मामला बुरहानपुर शहर से 5 कि.मी दूर ग्राम बोहरड़ा में ताप्ती नदी और मोहना नदी के तट पर स्थित ऐतिहासिक धरोहर राजा जयसिंह की छतरी का है, इस छतरी में कुल 32 खंबे और 8 गुंबज है, लेकिन पुरातत्व विभाग की अनदेखी के चलते छतरी के कोने के पत्थरों की पकड़ कमजोर होती जा रही है, जिससे छत के बाहरी ओर लगे पत्थर गिर रहे है, चलते यह ऐतिहासिक इमारत अपना अस्तित्व खोने कि कगार पर है, लेकिन पुरातत्व विभाग इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है।

बाईट 01:- याकूब बोरिंगवाला, इतिहासकार।
बाईट 02:- मो. नौशाद, इतिहासकार।
बाईट 03:- गणेश, चौकीदार राजा जयसिंह छतरी।
बाईट 04:- रोमानुस टोप्पो, अपर कलेक्टर।
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